Monday, January 9, 2012

इप्टा का मतलब


इप्टा, इंडियन पीपुल्स थियेटर एसोसियेशन का संक्षेप है । हिन्दी में इसे भारतीय जन नाट्य संघ, असम व पश्चिम बंगाल में भारतीय गण नाट्य संघ, आन्ध्र प्रदेश में प्रजा नाट्य मंडली के नाम से जाना  गया । इसका सूत्र वाक्य है ‘पीपुल्स थियेटर स्टार्स द पीपुल’ - जनता के रंगमंच की असली नायक जनता है। प्रतीक चिन्ह सुप्रसिद्ध चित्रकार चित्त प्रसाद की कृति नगाड़ावादक है, जो संचार के सबसे प्राचीन माध्यम की याद दिलाता है। अखिल भारतीय स्तर पर 25 मई 1943 को बंबई (अब मुंबई) में स्थापित इप्टा की स्वर्ण जयन्ती के अवसर पर भारत सरकार ने विशेष डाक टिकट जारी किया।

पृष्ठभूमि
इप्टा का इतिहास भारत के जन संस्कृति आन्दोलन का अभिन्न अंग है। देश के स्वाधीनता संग्राम तथा अन्तर्राष्ट्रीय फासीवाद विरोधी संघर्ष से इसके सूत्र जुड़े थे । 1936 में प्रगतिशील लेखक संघ का लखनऊ में पहला सम्मेलन, 1940 में कलकत्ता में यूथ कल्चरल इंस्टीट्यूट की स्थापना, 1941 में बंगलौर में श्रीलंकाई मूल की अनिल डिसिल्वा द्वारा पीपुल्स थियेटर का गठन, उन्हीं के सहयोग से 1942 मुंबई में इप्टा का उदय, देश के विभिन्न भागों में प्रगतिशील सांस्कृतिक  जत्थों, नाट्य दलों का निर्माण- जनपक्षीय संस्कृति के वाहक कहीं संगठित तो कहीं स्वतः स्फूर्त ढंग से जुड़ रहे थे। पीपुल्स थियेटर नाम वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा ने सुझाया था जो रोम्यां रोलां की जन नाट्य संबंधी अवधारणाओं तथा इसी नाम की पुस्तक से प्रभावित थे ।
बंगाल के भीषण अकाल ने प्रगतिशील लेखकों, कलाकारों को बहुत उद्वेलित किया। 1942 में ही गायक विनय राय के नेतृत्व में बंगाल कल्चरल स्क्वैड अकालपीड़ितों के प्रति संवेदना जगाने और उनके लिए आर्थिक सहायता इकट्ठा करने को निकल पड़ा। वामिक जौनपुरी के गीत ‘भूखा है बंगाल ‘ व अन्य गीतों- नाटिकाओं के साथ देश के विभिन्न भागों में कार्यक्रम प्रस्तुत किये । दल में संगीतकार, प्रेमधवन, ढोलकवादक दशरथ लाल , गायिका रेखा राय, अभिनेत्री उषा दत्त आदि शामिल थे। इससे प्रेरित होकर आगरा कल्चरल स्क्वैड व अन्य सांस्कृतिक दल बने। यह आवश्यकता महसूस की जाने लगी कि इस प्रकार के सांस्कृतिक समूहों का राष्ट्रीय स्तर पर कोई संगठन बने। राजनीतिक- सामाजिक विचारधारा की दृष्टि से ये संस्कृतिकर्मी वामपन्थी रूझान के थे और उन्हें एक मंच पर लाने में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के तत्कालीन महासचिव पी.सी.जोशी ने प्रमुख भूमिका निभाई ।

