उनके रक्त में मार्क्सवाद समाया हुआ था
प्रगतिशील लेखक संघ की सतना इकाई द्वारा रविवार 25 मार्च 2012 को कमलाप्रसाद की प्रथम पुण्य-तिथि पर उनका स्मरण करते हुये कमलाप्रसाद स्मृति का आयोजन किया गया। देश के कोने-कोने से आये प्रगतिशील विद्वानों ने इसमें भाग लेकर कमलाप्रसाद का स्मरण किया और उनको श्रद्धांजलि दी।
आयोजन के प्रथम सत्र का विषय प्रगतिशील आंदोलन और कमलाप्रसाद के योगदान पर एक सार्थक बहस रखी गयी, दूसरा सत्र संस्मरण को भेंट था जिसमें वक्ताओं ने विभिन्न रुपों में कमलाप्रसाद को याद किया। प्रथम सत्र का सचांलन राजेन्द्र शर्मा ने किया। प्रारम्भ करते हुये उन्होंने कहा-कमलाप्रसाद आज भी हम लोगों के बीच जीवित हैं।
प्रहलाद अग्रवाल ने आगतुंक विद्वानों का स्वागत करते हुये कहा, ‘हम विश्वास ही नही कर सकते कि कमलाप्रसाद जिंदा नहीं हैं। उन्होने सतना के बाहर अपने परिवार की तरह मित्र बनाये थे, मै़त्री भाव की स्थापना की व जीवन को गतिशील बनाया।
इस सत्र के अध्यक्ष अजय तिवारी ने अपना बीज वक्तव्य दिया। विषय दिया गया था-‘प्रगतिशील आंदोलन और कमलाप्रसाद।’ उन्होंने कहा कि कमलाप्रसाद की कर्मभूमि बहुत विस्तृत थी। विद्वानों को भोपाल, दिल्ली, बनारस आदि से सतना बुलाया। संगठन और विचार पर बात करनी होगी। वे किस कदर प्रगतिशील आंदोलन से जुड़े रहे इसका मूल्यांकन करना होगा। मेरी पहली मुलाकात वर्ष 1972 में दिल्ली में हुई थीं। उन्होने किसी संदर्भ में कहा था कि मुक्तिबोध के रक्त में मार्क्सवाद समाया हुआ है। यही बात मैं कमला प्रसाद के लिये कहता हूं। वे संगठन से बाहर नहीं रह सकते थे। साम्राज्यवाद से निष्कृति प्रगतिशील आंदोलन की पहली प्रतिज्ञा थीं। दूसरी प्रतिज्ञा सामंतवाद से अलग होने की थी। चीन में पूंजीवाद आगे बढ़ रहा है समाजवाद पीछे हो रहा है। इसलिये प्रगतिशील आंदोलन का जो मूलभूत लक्ष्य है, उससे डिगना नहीं चाहिये। कुछ सिद्धांतों में निष्ठा बनाये रखना, यह एक बहुत बड़ा मानवीय गुण कमलाप्रसाद में था। वे कमांडर थे। एक संगठनकर्ता के रुप में वे अगुआ थे। विचार से खुद को जोड़े रखना है तब अवसरवाद नहीं फैलेगा यह उनका मानना था। वर्ष 1936 का प्रगतिशील संघ का घोषणापत्र बहुत लोगों ने आत्मसात नहीं किया। सज्जाद जहीर ने इस घोषणापत्र को बदला। पार्टी व्यक्ति से बड़ी होती है। कम्यूनिस्ट पार्टी को संगठन में हस्ताक्षेप कम करना चाहिये। आपातकाल के समय कमलाप्रसाद पर कोई आपत्ति नहीं आई। उन्होने आपातकाल का समर्थन किया था। उस समय पार्टी में घोर उथल-पुथल थी। जो विचारधारा परिवर्तन में विश्वास करती है वह प्रगतिशील आंदोलन का आधार बनती है। इस परिवर्तन का लाभ समाज के आखिरी व्यक्ति को मिलना चाहिये। इस बात का विवेक कमलाप्रसाद में था। इस वजह से वे प्रासंगिक बने रहेंगे।
