Monday, May 29, 2023

किशोर मन में सामाजिक सरोकारों के बीज

भिलाई इप्टा का 25वां बाल रंग शिविर 

नन्हे कलाकारों ने मंच पर जब अपनी इंद्रधनुषी कलात्मक कल्पनाओं को मंच पर साकार होते देखा तो उनकी ही नहीं बल्कि उनके पालकों सहित सैकड़ों दर्शकों की खुशी का ठिकाना नहीं था। किसी की प्रतिभा नृत्य तो किसी की अभिनय के रूप में दिख रही थी। उनकी इस रचनात्मकता में लोकरंजन तो था ही जनचेतना का पैगाम भी था। नेहरु सांस्कृतिक भवन इप्टा द्वारा 25 मई, गुरुवार शाम ऐसा ही मोहक वें सांस्कृतिक नजारा यादगार ग्रीष्मकालीन बाल एवं तरुण नाट्य प्रशिक्षण शिविर का था। अवसर था इप्टा भिलाई के पच्चीसवें 25 दिवसीय ग्रीष्मकालीन बाल समापन समारोह का।

खुशनुमा माहौल में खचाखच भरे सदन में बच्चों ने अपनी प्रतिभा और लगन से तैयार नृत्य, नाटक और गीतों से लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। पहले दिन का आगाज इप्टा गीत व गीतकार शैलेंद्र, संगीतकार सलिल चौधरी व रंगकमी हबीब तनवीर की जन्म शताब्दी वर्ष स्मरण में "तू जिंदा है तू जिंदगी की जीत पर यकीन कर " और "पुराने दिन पुराने पल" मणिमय मुखर्जी व बीबी परगनिहा संगीत निर्देशित जनगीतों को बच्चों ने प्रस्तुत किया। इसके बाद बच्चों ने जब राजगीत "अरपा पैरी के धार" और "हमर सुघ्घर छत्तीसगढ़"लोकगीत की सुरीली प्रस्तुति दी तो सभी भावविभोर हो गये। 

रंगबिरंगे स्थानीय परिधान में सजे भानुराज, हर्ष, हामिद, आदर्श, विक्रम, मयंक, अंशुमन, संकेत, धान्या, श्रुति, वर्तिका, टिवंकल, सृष्टि, अर्पिता, चैतन्य अदिबा, कृष ने आकर्षक गरबा नृत्य का जादू बिखेरा जिसका निर्देशन बी किशोर अदिति व निकिता ने किया। इसके बाद चारु श्रीवास्तव, नरेंद्र पटनारे, प्रतिष्ठा, निहारिका, प्रशस्ति अनन्या ,सुजल, अक्षत, सुमेध, सिद्ध, ऋषभ दिलकश अंदाज में सूफी गीत "मेरा मुर्शिद खेले होली" से समां बांधा।लोकनृत्य व गरबा का जलवा फ्यूजन के रूप में तैयार रोहित व गौरी निर्देशित नृत्य डांस का भूत दर्शकों को खूब भाया। स्वरा, नैन्सी, दर्शन, श्रेया, नीतिज्ञ तान्या और अनितेज आदि बच्चों ने मोहक प्रस्तुति दी। संगवारी रे.. की लोकधुन पर थिरकते पारंपरिक परिधान में राजे वाणी, गोरी, निकिता, पलक, चारू, आकाश, प्रतिष्ठा, श्रीकांत, तनिष्क रिया आदि ने नयनाभिराम डंडा और करमा नृत्य से जमकर प्रशंसा बटोरी।  

कात्यायनी की कविता पर केंद्रित डॉ. विजय व नरेंद्र पटनारे निर्देशित "सात भाइयों की एक बहन चंपा" के प्रभावी नाट्य मंचन में आस्था, कुमकुम, अनन्या, अरीबा, संकेत व आदर्श और नरेंद्र ने अच्छा अभिनय किया। स्त्री शोषण पर आधारित इस माइम (मूकाभिनय) की कहानी में एक स्त्री पारिवारिक जिम्मेदारियों के दबाव के बीच किस तरह जीवन निर्वाह करती है। विवाह होने पर पति भी प्रताड़ित करता है और उसकी संतान को पैसे के लालच में बेच देता है लेकिन पुरुषप्रधान समाज में शोषित होने के बाद भी वह मुरझाती नहीं, बल्कि फूल की तरह पूरे सौंदर्य व माधुर्य के साथ खंदक से बाहर निकलती है और पूरी गरिमा के साथ जीवन आरंभ करती है।

