जनवादी लेखक संघ दुर्ग ईकाई के संयोजन से कल्याण महाविद्यालय दुर्ग में मुक्ति बोध जन्म शती समारोह का आयोजन दिनांक 05-02-17 रविवार को किया .इस कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ जनवादी लेखक संघ के विभिन्न इकाइयों से ( दुर्ग, कोरबा, बागबाहरा,कवर्धा,जांजगीर,भिलाई आदि) सदस्यों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई.
इस कार्यक्रम की अध्यक्षता 'दुनिया इन दिनों' के संपादक श्री सुधीर सक्सेना ने तथा मुख्य आतिथ्य श्री कनक तिवारी ने की. विनोद साव ने संचालन किया .नासिर अहमद सिकंदर एवं अंजन के प्रयास से कार्यक्रम ब्यवस्थित रूप से संपन्न हुआ.
कार्यक्रम मुख्यत: तीन चरणों में संपन्न हुआ. पहले चरण में रजत कृष्ण और सियाराम शर्मा ने मुक्ति बोध के काव्य एवं काव्य कर्म पर, दूसरे चरण में बसंत त्रिपाठी औऱ कैलाश बनवासी ने उनकी कहानियों पर टिप्पणी की. अंतिम चरण में अजय चंद्र वंशी एवं जयप्रकाश ने उनके आलोचना कर्म पर गहन चर्चा की तथा कनक तिवारी ने मुक्ति बोध के साथ गुजारे क्षणों को याद किया. सुधीर सक्सेना ने अध्यक्षीय भाषण दिए तथा नासिर अहमद ने आभार प्रस्तुत किया. मुक्ति बोध के चित्र पर माल्यार्पण के साथ शुभारंभ हुए.
इस कार्यक्रम में रजत कृष्ण ने मुक्ति बोध को युग को पहचानने वाला, युगीन विसंगतियों की बारिकी से पड़ताल करने वाला, हरहाल में समझौता न करने वाला, विकास के दावों का पोल खोलने वाला साहसी कवि कहा. कविता के माध्यम से लोकतंत्र की कमियों को उजागर करने वाला कवि कहा. सियाराम शर्मा ने कवि निराला से साम्य स्थापित करते हुए उनकी जीवन शैली, लेखन शैली, दोनों की बेचैनी, स्वाभिमानी पर गहरा विश्लेषण किया. कहा, क्या गणतंत्र है जहां 1 प्रतिशत ब्यक्तियों के पास देश की 58 प्रतिशत पूंजी और 99 प्रतिशत के पास शेष पूंजी. बसंत त्रिपाठी ने कहा, जैसे टार्च की रौशनी में अंधेरे गैराज को देखें तो एक बार में कुछ ही वस्तुएं दिख पाती है. दूसरी बार में औऱ कुछ.. हर बार कुछ कुछ ..वैसे ही लगता है मुक्ति बोध की कहानियों को पढ़ते-पढ़ते. हर बार नए अर्थों को दीप्त करती है. उनकी कहानियां कुछ अर्थों में दोस्तोवस्की से मेल खाती है. बिष्णु चंद शर्मा की मुक्ति बोध की आत्मकथा में इनकी अधिकांश कहानियों की चर्चा हुई है. तालाब के संदर्भ को लेकर आत्महत्या को अलग तरह से परिभाषित करने वाले प्रसंग की चर्चा की.
कैलाश बनवासी मुक्ति बोध को किसी फ्रेम में बंध कर रहने वाला कहानीकार नहीं मानते, बल्कि वे उसे आम विधाओं से अलग अपने पथ के अलग कहानीकार कहते है. अजय चंद्रवंशी ने मुक्ति बोध की आलोचना शैली पर विस्तृत चर्चा की. जयप्रकाश ने वैश्विक परिदृश्य में मुक्ति बोध के काव्य कर्म को जोड़ते हुए कहा कि एक लेखक की डायरी ( दास्तोवस्की) एक साहित्यिकी की डायरी विषय पर चर्चा करते हुए दोनों के ब्यक्तित्व की एवं सोच की सीमाओं की विभिन्नता पर चर्चा की. कहा कि मुक्ति बोध का दृष्टिकोण दो महायुद्धो,शीत युद्धो से निर्मित होते है. कवि होने का अर्थ केवल कविता या कहानी आलोचना लिख लेना ही नहीं होता अपितु मुक्तिबोध के अनुसार यह एक सांस्कृतिक प्रकिया है. जीवन की गहराईयों में जाकर देखना होता है. इसीलिए लंबी कविता की जरूरत होती है. कविता केवल संवेदना की उत्पत्ति नहीं है अपितु ज्ञान और संवेदना का सम्मिश्रण है. संवेदनात्मक ज्ञान औऱ ज्ञानात्मक संवेदना के बिना कोई भी कवि कर्म इमानदारी से नहीं हो सकती.
