स्वामी विवेकानंद (12 जनवरी 1863- 4 जुलाई 1902): 150 वीं जयंती
बंगाल कल्चरल स्क्वाड के नेतृत्वकर्ता और इप्टा के संस्थापकों में से एक, जनगायक, रूसीविद और लेखक विनय राय द्वारा लिखी पुस्तक ‘‘विवेकानंद के सामाजिक-राजनीतिक विचार’’ 1970 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा प्रकाशित हुई। इसकी लोकप्रियता का सबूत यह है कि पुस्तक 4 बार पुनर्मुद्रित हो चुकी है।
उन्होंने लिखा था, ‘‘ भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में नरेंद्र नाथ दत्त को, जिन्हें विश्व स्वामी विवेकानंद के रूप में जानता है, एक अत्यंत विशेष स्थान प्राप्त है। औपचारिक रूप से वे पीत चीवर में एक भिक्षु थे, एक धार्मिक प्रचारक, एक दार्शनिक धार्मिक आंदोलन जिसे वेदांतवाद कहा जाता है या सही कहें तो नव-वेदांतवाद के संस्थापक एवं संगठनकर्ता थे। लेकिन उनके विचारों तथा शिक्षा ने राष्ट्रीय जीवन व संस्कृति को काफी प्रभावित किया। भारतीय क्रांतिकारियों की अनेक पीढ़ियां, 20 वीं सदी के प्रारंभ से ही स्वामी विवेकानंद को जोशीले भाषण तथा लेखन से व्यवहारतः उठ खड़ी हुईं और दृढ़ बनीं।
देश के युवकों से दबे-कुचले लाखों मूक लोगों के ज्ञानोदय के लिये संघर्ष करने की उनकी अपील, धनी वर्गों की सुविधायें खत्म करने और राष्ट्रीय संपदा में मेहनतकशों को समुचित हिस्सा देने की समस्या के प्रति उनका क्रांतिकारी दृष्टिकोण, छुआछूत के खिलाफ उनका उपदेश और सबसे बढ़कर आत्मा के शुद्धिकरण की उनकी शिक्षा- इन सबको बाद में महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस समेत विभिन्न राजनीतिक एवं सामाजिक संगठनों ने अपनाया।’’
(कामरेड ए.बी. बर्धन की पुस्तिका से साभार)
janam din ke shubh avsar me vicharon ke punarjaagran hetu shukriyaa
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