Tuesday, January 17, 2012

जब भिलाई की सड़कों पर उतरा भारत

हवाओं में रहेगी  ख़्यालों की बिजलियां


इन हवाओं में रहेगी मेरे ख़्यालों की बिजलियां, 
ये मुश्ते खाक़ है रहे न रहे
- बिस्मिल

‘‘ये विरासत और वर्तमान की प्रखर चेतना है। इनका मेल ही परिवर्तन का साक्षी होगा’’ - श्री प्रसन्ना के मुख से अनायास ये शब्द निकल पड़े जब वो आकाशगंगा से निकाली गई सांस्कृतिक रैली में सम्मिलित हुए। करीब साढे़ तीन बजे से लेकर छः बजे तक भिलाई की सड़कों को देशभर के करीब 22 राज्यों के कलाकार और रंगकर्मियों ने अपने-अपने स्थानीय नृत्यों, गीतों और नारों से सराबोर कर दिया। करीब एक किलोमीटर लंबी कलाकारों की पाँत में भारत की सांस्कृतिक विविधता का कलरव था, और धीरे-धीरे ढलती सांझ में ढोल नगाड़ों की ताल पर गहरा होता आसमान का लाल रंग।


एक पान वाले ने गुजरते हुए राहगीर से कहा - ‘‘आप भी जाइये आपके पंजाब वाले भी हैं, सारे जगह से लोग आए हैं, हमारे बिहार से भी हैं’’। ये दुकान सेक्टर छः के मस्जिद के नुक्कड़ पर थी। मस्जिद की ओर इशारा करते हुए उस व्यक्ति ने बताया कि इस सेक्टर में इस मस्जिद के पीछे गिरजाघर भी हैं। अल्लाह और भगवान को तो हमने बांट लिया, बस हमारे दिल न बंटने पाएं। रैली अपनी छाप स्थानीय लोगों पर भलीभांति छोड़ रही थी। सबके दिलों में सद्भावना उमड़ रही थी। एक तरफ मौलवी साहब का हाथ पकड़े पादरी और पुजारी चल रहे थे वहीं दूसरी तरफ बंगाल के बाउल कलाकार प्रेम की गंगा बहा रहे थे।


एक साइकिल सवार ने पूछा कौन-सी पार्टी हैं भैया ? मैंने कहा, ये देशभर से आए कलाकार हैं, जवाब आया - ‘‘हाँ.. हाँ.. मैंने अखबार में पढ़ा था, नेहरू सांस्कृतिक केन्द्र में हैं न कार्यक्रम?’’ और वह आगे बढ़ गया। तेलंगाना का जोश, कश्मीर की ललकार, पंजाब की हुंकार, बिहार का रस, झारखण्ड की ताल, दिल्ली की मुस्कान, छत्तीसगढ़ के वाद्य, मध्य प्रदेश के गीत और सारे देश के नारों में भिलाई नगर मंत्रमुग्ध-सा निहार रहा था। एक तरफ रेलगाड़ी के जाने की आवाज़ और दूसरी तरफ प्रजा का कोलाहल, दोनों के द्वंद्व से जूझती मानवता को लोकतंत्र का संदेश देती रैली ने नेहरू सांस्कृतिक भवन में विराम लिया। सूरज ढल गया पर शब्द अभी भी कदमतालों, गीतों, नारों, विचारों में जुगनुओं की तरह तैर रहे थे। 


भिलाई के गलियारों से गुजरती 22 राज्यों की ‘‘सांस्कृतिक रैली’’ जब ढ़ोल नगाड़ों के बीच नेहरू सांस्कृतिक केन्द्र पहुँची तो बिना तकनीकी मदद के नगाड़ों के टंकारों के बीच मनुष्य के गले की आवाज और सुर मिलाते, दोहराते बीसियों - दर्जनों गलों ने अपनी बात हजारों कानों तक पहुँचा दी कि प्रख्यात रंगकर्मी प्रसन्ना जी इप्टा के ‘लोगो‘ नगाड़ा वादक के शिल्प का अनावरण करके समारोह का उद्घाटन कर रहे हैं। ये तकनीक की ताकत के ऊपर मनुष्य की सामूहिक इच्छाशक्ति की विजय थी।


- इप्टानामा, 27 दिसंबर 2011























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