कविता के अवतरित होने की तीन क्षणों पर भी जयप्रकाश चर्चा करते है. वैश्विक दृष्टिकोण का अर्थ केवल विश्व की घटनाओं की जानकारी रखना नहीं होता, बल्कि विश्व कल्याण के लिए स्वयं से सत्ता से हाथापाई करना होता है. 'कामायनी एक पुनर्विचार' मुक्ति बोध के जीवन में विचार धारा के सोता फूटने का समय है. यहाँ से उनके विचार अपनी लेखनी के स्वरूप ग्रहण करते है. प्रसाद औऱ मुक्ति बोध में वे प्रचंड बुद्धि औऱ बौद्धिक ईमानदारी देखते है.
कनक तिवारी पहले औऱ अंतिम व्यक्ति है जिन्हें मुक्ति बोध अपनी रचना 'अंधेरे में' सुनाते है, मुख्य अतिथि बनकर आते है औऱ 75 रू.सम्मान स्वरूप ग्रहण करते है. उनके साथ हिंदी का अध्यापन करते है. दिग्विजय कालेज में पढाते है और बूढा तालाब के पास जाकर साहित्य की चर्चा करते है. मुक्त बोध के पिता सिपाही थे किंतु इतने अनुशासित पिता के साथ होते हुए भी मुक्ति बोध उस काल में प्रेम विवाह करने का साहस रखते है. तिवारी जी बताते है कि तब मैं 23 का था, मुक्ति बोध 46 के और पदुम लाल पुन्नालाल 69 के. मुक्ति बोध की कामायनी मेरी कुछ कुछ समझ में आता, बख्शी जी कहते मुझे नहीं आता था.मु झसे कुछ अंग्रेजी की पुस्तकें मंगवाते लास्ट पैराडाईज आदि आदि... अद्भुत ब्यक्तितव के स्वामी थे मुक्ति बोध.
अपने अधयक्षीय भाषण में सुधीर सक्सेना मुक्ति बोध के चौथे डी यानी पत्रकारिता पर विस्तार से चर्चा की अपील करते है औऱ उपरोक्त रचनाकारों के व्कतव्य का स्मरण करते है. कार्यक्रम सफल रहा.
इस कार्यक्रम की अध्यक्षता 'दुनिया इन दिनों' के संपादक श्री सुधीर सक्सेना ने तथा मुख्य आतिथ्य श्री कनक तिवारी ने की. विनोद साव ने संचालन किया .नासिर अहमद सिकंदर एवं अंजन के प्रयास से कार्यक्रम ब्यवस्थित रूप से संपन्न हुआ.
कार्यक्रम मुख्यत: तीन चरणों में संपन्न हुआ. पहले चरण में रजत कृष्ण और सियाराम शर्मा ने मुक्ति बोध के काव्य एवं काव्य कर्म पर, दूसरे चरण में बसंत त्रिपाठी औऱ कैलाश बनवासी ने उनकी कहानियों पर टिप्पणी की. अंतिम चरण में अजय चंद्र वंशी एवं जयप्रकाश ने उनके आलोचना कर्म पर गहन चर्चा की तथा कनक तिवारी ने मुक्ति बोध के साथ गुजारे क्षणों को याद किया. सुधीर सक्सेना ने अध्यक्षीय भाषण दिए तथा नासिर अहमद ने आभार प्रस्तुत किया. मुक्ति बोध के चित्र पर माल्यार्पण के साथ शुभारंभ हुए.