राष्ट्रीय सम्मेलन(1943-1958)
भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) का स्थापना सम्मेलन 25 मई 1943 को बम्बई के मारवाड़ी विद्यालय में हुआ। इसमें देश भर से रचनाधर्मी जुड़े थे। अध्यक्षीय भाषण में प्रो. हीरेन मुखर्जी ने आह्वान किया, ‘‘लेखक और कलाकार आओ, अभिनेताओ और नाटककार, तुम सारे लोग, जो, हाथ या दिमाग से काम करते हो, आओ और अपने आपको स्वतन्त्रता और सामाजिक न्याय का एक नया वीरत्वपूर्ण समाज बनाने के लिए समर्पित कर दो।‘‘ इप्टा की प्रथम राष्ट्रीय समिति के अध्यक्ष, श्रमिक नेता एम.एन. जोशी , महामंत्री अनिल डी सिल्वा, कोषाअध्यक्ष ख्वाजा अहमद अब्बास, संयुक्त मंत्री विनय राय और के. डी. चांडी चुने गये । राष्ट्रीय समिति व प्रान्तीय संगठन समितियों में बंबई, बंगाल, पंजाब, दिल्ली, यूपी, मालाबार, मैसूर, मंगलूर, हैदराबाद, आंध्रा, तमिलनाडु, कर्नाटक के अग्रणी कलाकार व विभिन्न जन संगठनों के प्रतिनिधि थे । इस सम्मेलन के लिए पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपना संदेश भेजा था । बाद के सम्मेलनों के लिए श्रीमती सरोजनी नायडु ( जो इप्टा के कार्यक्रमों में सक्रिय रूचि लेती थीं) और डॉ. राजेन्द्र प्रसाद तथा देश-विदेश की अन्य प्रमुख हस्तियों ने अपनी शुभकामनाएं प्रेषित कीं। इप्टा के दूसरे और तीसरे राष्ट्रीय सम्मेलन क्रमशः 1944 और 1945 में मुंबई में ही हुए। चौथा अधिवेशन 1946 में कोलकता में, पांचवा 1948 में अहमदाबाद में, छठा 1949 में इलाहबाद में, सातवां 1953 में मुंबई में आयोजित किया गया । इस अवधि में अन्ना भाऊ साठे, ख्वाजा अहमद अब्बास, वल्ला थोल, मनोरंजन भट्टाचार्य, निरंजन सेन, डॉ. राजा राव, राजेन्द्र रघुवंशी, एम नागभूषणम, बलराज साहनी, एरीक साइप्रियन, सरला गुप्ता, डॉ. एस सी जोग, विनय राय, वी.पी. साठे, सुधी प्रधान, विमल राय, तेरा सिंह चंन, अमृतलाल नागर, के. सुब्रमणियम, के. वी. जे. नंबूदिरि, शीला भाटिया, दीना गांधी (पाठक), सुरिन्दर कौर, अब्दुल मालिक, आर. एम. सिंह, विष्णुप्रसाद राव, नगेन काकोति, जनार्दन करूप, नेमीचंद्र जैन, वेंकटराव कांदिकर, सालिल  चौधरी, हेमंग विश्वास, अमरशेख आदि इप्टा की सांगठनिक समितियों में प्रमुख थे ।
 आठवें अखिल भारतीय सम्मेलन का आयोजन 23 दिसम्बर 1957 से 1 जनवरी 1958 तक दिल्ली के रामलीला मैदान में किया गया। यह ‘नटराज नगरी‘ में हुआ, जिसमें भारत भर से एक हजार कलाकारों ने भाग लिया । इसका उदघाट्न तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकष्ष्णन ने किया था । राष्ट्रीय समिति के अध्यक्ष सचिन सेन गुप्ता (कलकत्ता), उपाध्यक्ष विष्णुप्रसाद रावा, (गुवाहाटी), राजेन्द्र रघुवंशी (आगरा), के. सुब्रहण्यम (मद्रास), महासचिव निरंजन सेन (कलकत्ता) चुने गये । संयुक्त सचिव निर्मल घोष (कलकत्ता), राधेश्याम सिन्हा (पटना), डॉ. राजाराव (राजामुन्द्री, आंध्रा), मुहानी अब्बासी (मुंबई), कोषाध्यक्ष सजल राव चौधरी (कलकत्ता) बने । समिति के अन्य सदस्यों में मुंबई, असम, मणिपुर, बिहार, उडीसा, दिल्ली, पंजाब, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, मैसूर, राजस्थान, गुजरात, तमिलनाडु व पश्चिम बंगाल के अग्रणी संस्कृतिकर्मी थे ।