इप्टा के प्रांतीय अध्यक्ष मणिमय मुखर्जी, राष्ट्रीय सचिव  राजेश श्रीवास्तव, सुचित्रा मुखर्जी और शिविर प्रभारी श्रीकांत ने शिविर व कार्यक्रम की भूमिका से अवगत कराया।
आरंभ में मुख्य अतिथि छत्तीस गढ़ हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष रवि श्रीवास्तव और विशेष अतिथि वरिष्ठ रंगकर्मी डी.वी. रायचौधरी ने आयोजन को सरहना करते हुए नन्हे कलाकारों की हौसला अफजाई की। मणिमय मुखर्जी ने इप्टा भिलाई के 1982 से अब तक की यात्रा व राष्ट्रीय सचिव राजेश श्रीवास्तव ने 25 वे शिविर पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम में रंगकर्मी एसके मजूमदार, प्रदीप शर्मा, सुप्रियो सेन , शक्तिपद चक्रवर्ती व दुष्यंत हरमुख आदि उपस्थित थे। अतिथियों का स्वागत सुचित्रा मुखर्जी, चारु श्रीवास्तव, कार्यक्रम का संचालन इप्टा के रणदीप अधिकारी व आभार प्रदर्शन मिलाई इप्टा | अध्यक्ष रोशन घड़ेकर ने किया। 

दूसरे दिन शुक्रवार दूसरे दिन 26 मई को नेहरु सांस्कृतिक सदन में तीन नाटकों का मंचन हुआ। नाटक अंधेर नगरी चौपट राजा, स्कूटर और एक मोनोलाग वार्ड नं छ: की की प्रभावी प्रस्तुति हुई । समारोह के मुख्य अतिथि छत्तीसगढ़ साहित्य अकदमी के अध्यक्ष ईश्वर सिंह दोस्त और विशेष अतिथि रंगकर्मी अमिताभ पांडे दिल्ली, रंगकर्मी मिनहाज हसन व पत्रकार मृगेंद्र सिंह, कथाकार लोकबाबू तथा छग प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव परमेश्वर वैष्णव थे।

कार्यक्रम की शुरुआत मणिमय मुखर्जी के संगीत निर्देशन में गीतकार शैलेंद्र, सलिल चौधरी व हबीब तनवीर के जन्म शताब्दी स्मरण पर उनके जनगीत तू जिंदा है.. से इप्टा के कलाकारों ने की। इसके बाद बच्चों ने लोकबाबू लिखित और चित्रांश श्रीवास्तव व अपराजिता निर्देशित स्कूटर नामक नाटक का मंचन किया। निर्देशकीय कसावट और प्रभावी अभिनय के साथ कथानक भी रोचक था। नाटक में पति पत्नी और एक पुत्री और एक पुत्र वाले मध्यमवर्गीय परिवार की कहानी दिखाई गई, जिसमें पुरानी चीजों से जुड़ी यादों के साथ दो पीढ़ियों केविचारों के अंतर को दिखाया गया । घर में पिता के पुराने स्कूटर के बिगड़ते रहने पर युवा बेटा इसे बेचकर नई बाइक खरीदने की बात कहता है लेकिन पिता इसी स्कूटर से पत्नी को बेटे के जन्म के दौरान अस्पताल पहुंचाने और आफिस जाने की जुड़ी यादों के चलते बेचने
से मना करते हैं पर बाद में बेटे का मन रखने के लिए व विवाह योग्य बेटी विवाह के बजट में कटौती कर नई बाईक खरीद लाते हैं और उसे सरप्राइज देना चाहते हैं। इसी दौरान घर पहुंचे समधी व होने वाले दामाद नई बाइक देखकर मजाकिया अंदाज में अपने लिए मांग बैठते हैं। इस बीच देखते हैं कि पुत्र पुरानी स्कूटर को साफ कर रहा है और पिता से कहता है कि बाइक की जरुरत नहीं है हम स्कूटर नहीं बेचेंगे। नाटक में भानूराज, निकिता, मिराज, चेतन्या, वाणी, अनितेज, विशाल, सुंजल, ट्विंकल, पलक, हर्षिका ने अभिनय किया। दरअसल ये कहानी मध्यवर्गीय आर्थिक संघर्ष की कहानी है जिसमे हर इच्छा आर्थिक और सामाजिक दबाब में दम तोड देती है और फिर यही दुराग्रह हमको आर्थिक संघर्ष को तेज कर देता है। 