इस कार्यक्रम में रजत कृष्ण ने मुक्ति बोध को युग को पहचानने वाला, युगीन विसंगतियों की बारिकी से पड़ताल करने वाला, हरहाल में समझौता न करने वाला, विकास के दावों का पोल खोलने वाला साहसी कवि कहा. कविता के माध्यम से लोकतंत्र की कमियों को उजागर करने वाला कवि कहा. सियाराम शर्मा ने कवि निराला से साम्य स्थापित करते हुए उनकी जीवन शैली, लेखन शैली, दोनों की बेचैनी, स्वाभिमानी पर गहरा विश्लेषण किया. कहा, क्या गणतंत्र है जहां 1 प्रतिशत ब्यक्तियों के पास देश की 58 प्रतिशत पूंजी और 99 प्रतिशत के पास शेष पूंजी. बसंत त्रिपाठी ने कहा, जैसे टार्च की रौशनी में अंधेरे गैराज को देखें तो एक बार में कुछ ही वस्तुएं दिख पाती है. दूसरी बार में औऱ कुछ.. हर बार कुछ कुछ ..वैसे ही लगता है मुक्ति बोध की कहानियों को पढ़ते-पढ़ते. हर बार नए अर्थों को दीप्त करती है. उनकी कहानियां कुछ अर्थों में दोस्तोवस्की से मेल खाती है. बिष्णु चंद शर्मा की मुक्ति बोध की आत्मकथा में इनकी अधिकांश कहानियों की चर्चा हुई है. तालाब के संदर्भ को लेकर आत्महत्या को अलग तरह से परिभाषित करने वाले प्रसंग की चर्चा की.
कैलाश बनवासी मुक्ति बोध को किसी फ्रेम में बंध कर रहने वाला कहानीकार नहीं मानते, बल्कि वे उसे आम विधाओं से अलग अपने पथ के अलग कहानीकार कहते है. अजय चंद्रवंशी ने मुक्ति बोध की आलोचना शैली पर विस्तृत चर्चा की. जयप्रकाश ने वैश्विक परिदृश्य में मुक्ति बोध के काव्य कर्म को जोड़ते हुए कहा कि एक लेखक की डायरी ( दास्तोवस्की) एक साहित्यिकी की डायरी विषय पर चर्चा करते हुए दोनों के ब्यक्तित्व की एवं सोच की सीमाओं की विभिन्नता पर चर्चा की. कहा कि मुक्ति बोध का दृष्टिकोण दो महायुद्धो,शीत युद्धो से निर्मित होते है. कवि होने का अर्थ केवल कविता या कहानी आलोचना लिख लेना ही नहीं होता अपितु मुक्तिबोध के अनुसार यह एक सांस्कृतिक प्रकिया है. जीवन की गहराईयों में जाकर देखना होता है. इसीलिए लंबी कविता की जरूरत होती है. कविता केवल संवेदना की उत्पत्ति नहीं है अपितु ज्ञान और संवेदना का सम्मिश्रण है. संवेदनात्मक ज्ञान औऱ ज्ञानात्मक संवेदना के बिना कोई भी कवि कर्म इमानदारी से नहीं हो सकती.
कविता के अवतरित होने की तीन क्षणों पर भी जयप्रकाश चर्चा करते है. वैश्विक दृष्टिकोण का अर्थ केवल विश्व की घटनाओं की जानकारी रखना नहीं होता, बल्कि विश्व कल्याण के लिए स्वयं से सत्ता से हाथापाई करना होता है. 'कामायनी एक पुनर्विचार' मुक्ति बोध के जीवन में विचार धारा के सोता फूटने का समय है. यहाँ से उनके विचार अपनी लेखनी के स्वरूप ग्रहण करते है. प्रसाद औऱ मुक्ति बोध में वे प्रचंड बुद्धि औऱ बौद्धिक ईमानदारी देखते है.
कनक तिवारी पहले औऱ अंतिम व्यक्ति है जिन्हें मुक्ति बोध अपनी रचना 'अंधेरे में' सुनाते है, मुख्य अतिथि बनकर आते है औऱ 75 रू.सम्मान स्वरूप ग्रहण करते है. उनके साथ हिंदी का अध्यापन करते है. दिग्विजय कालेज में पढाते है और बूढा तालाब के पास जाकर साहित्य की चर्चा करते है. मुक्त बोध के पिता सिपाही थे किंतु इतने अनुशासित पिता के साथ होते हुए भी मुक्ति बोध उस काल में प्रेम विवाह करने का साहस रखते है. तिवारी जी बताते है कि तब मैं 23 का था, मुक्ति बोध 46 के और पदुम लाल पुन्नालाल 69 के. मुक्ति बोध की कामायनी मेरी कुछ कुछ समझ में आता, बख्शी जी कहते मुझे नहीं आता था.मु झसे कुछ अंग्रेजी की पुस्तकें मंगवाते लास्ट पैराडाईज आदि आदि... अद्भुत ब्यक्तितव के स्वामी थे मुक्ति बोध.
अपने अधयक्षीय भाषण में सुधीर सक्सेना मुक्ति बोध के चौथे डी यानी पत्रकारिता पर विस्तार से चर्चा की अपील करते है औऱ उपरोक्त रचनाकारों के व्कतव्य का स्मरण करते है. कार्यक्रम सफल रहा.
-संजय पराते