सामाजिक बदलाव की कला 
इस सांस्कृतिक आंदोलन ने प्रदर्शनात्मक कलाओं के माध्यम से समकालीन यथार्थ को चित्रित किया, पारम्परिक कलारूपों को आधुनिक बोध से जोड़ा तथा सामाजिक - राजनैतिक बदलाव के लिए जन-जागरण किया। ‘कला जीवन के लिए‘ के पक्षधर इप्टाकर्मियों ने कला व सौंदर्यशास्त्र के प्रति नए दृष्टिकोण का विकास किया। उन्होंने कला-कलाकार दर्शक के संबंध को नई परिभाषा दी। इप्टा ने भारतीय संस्कृति के जीवंत तत्वों को आत्मसात् किया। विश्व संस्कृति की प्रगतिशील निधि से रिश्ते बनाए तथा अपनी सृजनात्मकता से कला जगत को समृद्ध किया। उसके कलाकारों ने अपने क्रांतिकारी विचारों और अभिव्यक्ति के लिए सत्ता का दमन भी झेला ।
भारत में आधुनिक वृंद गायन (कोरस) का विकास इप्टा ने ही किया। पं. रविशंकर ने ‘ सारे जंहा से अच्छा..‘ (इकबाल) की संगीत रचना इप्टा के सेंट्रल कल्चरल ट्रूप (स्थापित 1944) के लिए की थी । विनय राय, सलील  चौधरी, नरेन्द्र शर्मा, हेमंग विश्वास, प्रेमधवन, नरेन्द्र शर्मा, साहिर लुधियानवी, शंकर शैलेन्द्र, मखदुम मुहीउद्दीन, शील, वल्लथोल, ज्योतिर्मय मोइत्रा, ज्योति प्रसाद अग्रवाल, भूपेन हजारिका, अनिल विश्वास आदि द्वारा विभिन्न भाषाओं में लिखित/संगीतबद्ध गीतों ने जन-संगीत को शुरू किया और परवान चढ़ाया। असम में ज्योति संगीत के प्रणेता ज्योति प्रसाद अग्रवाल की जन्म शताब्दी 2004 में मनाई   गई ।
सेन्ट्रल ट्रूप की नृत्य नाटिकाओं ‘भारत की आत्मा ‘, ‘अमर भारत‘, आदि ने युगांतरकारी कार्य किया। इन प्रस्तुतियों से संगीतकार रविशंकर, विनय राय और अवनीदास गुप्त, नृत्य निर्देशक शान्तिवर्द्धन व नागेश, गीतकार प्रेमधवन आदि जुड़े थे । ज्योतिर्मय मोइत्रा का ‘नवजीवनेर   गान’ ( गीत नाट्य ), आन्ध्र में डा. राजाराव द्वारा बुर्राकथा, वीथी नाटक, हरिकथा आदि लोक कला रूपों का समकालीन संदर्भो में प्रदर्शन, मालाबार का मछुआ नृत्य, उत्तर भारत के लोक नृत्यों की सामयिक प्रस्तुतियां - इप्टा के कलाकार जनकलाओं को नया रूप देने में जुटे रहे। अमर शेख के मराठी लोक गायन व मगई ओझा (असम) के लोक वाद्य वादन ने विशेष जगह बनायी।
इप्टा ने भारतीय रंगमंच को नयी दिशा दी । उसने जनता के दुःख- दर्द, सपनों - आकांक्षाओं के शिल्प के     बंधे-बंधाये ढांचे को तोड़ते हुए अभिव्यक्ति दी। विजय भट्टाचार्य का नाटक ‘ नवान्न ‘ इस दृष्टि से सबसे समर्थ साबित     हुआ। शंकर - वासिरेड्डी लिखित ‘मां भूमि‘, तोप्पिल भासी का ‘तुमने मुझे कम्युनिस्ट बनाया‘, डा. रशीद जहां, ख्वाजा अहमद अब्बास, अली सरदार जाफरी, टी. सरमालकर, बलवन्त गार्गी, जसवन्त ठक्कर, मामा वरेरकर, आचार्य अत्रे आदि के नाटकों ने यथार्थवादी रंगमंच की प्रतिष्ठा की। बलराज साहनी, शंभु मित्रा, हबीब तनवीर, भीष्म साहनी, दीना पाठक, राजेन्द्र रघुवंशी, आर. एम. सिंह, उत्पलदत्त, ए. के. हंगल, रामेश्वर सिंह कश्यप, शीला भाटिया आदि निर्देशक व अभिनेता के रूप में विशेष योगदानकर्ता रहे। छाया नाटक व आशुनाटक के क्षेत्र में इप्टा ने अभिनव प्रयोग किये । प्रकाश - प्रभाव में तापस सेन व रंग सज्जा में शिल्पी कुमार ने इतिहास   बनाया।
1946 में इप्टा ने फिल्म   ‘धरती के लाल‘ का निर्माण किया। यह विजन भट्टाचार्य के नाटकों ‘नवान्न‘ व ‘अन्तिम अभिलाषा‘ पर  आधारित   थी । ख्वाजा अहमद अब्बास निर्देशित इस फिल्म के संगीत निर्देशक पं. रविशंकर, नृत्य निर्देशक शान्ति वर्धन, गीतकार अली सरदार जाफरी व प्रेम धवन थे। विभिन्न भूमिकाओं में शंभु मित्रा, तृप्ति मित्र, बलराज साहनी दमयन्ती साहनी, उषा दत्त आदि व सैकड़ों किसान, विद्यार्थी व मजदूर थे। ऋत्विक घटक और इप्टा से जुड़े तमाम कलाकारों ने बाद में फिल्म के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनायी। उन्होंने यथार्थवादी फिल्मधारा को प्रभावित किया ।