 दूसरी प्रस्तुति डा. विजय निर्देशित मोनोलाग वार्ड नं छह था, इसमें मौजूदा व्यवस्था पर करारा कटाक्ष करते हुए दिखाया गया कि किस तरह पुलिस चैन अमन के नाम पर जनसरोकार से जुड़े निर्दोष लोगों को अपराधी बताकर जेल की सीखचों के पीछे डाल देती है। अदालत में आरोपपत्र पेश नहीं कर पाती। नाटक में इनकी दारुण व्यथा को जीवंतता से दिखाया गया। अवाम के हितों की आवाज बुलंद करने वाले पांच सामाजिक कार्यकर्ताओं को बतौर कैदी बिना गुनाह बताते जेल में बंद कर दिया गया और पुलिस उनकी सजा माफ करने का प्रलोभन देकर और उनके परिवार की सुरक्षा का हवाला देकर उनसे जबरिया जुर्म कुबूलने का दबाव डालती है। कैदियों के पत्रों से उनकी बेगुनाही का खुलासा होता है। मोनोलाग में ऋषक्ष, अंशुमन, प्रशस्ति, कुमकुम रिया व सिद्धार्थ ने किरदार निभाए। 

चारु श्रीवास्तव निर्देशित भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के नाटक अंधेर नगरी चौपट राजा के मंचन में सिस्टम की खामियों के यथार्थ को चुटीले अंदाज पेश किया गया। इसमें प्रतिभा (गुरु), निहारिका व अंशुमन (चेला) और नन्ही बालिका श्रेया (राजा) सहित दिव्यांश, पल्लवी, अक्षत, सिद्धांत, आकाश व ऋषत्र ने अभिनय किया। नाटक में दिखाया गया कि अपने दो चेलों को गुरु बोलता है कि जिसके राज मे भाजी से लेकर खाजा(मिठाई) तक टका सेर में मिलता है ऐसी जगह नहीं रहना है लेकिन एक चेला असहमत होता है। वह दीवार गिरने से बकरी के मरने पर बतौर आरोपी राज दरबार में पेश किया जाता है। मौत के लिए कसाई से लेकर मिस्त्री आदि पर इल्जाम लगाने व आखिरकार चेला को फांसी की सजा सुनाई जाती है। जब गुरु को पता लगता है तो वह राजा से बोलता है इस समय जो बहुत शुभ मुहुर्त है, जो फांसी चढ़ेगा वो सीधे स्वर्ग जाएगा। इस तरह राजा फांसी के लिए तैयार हो जाता है और चेला बच जाता है और इस तरह भारतेंदु के प्रसिद्ध नाटक को आज की व्यवस्था पर व्यंग के रूप में प्रस्तुत किया गया। 

कार्यक्रम के आरंभ में मुख्य अतिथि ईश्वर सिंह दोस्त व अन्य अतिथियों ने आयोजन की सराहना कर बच्चों का उत्साह बढ़ाया। इप्टा की सुचित्रा मुखर्जी, राजेश श्रीवास्तव, मणिमय मुखर्जी, श्रीकांत, देवनारायण साहू व चारू श्रीवास्तव ने अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन रणदीप अधिकारी व आभार प्रदर्शन रोशन घड़ेकर ने किया।।