वक्ता आशीष त्रिपाठी ने कहा कि रोज सुबह कमलाप्रसाद का फोन आता था। आज भी उस फोन का इंतजार रहता है। मैं तटस्थ रह कर उनके काम की समीक्षा करना चाहता हूं। प्रगतिशील आंदोलन का लोकव्यापीकरण हुआ है। तीन शक्तियां हैं-प्रगतिशील शक्ति, यथास्थितिवादी शक्ति, पुनरुत्थानवादी शक्ति। कभी पुनरुत्थानवादी शक्ति और प्रगतिशील शक्ति एक जैसी लगती हैं, पर यह एकता नहीं है। दक्षिणपंथी और प्रगतिशील आवाज कभी एक जैसी लगती है। प्रगतिशील आंदोलन भारत का उपजा आंदोलन था, एंसा रामविलास शर्मा और नामवर सिंह ने स्थापित किया है। जितने आंदोलन इस देश में चले उन सब में किसी ठोस विचारधारा का आधार नहीं था। भविष्य का एक स्पष्ट स्वप्न के प्रगतिशील आंदोलन में था। सन् 1970 के बाद कमलाप्रसाद ने प्रगतिशील आंदोलन में एक सक्रिय भूमिका निबाही। कम्यूनिस्ट पार्टी का विघटन, प्रगतिशील आंदोलन का विघटन मूलभूत संघर्ष के कारण हुआ। उस समय की अकविता और अकहानी पर प्रगतिशील आंदोलन की कमी के दर्शन होते हैं। प्रगतिशील अंदोलन के उभार के पीछे नक्सलवाद का उभार था। 1971 से 76 के बीच कुछ महत्वपूर्ण कार्य हुये। इसका परिणाम पहल में देखने को मिला। इसके सम्पादन में कमलाप्रसाद का महत्वपूर्ण योगदान था। कमलाप्रसाद ने प्रगतिशील आंदोलन को जो अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया वह था संवाद कायम करना जो देश के सभी पढने-लिखने वालों के बीच बना। प्रगतिशील लेखक संघ ने सभी लेखकों को सामने लाने का काम किया। इस आंदोलन में बाद में अधिनायकवाद आया, अलोकतंत्रवाद आया। सामूहिकता का क्षय नहीं होना चाहिये किसी कीमत पर।
कमलाप्रसाद के सहपाठी रमांकात शुक्ल ने कमलाप्रसाद के साथ बिताई पुरानी स्मृतियों का जिक्र किया। साथ-साथ पढ़ने के समय के कुछ प्रसंग उन्होने सुनाये। कमलाप्रसाद जैसी विभूति सतना जैसे क्षे़त्र में पैदा हुई यह बहुत बड़ी बात है। वे हर गरीब से मिलते थे। यह उनका शगल था। आज हमारे बीच भले ही कमलाप्रसाद नहीं हैं पर वे हमारे बीच जीवित हैं।
गये तो गये कुछ दे के गये
सुमन कमल और संतोष दे गये
क्षेत्र का सहारा और वंश का पतवार दे गये
अपने नाम को वे अमर कर गये
मधुमास बोले मुरझाये पौधों को पानी देने का काम कमलाप्रसाद ने किया। उनमें कर्मठता थी। उनको मैं इस वजह से गजब का आदमी मानता हूं। पूरे मध्यप्रदेश में उन्होने प्रगतिशील लेखक संघ की इकाइयां बनाईं। सभी को उन्होने प्रेरित किया। वे बहुत अच्छे संगठक थे। उनके व्यक्तित्व को आंका नहीं जा सकता।
जयप्रकाश धूमकेतु जो अभिनव कदम पत्रिका के सम्पादक हैं, ने कहा कि कमलाप्रसाद का म.प्र. इप्टा और म.प्र. प्रगतिशील संघ से गहरा लगाव था। वे एक संस्कृति कर्मी थे, उनका केवल लेखन, कविता और नाटकों भर से लगाव नहीं था। वर्ष 1976 से प्रगतिशील लेखक संघ को गति देने का काम उन्होने किया। उनके काम में बहुत उभार तब आया था। न जाने कितनी कहानी और कविता की कार्यशालायें उन्होने आयोजित की। किसी कहानीकार को किस तरह उन्होने राष्ट्रीय स्तर तक उठाया यह उन्ही की क्षमता थी। वे नये कहानीकारों और कवियों से जोर देकर रचनायें लिखवाते थे। इसीलिये नामवर सिह कमलाप्रसाद को कमांडर कहते थे। अब उनके बाद म.प्र. प्रगतिशील लेखक संघ की बागडोर उन जैसे कमांडर के हाथों में ही जानी चाहिये।
कमलेश शर्मा ने अपने वक्तव्य में कहा कि साहित्य में प्रगतिशीलता जरूरी है। आजादी के बाद बड़े सपने देखे गये और इन सपनों के सच होने की जिम्मेदारी प्रलेस पर थी। आने वाले वर्षों में प्रलेस टूटता रहा, बिखरता रहा और सँवरता रहा। इस दरमियान कमलाप्रसाद ने हर छोटे और बड़े लेखक से संवाद कायम किया।
