नन्हे कलाकारों ने मंच पर जब अपनी इंद्रधनुषी कलात्मक कल्पनाओं को मंच पर साकार होते देखा तो उनकी ही नहीं बल्कि उनके पालकों सहित सैकड़ों दर्शकों की खुशी का ठिकाना नहीं था। किसी की प्रतिभा नृत्य तो किसी की अभिनय के रूप में दिख रही थी। उनकी इस रचनात्मकता में लोकरंजन तो था ही जनचेतना का पैगाम भी था। नेहरु सांस्कृतिक भवन इप्टा द्वारा 25 मई, गुरुवार शाम ऐसा ही मोहक वें सांस्कृतिक नजारा यादगार ग्रीष्मकालीन बाल एवं तरुण नाट्य प्रशिक्षण शिविर का था। अवसर था इप्टा भिलाई के पच्चीसवें 25 दिवसीय ग्रीष्मकालीन बाल समापन समारोह का।
खुशनुमा माहौल में खचाखच भरे सदन में बच्चों ने अपनी प्रतिभा और लगन से तैयार नृत्य, नाटक और गीतों से लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। पहले दिन का आगाज इप्टा गीत व गीतकार शैलेंद्र, संगीतकार सलिल चौधरी व रंगकमी हबीब तनवीर की जन्म शताब्दी वर्ष स्मरण में "तू जिंदा है तू जिंदगी की जीत पर यकीन कर " और "पुराने दिन पुराने पल" मणिमय मुखर्जी व बीबी परगनिहा संगीत निर्देशित जनगीतों को बच्चों ने प्रस्तुत किया। इसके बाद बच्चों ने जब राजगीत "अरपा पैरी के धार" और "हमर सुघ्घर छत्तीसगढ़"लोकगीत की सुरीली प्रस्तुति दी तो सभी भावविभोर हो गये।
रंगबिरंगे स्थानीय परिधान में सजे भानुराज, हर्ष, हामिद, आदर्श, विक्रम, मयंक, अंशुमन, संकेत, धान्या, श्रुति, वर्तिका, टिवंकल, सृष्टि, अर्पिता, चैतन्य अदिबा, कृष ने आकर्षक गरबा नृत्य का जादू बिखेरा जिसका निर्देशन बी किशोर अदिति व निकिता ने किया। इसके बाद चारु श्रीवास्तव, नरेंद्र पटनारे, प्रतिष्ठा, निहारिका, प्रशस्ति अनन्या ,सुजल, अक्षत, सुमेध, सिद्ध, ऋषभ दिलकश अंदाज में सूफी गीत "मेरा मुर्शिद खेले होली" से समां बांधा।लोकनृत्य व गरबा का जलवा फ्यूजन के रूप में तैयार रोहित व गौरी निर्देशित नृत्य डांस का भूत दर्शकों को खूब भाया। स्वरा, नैन्सी, दर्शन, श्रेया, नीतिज्ञ तान्या और अनितेज आदि बच्चों ने मोहक प्रस्तुति दी। संगवारी रे.. की लोकधुन पर थिरकते पारंपरिक परिधान में राजे वाणी, गोरी, निकिता, पलक, चारू, आकाश, प्रतिष्ठा, श्रीकांत, तनिष्क रिया आदि ने नयनाभिराम डंडा और करमा नृत्य से जमकर प्रशंसा बटोरी।
कात्यायनी की कविता पर केंद्रित डॉ. विजय व नरेंद्र पटनारे निर्देशित "सात भाइयों की एक बहन चंपा" के प्रभावी नाट्य मंचन में आस्था, कुमकुम, अनन्या, अरीबा, संकेत व आदर्श और नरेंद्र ने अच्छा अभिनय किया। स्त्री शोषण पर आधारित इस माइम (मूकाभिनय) की कहानी में एक स्त्री पारिवारिक जिम्मेदारियों के दबाव के बीच किस तरह जीवन निर्वाह करती है। विवाह होने पर पति भी प्रताड़ित करता है और उसकी संतान को पैसे के लालच में बेच देता है लेकिन पुरुषप्रधान समाज में शोषित होने के बाद भी वह मुरझाती नहीं, बल्कि फूल की तरह पूरे सौंदर्य व माधुर्य के साथ खंदक से बाहर निकलती है और पूरी गरिमा के साथ जीवन आरंभ करती है।