रिपोर्ट: चित्रांश, विजय

Sunday, May 28, 2023

हट्टमाला के उस पार ये दुनिया रंगीन

भारतीय जन नाट्य संघ, अशोक नगर (मध्य प्रदेश) की सत्रहवीं नाट्य कार्यशाला का हुआ भव्य समापन

रंगकर्म और सांस्कृतिक क्षेत्र में 35 वर्षों से सक्रिय भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) अशोकनगर की सत्रहवीं बाल, किशोर एवं युवा नाट्य कार्यशाला का भव्य समापन समारोह 27 मई को संपन्न हुआ। 1 मई से 27 मई तक चली इस नाट्य कार्यशाला में 50 से ज़्यादा प्रतिभागियों ने भागीदारी की है और नाटक, नृत्य, जनगीत, क्राफ्ट, चित्रकला, लोक संगीत आदि अनेक कलारूपों का प्रशिक्षण प्राप्त किया है।

इस कार्यक्रम का उद्घाटन प्रख्यात चित्रकार मुकेश बिजौले (उज्जैन) और कवयित्री आरती (भोपाल) ने किया। बता दें कि आरती "समय के साखी" पत्रिका की संपादक हैं। इस पत्रिका के कविता विशेषांक का विमोचन अनौपचारिक उद्घाटन के बाद कवि,लेखक और संपादक निरंजन श्रोत्रिय और मंच पर उपस्थित अतिथियों ने किया । इस विशेषांक में "2000 के बाद की युवा कविता" में अशोकनगर इप्टा के युवा कवि अभिषेक 'अंशु' और अरबाज खान की कविताएं भी प्रकाशित हुई हैं। 

कार्यक्रम की शुरुआत जन भावनाओं को प्रतिबिंबित करने वाले जनगीतों से हुई। इन गीतों में हरिओम राजोरिया द्वारा लिखित "पढ़ के हम तो इंकलाब लायेंगे" और आनंदमोहन द्वारा लिखित "ये फैसले का वक्त है" का सामूहिक गायन हुआ।

समापन समारोह में इस बार दो नाटकों का प्रदर्शन किया गया। पहला नाटक हैदराबाद से आये युवा रंगकर्मी रवि कुमार के निर्देशन में तैयार "हट्टमाला के उस पार" का मंचन हुआ। यह नाटक बांग्ला के ख्यात लेखक बादल सरकार ने लिखा है और इस नाटक का हिन्दी भावानुवाद अभिषेक गोस्वामी ने किया है। यह नाटक गैर-बराबरी पर खड़ी पूंजीवादी व्यवस्था के दोषों को उजागर करते हुए साम्यवादी सामाजिक व्यवस्था को स्थापित करने का संदेश देता है। इस नाटक में एक ऐसे गांव का ज़िक्र है जहां ना तो पैसों की अवधारणा है और ना ही संपत्ति संग्रह करने का कोई चलन। यह समाज पारस्परिक सहयोग से कार्य करता है। परिणामवश एक ऐसे समाज का निर्माण होता है जहां हत्या, लूटपाट, झगड़े जैसी विसंगतियां पहुंच ही नहीं पाई हैं। हट्टमाला से आए दो चोर इस दुनिया के साथ सामंजस्य बिठाने का संघर्ष करते हैं। वो विश्वास नहीं कर पाते कि ऐसी दुनिया हो भी कैसे सकती है जहां धन और पैसा का चलन नहीं और जहां लोगों ने जेलखाना, पुलिस स्टेशन जैसे शब्द सुने तक नहीं। दोनों चोर अपने पुराने चोरी- चपाटी वाले जीवन के अनुभवों के अनुसार ही यहां भी चोरी करने का प्रयत्न करते हैं। नाटक उनके इसी नए समाज में होने वाले संघर्ष के बारे में है। यह नाटक एक नई और अनूठी दुनिया की संकल्पना करता है। आमजन का प्रतिनिधित्व करने वाला "कोरस" भी इसी विचार को दृढ़ता से स्थापित करने में सहयोग करता है। हालांकि ऐसे समाज की परिकल्पना करना आज के समय में बेहद आदर्शवादी लगता है, परंतु यह नाटक एक उम्मीद छोड़ जाता है कि अगर समाज समग्र रूप से एक हो जाए तो हम विसंगतियों का उन्मूलन ज़रूर कर सकते हैं।  एक स्वस्थ समाज वर्षों से चोरी के सिद्धांत में पारंगत लोगों को भी बदलने तथा उनके लिए समाज में जगह बनाकर उचित मार्ग पर लाने का माद्दा रखता है।

