राह दिखाती है इप्टा
25 मई को इप्टा के स्थापना दिवस पर इप्टा रायगढ़ द्वारा ‘‘इप्टा और मैं’’ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम शुरु करने से पहले वरिष्ठ प्रगतिशील कवि भगवत रावत के दुःखद निधन पर श्रद्धांजलि अर्पित की गई। उस के बाद ग्रीष्मकालीन बाल रंग शिविर की प्रतिभागी एवं इप्टा की सदस्य स्वप्निल नामदेव और प्रियंका बेरिया ने छत्तीसगढ़ी नृत्य प्रस्तुत किया। बाल रंग शिविर में शिरकत कर रहे बाल कलाकारों एवं शहर के रंगकर्मियों, दर्शकों, कलाकारों तथा वक्ताओं को इप्टा के इतिहास, विकास एवं वर्तमान स्थिति से परिचित कराने के लिए उषा आठले ने ‘‘इप्टा क्या, क्यों, कैसे, कौन, क्या और कहाँ’’ विषय पर पॉवर पॉइंट प्रेजेन्टेशन देते हुए 25 मई 1943 को मुम्बई के मारवाड़ी हॉल में आयोजित इप्टा के स्थापना सम्मेलन, सेन्ट्रल कल्चरल ट्रुप का गठन, इसके द्वारा घूम-घूम कर देश भर में प्रदर्शित की जाने वाली ‘स्पिरिट ऑफ इंडिया’, इंडिया इम्मॉर्टल’ जैसी नृत्य नाटिकाओं की जानकारी दी।
इप्टा की स्थापना से जुड़े बलराज साहनी, पं. उदयशंकर, शांतिवर्द्धन, दीना पाठक, ख्वाजा अहमद अब्बास, राजेन्द्र रघुवंशी आदि के छायाचित्र एवं अन्य विवरण प्रस्तुत किये। इप्टा के बैनर पर बनाई गई पहली फिल्म ‘‘धरती के लाल’’ के पोस्टर एवं कुछ दृश्यों के छायाचित्र भी दिखाये गये। सन् 1945 में इप्टा के तीसरे राष्ट्रीय अधिवेशन के लिए इकबाल लिखित ‘‘सारे जहाँ से अच्छा, हिंदोस्ता हमारा’’ गीत की धुन पं. रविशंकर ने विशेष रूप से बनाई थी, वह भी सुनाई गई। 1974-75 तक की इप्टा की गतिविधियों पर संक्षिप्त प्रकाश डाला गया। कुछ वर्षों की निष्क्रियता के बाद राजेन्द्र रघुवंशी के नेतृत्व में इप्टा का पुनर्जन्म एवं 1986 में नवें राष्ट्रीय अधिवेशन से इप्टा की पूरे देश में सक्रियता की चर्चा की गई। 1986 से 2011 तक भिलाई में सम्पन्न हुए इप्टा के तेरहवें राष्ट्रीय सम्मेलन तक का विवरण प्रस्तुत किया गया। साथ ही देशभर में 24 प्रदेशों और केन्द्रशासित प्रदेशों में पाँच सौ से अधिक इकाइयाँ कार्यरत होने की जानकारी दी।
संगोष्ठी ‘इप्टा और मैं’ के पहले सत्र की शुरुआत करते हुए इप्टा रायगढ़ से आरम्भ से जुड़े हुए श्री प्रतापसिंह खोडियार ने कहा कि मध्यप्रदेश इप्टा का पहला राज्य सम्मेलन मई 1982 में रायगढ़ में हुआ था। इसके पहले ही मुमताज भारती, उमाशंकर चौबे, रवीन्द्र चौबे, अजय आठले आदि ने मिलकर इप्टा का गठन कर लिया था। तत्कालीन परिस्थिति में प्रबुद्ध वर्ग की क्या भूमिका हो सकती है तथा वे अन्य कला-विधाओं के माध्यम से समाज की बेहतरी के लिए क्या कर सकते हैं, इस पर चर्चा हुई। इस बात पर आम सहमति बनी कि नाटक ऐसी विधा है, जो अन्य विधाओं की तुलना में अधिक असर करती है। इसके माध्यम से बेहतर सोच विकसित होती है।
रायगढ़ के प्रगतिशील आंदोलन के पुरोधा मुमताज भारती ने बताया कि इप्टा रायगढ़ का दूसरा चरण बहुत महत्वपूर्ण है। इसमें अनेक गतिविधियाँ तेज़ी से चलने लगीं। ग्रीष्मकालीन बाल नाट्य कार्यशाला, पाँच दिवसीय नाट्योत्सव, युवाओं के लिए प्रशिक्षण शिविर आदि आयोजित होने लगे। 1992 में ग्लोबलाइज़ेशन का दौर शुरु होने के साथ सभी कला-विधाओं पर प्रहार होने आरम्भ हुए, दर्शक कम होने लगे और आधुनिक मीडिया की ओर लोग आकर्षित होने लगे। जो जीवन का हिस्सा मानवीय जीवन से सम्बन्धित था, वह इन प्रहारों से कुचला जाने लगा। इन चुनौतियों का सामना इप्टा को करना पड़ रहा है, जो वह बखूबी कर रही है - ज़्यादा ताकत और समझबूझ के साथ। श्री हरकिशोर दास ने इप्टा को निरंतर गतिविधियों का संचालन करने के लिए बधाई देते हुए कहा कि दक्षिणपंथियों का ज़ोर बढ़ता जा रहा है, ऐसी स्थिति में नई पीढ़ी को प्रतिबद्ध ता से मतलब नहीं रह गया है फिर भी इप्टा बच्चों और युवाओं को लेकर काम कर रही है, यह महत्वपूर्ण है।
