Thursday, March 29, 2012

विश्व रंगमंच दिवस-2: आगरा में रंगमंच के सिद्धांतों पर चर्चा


नाट्य शास्त्र को एक परंपरा की
तरह लिया जाना चाहिये

आगरा। विश्व रंगमंच दिवस पर भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) की आगरा इकाई द्वारा आयोजित वार्ता में इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव श्री जितेन्द्र रघुवंशी ने भरत मुनि, स्तानिस्लावस्की एवं बर्तोल्त ब्रेख्त के रंगमंच सिद्धांतों की सामाजिक उपादेयता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि दर्शकों की भावनाओं को सामाजिक मुद्दों के अनुरूप प्रस्तुत करना ही एक अभिनेता का उत्तरदायित्व है।


कवियत्री डॉ. शशि तिवारी ने कहा कि भरत मुनि के नाट्य शास्त्र को महज एक शास्त्र की तरह नहीं बल्कि एक परंपरा, एक स्कूल की तरह लिया जाना चाहिये, जो आज के रंगकर्म के परिप्रेक्ष्य में अत्यंत आवश्यक है।
साहित्यकार राजेन्द्र मिलन ने वर्तमान पुस्तकों में उद्धृत सामाजिक बदलावों के चित्रण को विश्लेषित किया। अपने अध्यक्षीय भाषण में गोविंद रजनीश जी ने समग्र की चेतना को सामाजिक और मनोवैज्ञानिक ढंग से संप्रेषित करने और उसे दर्शक-कलाकार के संबंधों से जोड़ने का आह्वान किया।

नाट्य शिक्षक श्री डिम्पी मिश्र ने गुलजार की कविताओं ‘टोबा टेक सिंह’ व ‘दर्द’ की प्रस्तुति की। निर्देशक केशव सिंह व प्रमोद पाण्डेय ने भी इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त किये।

दिल्ली गेट स्थित एक होटल में आयोजित इस संगोष्ठी में प्रमोद सारस्वत, डॉ. मुकुल श्रीवास्तव, चंद्रशेखर, उमेश अमल, नीतू दीक्षित ने विश्व रंगमंच दिवस पर संगोष्ठी के सहभागियों को शुभकामनायें दीं। धन्यवाद ज्ञापन नाट्य निर्देशक दिलीप रघुवंशी ने तथा संयोजन डॉ. विजय शर्मा ने किया। इस अवसर पर सुविख्यात निर्देशक जॉन मायकोविच के विश्व रंगमंच दिवस संदेश का वाचन भी किया गया।



1 comment:

  1. भिलाई में भी इप्टा और अन्य संस्थाओं द्वारा विश्वरंगमंच दिवस मनाया गया । आगरा में नाटकों की प्रस्तुति के अलावा जितेन्द्र जी का यह व्याख्यान बहुत महत्वपूर्ण है । इसे अखबारों में प्रकाशित किया जाना चाहिये ।

    ReplyDelete