26 मई 2012, इंदौर। विगत दिनों भारतीय जन नाट्य संघ, इप्टा की इंदौर इकाई द्वारा आयोजित ग्रीष्मकालीन शिविर में इप्टा का सत्तरवाँ स्थापना दिवस मनाया गया। इस अवसर पर बच्चों के द्वारा बनाये चित्रों की प्रदर्शनी लगायी गई। बच्चों ने फैज अहमद फैज द्वारा लिखित गाना ”हम देखेंगे, लाजिम है कि हम भी देखेंगे“ और चकमक पत्रिका में आई कविता ”ये बात समझ में आयी नहीं, और अम्मी ने समझाई नहीं“ को कव्वाली के रूप में गाया।
बच्चों ने मूक अभिनय के जरिये तीनों मौसमों को प्रस्तुत करते हुए गरीब लोगों की परेशानियों का मार्मिक चित्रण किया, जिसमें नल में पानी भरने के दौरान होने वाले झगड़ों की बहुत ही मार्मिक तस्वीर पेश की। राज लोगरे ने नुक्कड़ नाटक की समाज में जरूरत बताते हुए कहा कि सभी नाटक करने वाले समूहों को समाज में फैली बुराइयों को नाटक के जरिये लोंगों के सामने लाना चाहिए और जनचेतना लानी चाहिए।
अनामिका पाल ने ”आदिवासी“, ”इप्टा का जन्मदिन“, ”मेरे पापा“, ”आजादी“ इत्यादी खुद के द्वारा लिखी कविताएँ सुनायीं। महिमा, शिवांगी, वर्षा, राज लोगरे ने भी अपनी कविताओं को सुनाया। अमन पाल ने विभिन्न जगहों पर इप्टा के संघर्षों के बारे में बताया। यह सारी गतिविधियां सारिका और नितिन ने बच्चों के साथ मिलकर कार्यशाला के दौरान ही तैयार करवायीं थीं।
जया मेहता ने बच्चों से सफदर हाशमी के नाटक ”मशीन“ की चर्चा करते हुए बताया कि नाटक में मशीन बनाने के लिए किन-किन बातों का ध्यान रखना जरूरी है। साथ ही उन्होंने ये भी बताया कि नाटक में हम जिस पात्र को अभिनीत करते हैं उसी में डूब जाते हैं और इस तरह हम एक और जिंदगी का अनुभव कर लेते हैं। श्री विनीत तिवारी ने मुक्तिबोध कि कविता का मतलब बताते हुए अपनी गलतियों को दूसरों की अच्छाइयों से ऊपर नहीं रखना चाहिये, नहीं तो वह हमारी सारी अच्छाइयों को ढक लेती है।
इस अवसर पर जया मेहता, विनीत तिवारी, शषांक, नितिन, अनुराधा भी उपस्थित थे।
अंत में मिठाई बांटकर इप्टा के स्थापना दिवस की खुशियाँ मनाईं गयीं।
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