इप्टा रायगढ़ के पाँच दिवसीय नाट्योत्सव की श्रृंखला का शुभारम्भ अपने नाटक ‘उसकी जात’ से करने वाले वृंदावन यादव ने इप्टा के काम की तुलना मशाल से करते हुए कहा कि जो मशाल 1994 में जलाई गई, वह आज तक जल रही है, यह बड़ी बात है। रंगकर्मी विवेक तिवारी ने 1994-95 से इप्टा के साथ की गई शुरुआत का स्मरण करते हुए कहा कि शुरु में हम ग्लैमर में बह जाते थे, धीरे-धीरे परिपक्वता आ रही है। इप्टा ने कम संसाधनों में काम करते हुए शुरुआत की और बड़ा काम किया। डॉ. अरूण मिश्रा ने इप्टा से अपनी कम दिनों की पहचान होते हुए भी उसके नई दिशा दिखाने की प्रवृत्ति को रेखांकित किया। अंत में अजय आठले ने इप्टा के शुरुआती दिनों में मुमताज भारती ‘पापा’ से कविता पढने की तमीज़ सीखने की बात बताते हुए आगे कहा कि अपने जीवन के असफलता के दौर में इप्टा ने संघर्ष करने का माद्दा पैदा किया। निराशा के दौर में रंगमंच से मुझे प्रेरणा मिली, ताकत मिली इसीलिए मैं आज इस मकाम तक पहुँचा हूँ। संगोष्ठी में श्री एच.एल. ठक्कर, सुश्री कल्याणी मुखर्जी, श्री जगन्नाथ श्रीवास्तव आदि की उल्लेखनीय उपस्थिति रही।
संगोष्ठी के दूसरे सत्र में इप्टा के युवा एवं बाल सदस्यों ने इप्टा से जुड़ने के अपने-अपने अनुभवों को साझा किया। आलोक बेरिया ने कहा कि इप्टा में आने से उसकी बोलचाल की भाषा में सुधार हुआ है। घुल-मिल कर रहने और अपनी बातें खुलकर कहने की क्षमता पैदा हुई। ब्रजेश तिवारी का कहना था कि दो साल में इप्टा से जुड़कर मेरे भीतर का डर दूर हुआ। समझ विकसित हुई। मेरे व्यक्तित्व-विकास में इप्टा का बहुत बड़ा योगदान है। देवसिंह परिहार ‘मोनू’ ने कहा कि इप्टा में आने पर मुझे कभी भी अकेलापन महसूस नहीं हुआ। हर बार नया सीखने को मिलता है। मैं सबको यहाँ के बारे में बताता हूँ। बाबू खान ने ‘बकासुर’ नाटक देखकर इप्टा से जुड़ने की बात कही। संदीप स्वर्णकार ने कहा कि इप्टा में आने पर मुझे पहचान मिली। घर जैसा प्यार, आर्थिक सहयोग भी मिला। राजकिशोर पटेल ने इप्टा से जुड़ने का रोचक इतिहास बताते हुए कहा कि इप्टा मार्गदर्शक का काम करती है और रास्ता दिखाती है। मैं कहीं फँसता हूँ तो इप्टा ही मुझे रास्ता दिखाती है।
इप्टा रायगढ़ की सचिव अपर्णा ने बताया कि वह पहले बहुत अंतर्मुख स्वभाव की और डरपोक थी मगर इप्टा ने उसे मुखर बनाया, पढ़ने-लिखने की प्रेरणा दी। बचपन में ही इप्टा से बाल कलाकार के रूप में जुड़ चुके भरत निषाद ने कहा कि मैं अनजाने अनुशासन में बंधकर आया था। माँ ने वर्कशॉप में भेजा तो अनिच्छा से गया पर फिर मजा आने लगा। बाल कलाकार के रूप में आए और वर्तमान में मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय, भोपाल में अध्ययनरत अजेश शुक्ला ने अपने शुरुआती नाटकों की स्मृतियाँ साझा कीं। अमित सोनी ने कहा कि उसे पहले कुछ भी नहीं आता था और अब वह काफी बदलाव महसूस करता है। स्वप्निल नामदेव ने बताया कि इप्टा ने उसके डर को दूर भगाया। दीपक यादव ने कहा कि इप्टा में आने से उसे अच्छे दोस्त मिले। सुरेन्द्र ने बताया कि यदि वह इप्टा में नहीं आता तो शायद किसी नकारात्मक रास्ते की ओर चला जाता।
उषा आठले ने बताया कि वह पहले मराठी रंगमंच से जुड़ी थी, इप्टा में आने से हिंदी रंगमंच की भी जानकारी मिली। इप्टा की विचारधारा और संगठन ने जीवन में बहुत-कुछ दिया है। अंत में इप्टा रायगढ़ के अध्यक्ष विनोद बोहिदार ने संगीत और रंगमंच के लगाव की चर्चा की और बिलासपुर इप्टा से जुडे़ होने की यादें साझा कीं। इसतरह इप्टा के स्थापना दिवस पर इप्टा से जुड़े नये-पुराने सदस्यों-कलाकारों को संभाषण-सम्प्रेषण ने एक सूत्र में बांधा।
No comments:
Post a Comment