Thursday, March 29, 2012

अंदाजे बयां और

जगजीत-गुलज़ार का अंदाजे बयां और...
-पवन झा

"पूछते हैं वो कि ग़ालिब कौन है, कोई ये बतलाए कि हम बतलायें क्या?"

दूरदर्शन के लिये गुलज़ार कृत धारावाहिक ’मिर्ज़ा ग़ालिब’ एक पूरी पीढ़ी के लिये ग़ालिब का डॉक्युमेन्टेशन है. आज के समय में ग़ालिब की जितनी चर्चा है, और आज की पीढ़ी ग़ालिब को जितना जानती है, उसका बहुत कुछ श्रेय धारावाहिक को दिया जा सकता है. धारावाहिक के साथ जगजीत-चित्रा के स्वरों में इसका संगीत एलबम भी पिछले 20-25 साल के सबसे लोकप्रिय गैर फ़िल्मी एलबम्स में रहा है.



इस दौर में ग़ालिब को फिर से ज़िंदा करने वाले दो कलाकार, जगजीत सिंह और गुलज़ार पिछले वर्ष मिर्ज़ा ग़ालिब-2 एलबम की परिकल्पना पर काम कर ही रहे थे, कि जगजीत सिंह के निधन से प्रोजेक्ट अधूरा रह गया.’तेरा बयान ग़ालिब’, एक श्रद्धांजलि है मिर्ज़ा ग़ालिब के साथ, जगजीत सिंह को भी. ये ’कॉन्सेप्ट एलबम’ एक कोलाज है जिसमें ग़ालिब के ख़त, ग़ज़लें और नज़्म शामिल हैं.ख़त गुलज़ार की आवाज़ में हैं और नज़्में और ग़ज़ल जगजीत सिंह की आवाज़ में.

ग़ालिब के ख़त जो अपने ज़माने में उन्होने अपने मित्रों, साथी शायरों, और शिष्यों को लिखे और उस दौर के साक्षी बने और आज एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और साहित्यिक दस्तावेज़ हैं. उस दौर का आईना भी.
रंगमंच के प्रख्यात लेखक-निर्देशक सलीम आरिफ़ ग़ालिब के खतों को मंच पे पेश करते आये हैं अपनी प्रस्तुति ’ग़ालिबनामा’ में. ’तेरा बयान ग़ालिब’ की भी परिकल्पना और निर्देशन सलीम आरिफ़ का है.

एलबम की शुरुआत गुलज़ार की जगजीत सिंह को समर्पित नज़्म ’एक आवाज़ की बौछार था वो’ से होती है.
गायक-संगीतकार जगजीत सिंह और शायर गुलज़ार की जोड़ी बरसों से सुनने वालों को बहुत से अनमोल एलबम्स देती आयी है. उनकी घनिष्ठता, तालमेल और एक दूसरे के माध्यम की समझ उन दोनो के काम को एक अलग आयाम देती है.

जगजीत सिंह के व्यक्तित्व और गायकी के विशिष्ट पहलुओं को गुलज़ार ने अपने शब्दों में बहुत खूबसूरती से बांधा है."गली क़ासिम से एक ग़ज़ल की झनकार था वो/एक आवाज़ की बौछार था वो". अपने साथी कलाकार को एक सच्ची श्रद्धांजलि है ’एक आवाज़ की बौछार था वो’.

श्रद्धांजलि के बाद ग़ालिब की शायरी, गुलज़ार की आवाज़ और जगजीत सिंह के स्वरों का एक रेला सा आता है जो सुनने वालों को अपने बहाव में बहा ले जाता है. जगजीत ’नक़्श फ़रियादी है’ से शुरुआत करते हैं तो गुलज़ार ’मेहरबां होके बुला लो मुझे’ से ग़ालिब के परिचय उनके शेरों के माध्यम से देते हैं.

खतों का सिलसिला शुरु होता है तो ग़ालिब के दौर का बयान बन जाता है. ग़ालिब के जीवन का वृतांत, उस दौर की घटनाएं, उनका दर्शन, उनके रिश्ते, उनके शौक, उनके दर्द, उनका सेंस ऑफ़ ह्यूमर, खतों के अल्फ़ाज़ में उभर कर खूबसूरती से सामने आते जाते हैं और उनके व्यक्तित्व के कई पहलुओं से रूबरू कराते हैं.

खतों के साथ जगजीत के स्वरों में ग़ालिब के अशार, ग़ज़लें और नज़्में बहुत बेहतर ढंग से पिरोई गई हैं. खास बात ये कि ग़ालिब के खतों में वर्णित घटनाओं के साथ पिरोये गये शेर और नज़्में ग़ालिब की रचनात्मक्ता को नए अंदाज़ में प्रस्तुत करती हैं कि ग़ालिब ने कोई नज़्म किस अवस्था से गुज़रते हुए कही होगी. कहीं उर्दू ज़बान पे बात है, कहीं दिल्ली दरबार में मुशायरे का ज़िक्र, कहीं ग़ुलामी के दौर का चित्र है, कहीं भारी कर्ज़ के बोझ के बावज़ूद बेफ़िक्री का आलम और कहीं एक के बाद एक सात बच्चों को अपनी आँखों के सामने खोने का दर्द.

ग़ालिब के व्यकित्त्व के जो पहलू उनहें अन्य कलाकारों से अलग करते हैं वो उनके खतों में, गुलज़ार के स्वरों में बखूबी उभर के आये हैं. इससे पहले ज़िया मोईउद्दीन ने भी ऑडियो में ग़ालिब के खुतूत पेश किये हैं एक पेशेवर अदाकार की तरह जो बहुत लोकप्रिय हुए हैं, लेकिन यहां गुलज़ार ये खत एक अदाकार के बजाय अपने अन्दर बसे ग़ालिब की ज़बानी बयां करते नज़र आते हैं. अपने स्वरों में ग़ुलज़ार ने यहां ग़ालिब को जिया है.

जगजीत ने धारावाहिक में अपने स्वरों से मिर्ज़ा ग़ालिब को एक अलग अंदाज़ दिया था. यहां इस एलबम में धारवाहिक की मूल एलबम की कुछ नज़्में तो शामिल की ही गई हैं जैसे ’हरेक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है’, ’वो फ़िराक़ और वो विसाल कहां’, ’दोस्त ग़मखारी में मेरी’, ’वो फ़िराक़ और वो विसाल कहां’, ’कासिद के आते-२ ही’, ’कब से हूं क्या बताऊं’, लेकिन उस धारावाहिक के जगजीत के स्वरों में बहुत से अंश मूल एलबम में शामिल नहीं थे, उनको इस एलबम में खूबसूरती से सलीम आरिफ़ ने समाहित किया गया है.

कुल मिला कर ’तेरा बयान ग़ालिब’ एक महत्वपूर्ण एलबम है, साहित्यिक श्रोताओं के लिये, ग़ालिब, गुलज़ार और जगजीत सिंह के प्रशंसकों के लिए. अगर आप गंभीर और सृजनात्मक संगीत में रुचि रखते हैं तो ’तेरा बयान ग़ालिब’ आपके लिये है और जिस तरह से टी.वी. और होम वीडियो पर ’मिर्ज़ा ग़ालिब’ आज तक देखा सुना जाता है, ग़ालिब के बयां का ये अंदाज़ भी, सलीम आरिफ़, गुलज़ार और जगजीत सिंह के इस एलबम की शक्ल में आने वाले समय में ग़ालिब का एक महत्वपूर्ण ’डॉक्यूमेन्टेशन’ साबित होगा इसमें दो राय नहीं है.

बीबीसी हिंदी से साभार

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