-सारिका श्रीवास्तव
इंदौर। 11 मई 2011 में जापान के फुकुशिमा में सुनामी के बाद टूटे परमाणु संयंत्र के विकिरण से तमाम दुष्प्रभाव हुए। जनहानि का पता चला नहीं या चलने नहीं दिया गया लेकिन परमाणु रिसाव के फलस्वरूप हजारों की संख्या में मारे गए समुद्री जीव-जन्तुओं ने तो ये राज खोला ही कि परमाणु विकिरण का क्या असर जीवन पर पड़ता है और यह कि अभी तक हमें उस पर काबू पाने के तरीके पता नहीं हैं। नतीजा यही है कि जब भी ऐसी दुर्घटना होती है तो समुद्री जल जीवों की तरह ही आम नागरिक ही निशाना बनते हैं। परमाणु विकिरण से होने वाले दुष्प्रभावों पर केन्द्रित 30 मिनिट की अवधि के माइम नाटक ‘‘एक मछली की कहानी’’ के जरिए कोलकाता से आये माइम कलाकार सुषान्त दास ने अदुभुत समा बाँधा। कुडनकुलम में लगाए जाने वाले परमाणु संयंत्र के विरोध में समुद्र पर आश्रित एवं अपनी जीविका चलाने वाले मछुआरों, नाविकों के विरोध, नेताओं की स्वार्थपरक राजनीति और अपनी ताकत के दम पर पुलिस द्वारा इस विरोध पर दमनात्मक कार्यवाही और समुद्री जीवजन्तुओं के ऊपर इससे पड़ने वाले दुष्प्रभाव को उन्होंने बहुत ही भावप्रवण तरीके से प्रस्तुत किया।
उनके शरीर की मुद्राएँ और अभिनय तथा सिर्फ़ मेकअप के सहारे अकेले ऐसे जटिल विषय पर बच्चों-बड़ों की दिलचस्पी कायम रखना आश्चर्यजनक था। बिना किन्हीं उपकरणों व संगीत आदि के पूरी तरह उनकी प्रस्तुति उन पर ही निर्भर रहती है। उनका संतुलन, भाव-भंगिमाएँ चकित कर देती हैं।
श्री सुषान्त दास कोलकाता के रविन्द्र भवन से 2004 के माइम कला के टॅापर रहे हैं। वे पिछले 15 वर्षों से एकल अभिनय के जरिए माइम द्वारा लोगों के बीच सामाजिक चेतना लाने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने जनांदोलनों के विषयों को अपने नाटक का विषय बनाया है ताकि उनकी कला भी आंदोलन का एक हिस्सा बन सके।
उनकी यही प्रस्तुति उपस्थित दर्षकों की समझ को देखते हुए थोड़ी-बहुत रद्दोबदल के साथ इंदौर में 22 और 23 जून 2016 को तीन जगहों पर इंदौर इप्टा द्वारा आयोजित की गई। उन्होंने इंदौर इप्टा के किशोर और युवा कलाकारों को भी माइम के बारे में विस्तार से बताया।
स्टेट बैंक अॅाफ इंदौर यूनियन द्वारा चलाये जा रहे एक विद्यालय में 22 जून को सुषान्त द्वारा माइम की प्रथम प्रस्तुति इसी विद्यालय के बच्चों व शिक्षकों के मध्य दी गई। नर्सरी से कक्षा 12 तक के बच्चों के मध्य किए गए इस माइम के जरिए पर्यावरण प्रदूषण के जलजीवों पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव को बखूबी पेश किया गया। कॉमरेड आलोक खरे व स्कूल प्रशसन का इसमें उत्साहजनक सहयोग रहा।
इसी दिन शाम को पालदा स्थित कचड़ा बीनने वालों और दूसरों के घरों में काम करने वाली मेहनतकश महिलाओं के अधिकारों के लिए एकजुट करने वाले जनविकास केन्द्र की मेहनतकश महिलाओं और उनके बच्चों के मध्य भी उन्होंने प्रभावी प्रस्तुति दी। कृष्णार्जुन और फादर रॉय ने इस सभा को सफल बनाने में योगदान दिया।
रूपांकन के साथी अशोक दुबे, साथी शारदा बहन, अरविंद, घनश्याम, दीपिका, डोलू (रितिका), राज आदि के सहयोग से शंकरगंज, जिंसी में इप्टा के तत्वावधान में तीसरी प्रस्तुति की गई थी। कार्यक्रम का प्रारंभ करते हुए इंदौर इप्टा के सचिव अषोक दुबे ने उपस्थित लोगों को इंदौर में 2, 3 व 4 अक्टूबर को आयोजित होने वाले चौदहवें राष्ट्रीय सम्मेलन की जानकारी दी और कहा कि लगभग हर 15 दिन में इप्टा की ओर से इंदौर में की जा रहीं ये प्रस्तुतियाँ राष्ट्रीय सम्मेलन की तैयारियों का हिस्सा हैं और आगामी 22 जुलाई को अमृतलाल नागर की कहानियों पर मुम्बई के कलाकार नाटक प्रस्तुत करेंगे।