रमाकांत श्रीवास्तव ने कहा कि उन्होने पूरे देश में जो अपना परिवार बनाया उसके बिना वे कमलाप्रसाद नहीं हो सकते थे। प्रलेस की मजबूती में सबसे बड़ा योगदान कमलाप्रसाद का था। वे साधारण और सामान्य बातचीत में भी प्रगतिशील आंदोलन की बात ले आते थे। साहित्य से बाहर रह कर भी उन्होने साहित्य को प्रभावित किया। साहित्य और संगठन दोनो में कमलाप्रसाद का योगदान था जिसे भुलाया नहीं जा सकता। बहुत से ऐसे लेखक हैं जिन्होंने कमलाप्रसाद से प्रभावित होकर रचना की है। वे एक बेहद खौफनाक समय के खिलाफ खड़े हुये थे। उनके काम में लेखन की चिंता रहती थी। उन्होने आलोचना के सू़त्रों में परम्परा की खोज की। उनके भीतर असहमतियों और निंदा को सहने का अपार धैर्य था। उनके बाद अब कड़ी-दर-कड़ी कैसे उनके छोड़े काम को आगे बढा़या जाये यह हमारा कर्तव्य बनता है। केवल सिद्धांत किसी आंदोलन को आगे नहीं बड़ा सकते, इसके लिये व्यवहारिक प़क्ष भी आवश्यक होता है।
अरुण कुमार ने कहा कि साम्राज्यवाद के खिलाफ हम एक जुट होकर लड़े तभी हम सफल होंगे। कमलाप्रसाद ने साम्राज्यवाद के खिलाफ मोर्चा खोला था। उन्होने वसुधा का मराठी विशेषांक निकाला जिसमें मराठी प्रलेस को रेखांकित किया। मलयालम और कश्मीरी भाषा में भी निकालने की उनकी योजना थी। सज्जाद जहीर के साथ वे पाकिस्तान में कम्यूनिस्ट पार्टी बनाना चाहते थे जिसका जुड़ा भारत की कम्यूनिस्ट पार्टी से हो।
रामशरण जोशी ने कमलाप्रसाद के प्रेरक व्यक्तित्व को नमन करते हुये अपनी बात प्रारम्भ की। कमलाप्रसाद में कमांडर के गुण प्रचुर मात्रा में मौजूद थे। मैं मार्क्सवाद के सम्पर्क में मैं लज्जाशंकर हरदैनिया के कारण आया था। जब मैं कर्मभूमि में आया कमलाप्रसाद ने मेरी बहुत मदद की थी। कमलाप्रसाद से मेरा परिचय लगभग बीस साल पूर्व हुआ था। देखना यह है कि कमलाप्रसाद किन शक्तियों से लड़े और इस लड़ाई में किन शक्तियों से जुड़े। कमलाप्रसाद के लेखन, विचार और कर्म की यात्रा का आकलन होना चाहिये। प्रगतिशील आंदोलन में आजादी बहुत जरूरी है। पूंजीवाद ने साम्यवाद से जितना सीखा, साम्यवाद ने क्या पूंजीवाद से कुछ सीखा है। कमलाप्रसाद ने अतंर्विरोघ को बेअसर करने का काम किया। किसी राज्य का चरित्र स्थिर नहीं होता वह बदलता रहता है, बदलते रहना चाहिये।
द्वितीय सत्र संस्मरण का था। इस सत्र की अध्यक्षता महेश कटारे, प्रभाकर चौबे, सुबोध कुमार श्रीवास्तव, विजय अग्रवाल, अशोक कुमार गुप्ता ने की। मुख्य अतिथि के रुप में काशीनाथ सिह थे। इस सत्र का संचालन दिनेश कुशवाह ने किया। इस सत्र में कमलाप्रसाद की अर्धांगिनी का स्वागत मंच पर पुष्पों से किया गया। इस संत्र में भावभीने वातावरण में कमलाप्रसाद को स्मरण किया गया। उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को छुआ गया। वक्ताओं में बाबूलाल दाहिया, देवीप्रसाद ग्रामीण, बहादुर सिंह परमार, सुबोध कुमार श्रीवास्तव, हनुमंत किशोर, अशोक कुमार गुप्ता, महेश कटारे, कमलाप्रसाद के बड़े दामाद राजीव गोहिल, छोटे दामाद देवेश कुमार, बड़ा बेटा संतोष पाण्डे, सुषमा मुनीन्द्र, काशीनाथ सिंह आदि थे। रात्रिकालीन सत्र में नरेश सक्सेना के मुख्य आतिथ्य में सुकवि समागम सम्पन्न हुआ।
- कैलाश चंद्र
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