इप्टा के प्रांतीय अध्यक्ष मणिमय मुखर्जी, राष्ट्रीय सचिव राजेश श्रीवास्तव, सुचित्रा मुखर्जी और शिविर प्रभारी श्रीकांत ने शिविर व कार्यक्रम की भूमिका से अवगत कराया।
आरंभ में मुख्य अतिथि छत्तीस गढ़ हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष रवि श्रीवास्तव और विशेष अतिथि वरिष्ठ रंगकर्मी डी.वी. रायचौधरी ने आयोजन को सरहना करते हुए नन्हे कलाकारों की हौसला अफजाई की। मणिमय मुखर्जी ने इप्टा भिलाई के 1982 से अब तक की यात्रा व राष्ट्रीय सचिव राजेश श्रीवास्तव ने 25 वे शिविर पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम में रंगकर्मी एसके मजूमदार, प्रदीप शर्मा, सुप्रियो सेन , शक्तिपद चक्रवर्ती व दुष्यंत हरमुख आदि उपस्थित थे। अतिथियों का स्वागत सुचित्रा मुखर्जी, चारु श्रीवास्तव, कार्यक्रम का संचालन इप्टा के रणदीप अधिकारी व आभार प्रदर्शन मिलाई इप्टा | अध्यक्ष रोशन घड़ेकर ने किया।
दूसरे दिन शुक्रवार दूसरे दिन 26 मई को नेहरु सांस्कृतिक सदन में तीन नाटकों का मंचन हुआ। नाटक अंधेर नगरी चौपट राजा, स्कूटर और एक मोनोलाग वार्ड नं छ: की की प्रभावी प्रस्तुति हुई । समारोह के मुख्य अतिथि छत्तीसगढ़ साहित्य अकदमी के अध्यक्ष ईश्वर सिंह दोस्त और विशेष अतिथि रंगकर्मी अमिताभ पांडे दिल्ली, रंगकर्मी मिनहाज हसन व पत्रकार मृगेंद्र सिंह, कथाकार लोकबाबू तथा छग प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव परमेश्वर वैष्णव थे।
कार्यक्रम की शुरुआत मणिमय मुखर्जी के संगीत निर्देशन में गीतकार शैलेंद्र, सलिल चौधरी व हबीब तनवीर के जन्म शताब्दी स्मरण पर उनके जनगीत तू जिंदा है.. से इप्टा के कलाकारों ने की। इसके बाद बच्चों ने लोकबाबू लिखित और चित्रांश श्रीवास्तव व अपराजिता निर्देशित स्कूटर नामक नाटक का मंचन किया। निर्देशकीय कसावट और प्रभावी अभिनय के साथ कथानक भी रोचक था। नाटक में पति पत्नी और एक पुत्री और एक पुत्र वाले मध्यमवर्गीय परिवार की कहानी दिखाई गई, जिसमें पुरानी चीजों से जुड़ी यादों के साथ दो पीढ़ियों केविचारों के अंतर को दिखाया गया । घर में पिता के पुराने स्कूटर के बिगड़ते रहने पर युवा बेटा इसे बेचकर नई बाइक खरीदने की बात कहता है लेकिन पिता इसी स्कूटर से पत्नी को बेटे के जन्म के दौरान अस्पताल पहुंचाने और आफिस जाने की जुड़ी यादों के चलते बेचने
से मना करते हैं पर बाद में बेटे का मन रखने के लिए व विवाह योग्य बेटी विवाह के बजट में कटौती कर नई बाईक खरीद लाते हैं और उसे सरप्राइज देना चाहते हैं। इसी दौरान घर पहुंचे समधी व होने वाले दामाद नई बाइक देखकर मजाकिया अंदाज में अपने लिए मांग बैठते हैं। इस बीच देखते हैं कि पुत्र पुरानी स्कूटर को साफ कर रहा है और पिता से कहता है कि बाइक की जरुरत नहीं है हम स्कूटर नहीं बेचेंगे। नाटक में भानूराज, निकिता, मिराज, चेतन्या, वाणी, अनितेज, विशाल, सुंजल, ट्विंकल, पलक, हर्षिका ने अभिनय किया। दरअसल ये कहानी मध्यवर्गीय आर्थिक संघर्ष की कहानी है जिसमे हर इच्छा आर्थिक और सामाजिक दबाब में दम तोड देती है और फिर यही दुराग्रह हमको आर्थिक संघर्ष को तेज कर देता है।