इस मौके पर इंसानियत और सूफियाना रवायत को कव्वाली के जरिए देश-विदेशों तक पहुँचाने वाले अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मशहूर कव्वाल अहमद साबरी की पाकिस्तान के कराची में दिनदहाड़े हुई हत्या और बंगाल में इंसानियत के लिए आवाज बुलंद करने वाले ब्लॉगरों की हत्या की घोर निंदा और विरोध करते हुए अशोक दुबे ने कहा कि अहमद साबरी हों, दाभोलकर, पानसरे या कलबुर्गी हों वे हमारी आवाज, हमारे विचारों को कभी नहीं मार सकते क्योंकि वे पूरी फिजां में घुले हुए हैं। इंदौर इप्टा की ओर से अहमद साबरी को श्रृद्धांजली दी गई।
शान्ति एकजुटता समिति के संयोजक कॅामरेड पी.सी. जैन, इंदौर इप्टा अध्यक्ष विजय दलाल, अरविंद पोरवाल, अजय लागू, जयप्रकाश, इंदौर के नाट्यकर्मी सुशील गोयल, रवि और उनके साथी, शिल्पकार जितेन्द्र वेगड़, इप्टा के साथी पूजा सोलसे, महिमा सिंह, राज लोगरे, साक्षी और अंशुल सोलंकी के अलावा दस साल से लेकर सत्तर वर्ष की उम्र तक के लोग इस कार्यक्रम में उपस्थित थे।
कार्यक्रम के अंत में कॅामरेड पी.सी.जैन ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि हम शांति और अमन चाहने वाले लोग हैं जो पृथ्वी को खुशहाल रखना चाहते हैं। हजारों करोड़ रुपया परमाणु संयंत्र पर खर्च करने के बजाए भारत में लोगों को शिक्षा, रोजगार और अच्छा स्वास्थ्य उपलब्ध करवाना अधिक जरूरी है परंतु सरकार निजी स्वार्थ के चलते पूरे देश को फिर से विदेशियों के हाथ में सौंप रही है। लेकिन हम ऐसा नहीं होने देंगे। कार्यक्रम का संचालन अशोक दुबे और सारिका श्रीवास्तव ने किया।
इंदौर। 11 मई 2011 में जापान के फुकुशिमा में सुनामी के बाद टूटे परमाणु संयंत्र के विकिरण से तमाम दुष्प्रभाव हुए। जनहानि का पता चला नहीं या चलने नहीं दिया गया लेकिन परमाणु रिसाव के फलस्वरूप हजारों की संख्या में मारे गए समुद्री जीव-जन्तुओं ने तो ये राज खोला ही कि परमाणु विकिरण का क्या असर जीवन पर पड़ता है और यह कि अभी तक हमें उस पर काबू पाने के तरीके पता नहीं हैं। नतीजा यही है कि जब भी ऐसी दुर्घटना होती है तो समुद्री जल जीवों की तरह ही आम नागरिक ही निशाना बनते हैं। परमाणु विकिरण से होने वाले दुष्प्रभावों पर केन्द्रित 30 मिनिट की अवधि के माइम नाटक ‘‘एक मछली की कहानी’’ के जरिए कोलकाता से आये माइम कलाकार सुषान्त दास ने अदुभुत समा बाँधा। कुडनकुलम में लगाए जाने वाले परमाणु संयंत्र के विरोध में समुद्र पर आश्रित एवं अपनी जीविका चलाने वाले मछुआरों, नाविकों के विरोध, नेताओं की स्वार्थपरक राजनीति और अपनी ताकत के दम पर पुलिस द्वारा इस विरोध पर दमनात्मक कार्यवाही और समुद्री जीवजन्तुओं के ऊपर इससे पड़ने वाले दुष्प्रभाव को उन्होंने बहुत ही भावप्रवण तरीके से प्रस्तुत किया।
उनके शरीर की मुद्राएँ और अभिनय तथा सिर्फ़ मेकअप के सहारे अकेले ऐसे जटिल विषय पर बच्चों-बड़ों की दिलचस्पी कायम रखना आश्चर्यजनक था। बिना किन्हीं उपकरणों व संगीत आदि के पूरी तरह उनकी प्रस्तुति उन पर ही निर्भर रहती है। उनका संतुलन, भाव-भंगिमाएँ चकित कर देती हैं।
श्री सुषान्त दास कोलकाता के रविन्द्र भवन से 2004 के माइम कला के टॅापर रहे हैं। वे पिछले 15 वर्षों से एकल अभिनय के जरिए माइम द्वारा लोगों के बीच सामाजिक चेतना लाने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने जनांदोलनों के विषयों को अपने नाटक का विषय बनाया है ताकि उनकी कला भी आंदोलन का एक हिस्सा बन सके।