बिखराव का दौर (1960-1984) 
1960 आते-आते राष्ट्रीय स्तर पर इप्टा का स्वरूप बिखर गया। यद्यपि इस दौर में भी मुंबई, उत्तर प्रदेश, बिहार, केरल, आन्ध्र आदि स्थानों पर इप्टा की इकाइयां लगातार कार्य करती रहीं, लेकिन अखिल भारतीय स्तर पर संगठन का अभाव था। शंभु मित्रा का नाट्यदल ‘बहुरूपी‘ हबीब तनवीर का ‘नया थियेटर‘ रूमा गुहा ठकुरता का ‘कैलकटा यूथ   कौइर‘ तथा शान्ति वर्धन, उत्पल दत्त आदि के दल इप्टा की विचारधारा को लेकर सक्रिय थे लेकिन सभी का स्वतंत्र अस्तित्व था। वामपंथी रुझान के जन नाट्य मंच, जन संस्कृति मंच का उदय हुआ । अस्सी के दशक में इप्टा की इकाइयों ने आपस में संवाद स्थापित किया और पुनर्गठन की कोशिशें की।


पुनर्जागरण
1985 में आगरा में इप्टा का राष्ट्रीय कन्वेंशन आहूत किया गया, जिसमें 15 राज्यों के लगभग 300 प्रतिनिधियों ने भाग लिया । यह राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय जन नाट्य संघ को पुनर्गठित करने की पहल थी ।
1986 में दो से अधिक दशकों के अन्तराल के बाद इप्टा का नवां राष्ट्रीय अधिवेशन हैदराबाद में आयोजित हुआ। इसका उद्घाटन फिल्मकार श्याम बेनेगल ने   किया । राष्ट्रीय समिति के अध्यक्ष कैफी आजमी, उपाध्यक्ष हेमंग विश्वास, राजेन्द्र रघुवंशी, सी. नागभूषणम, ए. के. हंगल, दीना पाठक, एम. एस. सथ्यु, भीष्म साहनी, सुब्रत बनर्जी, सैयद अब्दुल मलिक, तोप्पिल भासी, रामेश्वर सिंह कश्यप, नारायण सुर्वे, एम. वी. श्रीनिवासन, जसवन्त ठक्कर, सुरिन्दर कौर, रूमा गुहा ठकुरता निर्वाचित हुए । महासचिव गोविन्द विद्यार्थी तथा सचिव आबिद रिजवी, के. प्रताप रेड्डी, जितेन्द्र रघुवंशी, तनवीर अख्तर व अमिताभ पांडे बनाये  गये ।
सम्मेलन के घोषणापत्र में कहा गया था, ‘‘ हमें इप्टा के पुराने और नये कार्यकर्ताओं को, इप्टा को एक शक्तिशाली राष्ट्रीय आन्दोलन के रूप में एक बार फिर से खड़ा करने के लिए इस बात से नया विश्वास मिला है कि हमारी जनता अलगाव की शक्तियों और ऐसी स्थितियों से, जिनमें भाई, भाई के खून का प्यासा हो उठा है, लगातार लड़ रही है और हमारे संस्कृतिकर्मियों के इस संघर्ष से परस्पर योगदान वाले जीवन्त संबंध हैं।‘
दसवां राष्ट्रीय सम्मेलन 1992 में जयपुर में तथा ग्यारहवां सम्मेलन 2001 में त्रिशुर (केरल )में आयोजित        हुआ । बारहवां राष्ट्रीय सम्मेलन नवम्बर 2005 में लखनऊ में सम्पन्न हुआ । वर्तमान में इसके अध्यक्ष जाने - माने अभिनेता ए. के. हंगल हैं। देश के चौबीस राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेशो में इसकी पांच सौ से अधिक इकाइयां सक्रिय हैं।

-जितेन्द्र रघुवंशी


3 comments:

  1. A very good document on IPTA's unparalleled history written by Jitender Raghuvanshi ji (Ipta's General Secretary) - An Inspiring and beacon-paper for new generation and youth.

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  2. 13van Rashtriya sammelan 2011 men Bhilai (Chhattisgarh)men.

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