दूसरी प्रस्तुति डा. विजय निर्देशित मोनोलाग वार्ड नं छह था, इसमें मौजूदा व्यवस्था पर करारा कटाक्ष करते हुए दिखाया गया कि किस तरह पुलिस चैन अमन के नाम पर जनसरोकार से जुड़े निर्दोष लोगों को अपराधी बताकर जेल की सीखचों के पीछे डाल देती है। अदालत में आरोपपत्र पेश नहीं कर पाती। नाटक में इनकी दारुण व्यथा को जीवंतता से दिखाया गया। अवाम के हितों की आवाज बुलंद करने वाले पांच सामाजिक कार्यकर्ताओं को बतौर कैदी बिना गुनाह बताते जेल में बंद कर दिया गया और पुलिस उनकी सजा माफ करने का प्रलोभन देकर और उनके परिवार की सुरक्षा का हवाला देकर उनसे जबरिया जुर्म कुबूलने का दबाव डालती है। कैदियों के पत्रों से उनकी बेगुनाही का खुलासा होता है। मोनोलाग में ऋषक्ष, अंशुमन, प्रशस्ति, कुमकुम रिया व सिद्धार्थ ने किरदार निभाए।
चारु श्रीवास्तव निर्देशित भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के नाटक अंधेर नगरी चौपट राजा के मंचन में सिस्टम की खामियों के यथार्थ को चुटीले अंदाज पेश किया गया। इसमें प्रतिभा (गुरु), निहारिका व अंशुमन (चेला) और नन्ही बालिका श्रेया (राजा) सहित दिव्यांश, पल्लवी, अक्षत, सिद्धांत, आकाश व ऋषत्र ने अभिनय किया। नाटक में दिखाया गया कि अपने दो चेलों को गुरु बोलता है कि जिसके राज मे भाजी से लेकर खाजा(मिठाई) तक टका सेर में मिलता है ऐसी जगह नहीं रहना है लेकिन एक चेला असहमत होता है। वह दीवार गिरने से बकरी के मरने पर बतौर आरोपी राज दरबार में पेश किया जाता है। मौत के लिए कसाई से लेकर मिस्त्री आदि पर इल्जाम लगाने व आखिरकार चेला को फांसी की सजा सुनाई जाती है। जब गुरु को पता लगता है तो वह राजा से बोलता है इस समय जो बहुत शुभ मुहुर्त है, जो फांसी चढ़ेगा वो सीधे स्वर्ग जाएगा। इस तरह राजा फांसी के लिए तैयार हो जाता है और चेला बच जाता है और इस तरह भारतेंदु के प्रसिद्ध नाटक को आज की व्यवस्था पर व्यंग के रूप में प्रस्तुत किया गया।
कार्यक्रम के आरंभ में मुख्य अतिथि ईश्वर सिंह दोस्त व अन्य अतिथियों ने आयोजन की सराहना कर बच्चों का उत्साह बढ़ाया। इप्टा की सुचित्रा मुखर्जी, राजेश श्रीवास्तव, मणिमय मुखर्जी, श्रीकांत, देवनारायण साहू व चारू श्रीवास्तव ने अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन रणदीप अधिकारी व आभार प्रदर्शन रोशन घड़ेकर ने किया।।
रिपोर्ट: चित्रांश, विजय
कारवां चलता रहे ।
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