दूसरा नाटक इप्टा अशोकनगर के साथियों के संयुक्त प्रयास से निर्देशित "ये दुनिया रंगीन" (लेखक : सफदर हाशमी) में छोटी उम्र के अनेक अभिनेताओं ने अभिनय किया। इस नाटक का संगीत अशोकनगर के युवा रंगकर्मी हर्ष चौबे ने तैयार किया है। यह नाटक एकदम नए बच्चों को लेकर तैयार किया गया है। नाटक पूरी दुनिया में फैले हुए रंगों की विविधता और इसे बचाये रखने की बात करता है। विविध रंगों ने ही इस दुनिया को आशा, उम्मीद और जोश से परिपूर्ण बनाया है। यदि रंग न हों तो पूरी दुनिया नाउम्मीदी, निराशा से लबालब होकर बेरंगी हो जाएगी। इस नाटक की साधारणता और वैज्ञानिकता इसे रोचक और असाधारण बनाती है। नाटक में बच्चे अनेकता में एकता की बात करते हैं और संदेश देते हैं कि दुनिया में अगर ये रंग नहीं रहे तो ये दुनिया अपनी पहचान खो देगी। नाटक संगीत प्रधान है और इस नाटक में रंगों के गीत हैं और हर पात्र नाच और गाकर अपनी बात करता है। छोटे बच्चे रंगों की जरूरत को नाचकर , गाकर  बड़ी खूबसूरती से व्यक्त करते हैं  इस नाटक में विभिन्न रंगों के माध्यम से दुनिया को रंगीन दिखाकर यह संदेश दिया गया है कि जिस तरह कई रंगों से मिलकर एक सुंदर सतरंगी इंद्रधनुष बनता है उसी तरह विभिन्न देश, धर्म, संप्रदाय, जाति, भाषा, संस्कृति, रहन-सहन, रीति-रिवाज, आचार-विचार जैसी विविधताओं से एक सुंदर और रंगीन दुनिया बनती है। इसी अनेकता में एकता से बनी दुनिया खुशहाल, रंगीन और खूबसूरत होती है।
नाटकों के अलावा "बधाई" लोकनृत्य की प्रस्तुति हुई। इस सामूहिक नृत्य का निर्देशन अशोकनगर इप्टा की युवा रंगकर्मी दीपिका शर्मा ने किया है।

इस अवसर पर बच्चों की रचनात्मकता को रेखांकित करने वाली रंग गतिविधियों तथा कलाकृतियों की फ़ोटो प्रदर्शनी भी पंकज दीक्षित के निर्देशन में लगाई गई। 
इप्टा अशोकनगर की अध्यक्ष सीमा राजोरिया ने बताया कि इप्टा अशोकनगर ने बच्चों के थिएटर पर पिछले वर्षों में 16 नाट्य कार्यशालाएं की हैं और बच्चों, किशोरों और युवाओं की सांस्कृतिक अभिरुचियों को परिष्कृत में मदद की। वहीं इप्टा अशोकनगर के सचिव अभिषेक अंशु ने कहा कि इप्टा ने अपनी सक्रियता से राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान रेखांकित की है और अनेक अभिनेता, गायक, चित्रकार, संगीतकार, निर्देशक और लेखक तैयार किए हैं।
इस सांस्कृतिक और रचनात्मक कार्यक्रम में शहर भर के आम जन, रंगकर्मी, कलाकार, लेखक, कवि, छात्र आदि की सक्रिय उपस्थिति रही।