उनकी यही प्रस्तुति उपस्थित दर्षकों की समझ को देखते हुए थोड़ी-बहुत रद्दोबदल के साथ इंदौर में 22 और 23 जून 2016 को तीन जगहों पर इंदौर इप्टा द्वारा आयोजित की गई। उन्होंने इंदौर इप्टा के किशोर और युवा कलाकारों को भी माइम के बारे में विस्तार से बताया।
स्टेट बैंक अॅाफ इंदौर यूनियन द्वारा चलाये जा रहे एक विद्यालय में 22 जून को सुषान्त द्वारा माइम की प्रथम प्रस्तुति इसी विद्यालय के बच्चों व शिक्षकों के मध्य दी गई। नर्सरी से कक्षा 12 तक के बच्चों के मध्य किए गए इस माइम के जरिए पर्यावरण प्रदूषण के जलजीवों पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव को बखूबी पेश किया गया। कॉमरेड आलोक खरे व स्कूल प्रशसन का इसमें उत्साहजनक सहयोग रहा।
इसी दिन शाम को पालदा स्थित कचड़ा बीनने वालों और दूसरों के घरों में काम करने वाली मेहनतकश महिलाओं के अधिकारों के लिए एकजुट करने वाले जनविकास केन्द्र की मेहनतकश महिलाओं और उनके बच्चों के मध्य भी उन्होंने प्रभावी प्रस्तुति दी। कृष्णार्जुन और फादर रॉय ने इस सभा को सफल बनाने में योगदान दिया।
रूपांकन के साथी अशोक दुबे, साथी शारदा बहन, अरविंद, घनश्याम, दीपिका, डोलू (रितिका), राज आदि के सहयोग से शंकरगंज, जिंसी में इप्टा के तत्वावधान में तीसरी प्रस्तुति की गई थी। कार्यक्रम का प्रारंभ करते हुए इंदौर इप्टा के सचिव अषोक दुबे ने उपस्थित लोगों को इंदौर में 2, 3 व 4 अक्टूबर को आयोजित होने वाले चौदहवें राष्ट्रीय सम्मेलन की जानकारी दी और कहा कि लगभग हर 15 दिन में इप्टा की ओर से इंदौर में की जा रहीं ये प्रस्तुतियाँ राष्ट्रीय सम्मेलन की तैयारियों का हिस्सा हैं और आगामी 22 जुलाई को अमृतलाल नागर की कहानियों पर मुम्बई के कलाकार नाटक प्रस्तुत करेंगे।
इस मौके पर इंसानियत और सूफियाना रवायत को कव्वाली के जरिए देश-विदेशों तक पहुँचाने वाले अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मशहूर कव्वाल अहमद साबरी की पाकिस्तान के कराची में दिनदहाड़े हुई हत्या और बंगाल में इंसानियत के लिए आवाज बुलंद करने वाले ब्लॉगरों की हत्या की घोर निंदा और विरोध करते हुए अशोक दुबे ने कहा कि अहमद साबरी हों, दाभोलकर, पानसरे या कलबुर्गी हों वे हमारी आवाज, हमारे विचारों को कभी नहीं मार सकते क्योंकि वे पूरी फिजां में घुले हुए हैं। इंदौर इप्टा की ओर से अहमद साबरी को श्रृद्धांजली दी गई।
शान्ति एकजुटता समिति के संयोजक कॅामरेड पी.सी. जैन, इंदौर इप्टा अध्यक्ष विजय दलाल, अरविंद पोरवाल, अजय लागू, जयप्रकाश, इंदौर के नाट्यकर्मी सुशील गोयल, रवि और उनके साथी, शिल्पकार जितेन्द्र वेगड़, इप्टा के साथी पूजा सोलसे, महिमा सिंह, राज लोगरे, साक्षी और अंशुल सोलंकी के अलावा दस साल से लेकर सत्तर वर्ष की उम्र तक के लोग इस कार्यक्रम में उपस्थित थे।
कार्यक्रम के अंत में कॅामरेड पी.सी.जैन ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि हम शांति और अमन चाहने वाले लोग हैं जो पृथ्वी को खुशहाल रखना चाहते हैं। हजारों करोड़ रुपया परमाणु संयंत्र पर खर्च करने के बजाए भारत में लोगों को शिक्षा, रोजगार और अच्छा स्वास्थ्य उपलब्ध करवाना अधिक जरूरी है परंतु सरकार निजी स्वार्थ के चलते पूरे देश को फिर से विदेशियों के हाथ में सौंप रही है। लेकिन हम ऐसा नहीं होने देंगे। कार्यक्रम का संचालन अशोक दुबे और सारिका श्रीवास्तव ने किया।