 रिपोर्ट: इप्टा, अशोक नगर

Saturday, May 27, 2023

केकरा केकरा नाम बताऊॅं इस जग में बड़ा लूटेरवा हो

लोक संगीत पर आधारित इप्टा जेएनयू  की प्रस्तुति - 'लोक विरासत'
भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) के 80वें स्थापना दिवस (25 मई) के अवसर पर इप्टा की विभिन्न इकाइयों ने देशभर में सांस्कृतिक आयोजन किए। इसी कड़ी में इप्टा जेएनयू ने 26 मई को लोक संगीत पर आधारित कार्यक्रम ‘लोक विरासत’ का आयोजन किया जिसमें कबीर, बुल्ले शाह, फ़रीद के कलाम के साथ ही बिदेसिया और इप्टा की अपनी फिल्म ‘धरती के लाल’ में शामिल लोक गीतों की प्रस्तुति दी। प्रस्तुतियों के दौरान भारत में प्रगतिशील सांगीतिक परंपरा और उसमें इप्टा के योगदान पर वरिष्ठ कलाधर्मी और रंग-संगीतज्ञ काजल घोष ने दर्शकों से बातचीत की। 

वैश्वीकरण और बाज़ार की मार धीरे-धीरे ग्रामीण और लोक परिवेश को भी  खा रही है, इसकी लपटें आज देश से देस तक की यात्रा कर चुकी हैं। कबीर हों या बुल्ले शाह, या फिर अन्य मध्यकालीन प्रगतिशीलता के पुरोधा, वे लोक से सीधे जुड़े रहे। उन्होंने लोकधर्मिता को आगे बढ़ाया और देस में व्याप्त रूढ़ियों, ढकोसलों, भेद-भाव को चुनौती दी। उनके बोलों का तकाजा यह था कि अगर वे मौजूदा दौर में रहते तो शायद उन्हें भी फासीवादी सांप्रदायिक ताकतों द्वारा देश और संस्कृति का विरोधी ठहरा दिया जाता। इप्टा जेएनयू ने “लोक विरासत” की प्रस्तुति के लिए अपने इन्हीं प्रगतिशील पुरखों की रचनाओं का चयन किया था। लोक में प्रेम की पैरोकारी करने वाले कबीर के गीत ‘ज़रा हल्के गाड़ी हाँको मोरा राम गाड़ीवाला’ की संगीतमयी प्रस्तुति के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई। इसके बाद भेद पैदा करने वाले तत्वों से आगाह करने वाले कबीर के ही गीत ‘होशियार रहना रे नगर में चोर आवेगा’, इंसान के इंसान से भेद को नकारती बाबा फ़रीद की रचना ‘वेख फ़रीदा मिट्टी खुल्ली’ व बुल्ले शाह रचित ‘माटी कुदम करेंदी यार’, बिदेसिया पर आधारित राममूर्ति चतुर्वेदी के गीत ‘दिनवा गिनत मोरी घिसली उमरिया’, राजस्थानी लोकगीत ‘कदी आवो नी रसीला म्हारे देस’ और अंत में इप्टा के बैनर तले 1946 में आई फिल्म ‘धरती के लाल’ के लोकगीत ‘केकरा केकरा नाम बताऊँ इस जग में बड़ा लूटेरवा हो’ की संगीतमयी प्रस्तुति इप्टा जेएनयू के कलाकारों ने दी। 
कार्यक्रम की प्रस्तुति में कोशिश यह रही कि बहुल लोक के गीतों को शामिल किया जाए साथ ही भारत में प्रगतिशील संगीत परंपरा में लोक संगीत के योगदान पर रंग-संगीतज्ञ काजल घोष से बात-चीत की जाए। गीतों की प्रस्तुति के बीच काजल दा से मंच संचालक रजनीश साहिल की बातचीत का यह दौर जारी रहा। 

कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए रजनीश साहिल ने कहा कि इप्टा के गठन के समय फासीवादी सांप्रदायिक राजनीति अपने पैर जमा रही थी, जिसके खिलाफ़ इप्टा ने आवाज़ उठाई और अपनी प्रस्तुतियाँ कीं। आज जब उसी राजनीति द्वारा संस्कृति का हवाला देते हुए हमें बार-बार एक ‘खास गौरवमयी अतीत’ की ओर देखने के लिए कहा जाता है तो हमने भी तय किया है कि हम अतीत की ओर देखेंगे, लेकिन नफरत की नजर से नहीं बल्कि प्रेम की नज़र से। हम अपने उन पुरखों को याद करेंगे जिन्होंने समाज में प्रेम की बात की और ग़लत को ग़लत कहा, जिन्होंने जन की तकलीफ़ों की बात की। 

लोक संगीत में प्रगतिशील मूल्यों और प्रतिरोध के बारे में बोलते हुए काजल घोष ने कहा कि ‘संगीत में सुर से पहले लय आती है और लय हमारे जीवन में, हमारे कामों में है। जब एक किसान फसल काटता है, एक कारीगर काम करता है या मछुआरा नाव चलाता है तो उसके काम में एक लय होती है। कोई भी व्यक्ति जब श्रम का काम करता है तो उस काम की एक लय होती है और उस लय पर वह अपने दुख-सुख, सपने गुनगुनाता है। जब यह लय और गुनगुनाहट एक व्यक्ति से निकलकर सामूहिकता में आती है तो वह लोक की धुन हो जाती है। कह सकते हैं कि लोक संगीत श्रम से उपजा संगीत है और इस संगीत के साथ कबीर, बुल्ले शाह आदि को गाना अपने आप में प्रगतिशील और प्रतिरोध का संगीत है क्योंकि इन सभी ने अपने समय में जो चीजें गलत थीं उनका विरोध किया, अपने समय से आगे देखते हुए समानता, भाईचारे और प्रगतिशील मूल्यों की बात की। 
अक्सर कहा जाता है कि युवा रील्स की दुनिया में मगन और हताश हो रहा है, वह अपनी जड़ों से दूर हो रहा है, लेकिन इस आयोजन में बतौर श्रोता/दर्शक शामिल होने के लिए निर्धारित समय से पहले ही युवा पहुँचने लगे थे जिससे साबित होता है कि लोक में किसी भी दीवार को ढहा देने की ताकत है। आज जब संकीर्ण राजनीति, पूंजी और तकनीक के गठजोड़ द्वारा तमाम तरह के भेद और वैचारिक अवरोध विश्वविद्यालय परिसर से लेकर आम जन के बीच तक खड़े किए जा रहे हैं तो उन्हे गलाने के लिए लोक कला और लोक संस्कृति का पानी ही इस्तेमाल करना होगा। नफ़रत की दीवारें कितनी ही ऊंची क्यों न हो जाएं, क्रोनि पूंजीवाद कुछ भी क्यों न परोस दे, उसका जवाब हम अपनी लोक विरासत से दे सकते हैं। 

यह वही दौर है जब सत्ता के गलियारों से सीधे तौर पर लोकतंत्र पर हमला जारी है और विश्वविद्यालय इसके पहले निशाने पर हैं। उचित और व्यवस्थित जगह न होने के बावजूद भी इप्टा जेएनयू के साथियों ने लगातार कई दिनों तक प्रस्तुति की तैयारी की। वर्षा आनंद, क्षितिज वत्स, रजनीश साहिल, विनोद कोष्टी ने मिलकर गीतों के बोल से लेकर धुन तक को तैयार किया। ढोलक पर रमेश और हारमोनियम पर अनुला की संगत में इन्द्रदीप, मेघा, वर्षा, कृतिका, वर्षा आनंद, क्षितिज वत्स और मनमोहन ने लोक धुनों पर आधारित गीतों की शानदार प्रस्तुति दी।  पूरे अभ्यास और प्रस्तुति के दरमियान विनोद कोष्टी व संतोष कुमार ने मिलकर तैयारी से संबंधित पहलुओं व व्यवस्थाओं की जिम्मेदारी संभाली। कार्यक्रम का पोस्टर रजनीश साहिल ने तैयार किया और प्रचार-प्रसार की जिम्मेदारी सभी साथियों ने मिलकर उठाई। 

रिपोर्ट: संतोष कुमार