बहुत दुःख हुआ यह सुन कर कि रवीन्द्र मंच जो कलाकारों के लिए बनाया गया था, सरकार ने उसे एक कॉर्पोरेट को विज्ञापन फिल्म बनाने के लिए खुलवा दिया। चंद सिक्कों के लिए क्या सरकार इतनी गिर सकती है कि कॉर्पोरेट घराने के सामने सर झुका कर घुटने टेक दे? इस हादसे से यह एहसास होता है की सरकार के अंदर भी एक “एंटी थिएटर” माफिया है जो कॉर्पोरेट घरानों को और कलाफ़रोशों {organizers-impressario} को रूहानी और पैसों से मदद करती है।
यह भी शक होने लगा है कि रेनोवेशन की आड़ में रवीन्द्र मंच का काम अपने एक चहेते को ही दिया गया, क्योंकि टेंडर देने के लिए जो ड्रामा खेल गया उससे साफ़ मालूम होता है की खास आदमी को ही टेंडर देना था, क्योंकि दूसरे तीन आदमी आर्किटेक्ट ही नहीं हैं। और जो तोड़फोड़ की गयी वह किसी माफिया के हुकुम और निगरानी में हुई। सरकार के हुक्मरानों ने जानबूझ कर उसे नज़रअंदाज़ किया। अगर ऐसा नहीं होता तो ओपन एयर थिएटर महमूद ग़ज़नी की तर्ज़ पर तोडा जा सकता था क्या ? क्या अधिकारियों को मालूम नहीं था कि थिएटर तोडा जा रहा है ?
रवीन्द्र मंच सोसाइटी के चेयरमैन भी वह हैं जिन्होंने फिल्म बनाने की इजाज़त दी। क्या ओपन एयर थिएटर को तोड़ने की इजाज़त भी इन्होंने ही दी ? क्या आवास विकास लिमिटेड के इंजीनियर इतने ताक़तवर हैं कि बग़ैर सरकार की इजाज़त के थिएटर को तोड़ सकते हैं और उनके मन में जो आए तब्दीली कर सकते हैं ? अब तो डर लगने लगा है की दूसरा हमला JKK पर होगा। शुरुआत हो चुकी है। वहां के तमाम अधिकारी चुप हैं। जैसे यूनिवर्सिटी की ज़मीन होटल को दी जा रही है, ठीक वैसे ही JKK के शिल्पग्राम की ज़मीन भी दी जा सकती है। कुछ लोगों की नापाक नज़र उस पर है। जयपुर की विरासत राम प्रकाश थिएटर जो 1876 में बना था, उसको भी तोड़ सकते हैं। तोड़ने पर आमादा भी हैं। विरासत को बेचनेवालों सावधान हो जाओ !!
एक बात खुलकर आ गयी कि जो कल्चर के मुहाफ़िज़ बने फिरते हैं, वह होटलों में ही नज़रबंद हैं। रईसों से घिरे हुए। उन्हीं का सम्मान होता है, उन्हीं को सरकारी ज़मीने भी इनायत की जाती हैं। "सैयां भये कोतवाल तो डर काहे का।"
में औरों का नहीं बता सकता कि उनका रवीन्द्र मंच से क्या रिश्ता है? मगर मेरे लिए रवीन्द्र मंच एक मंदिर, मस्जिद, चर्च, गरुद्वारा और विहार है। एक पेशेवर रंगकर्मी होने के नाते मेरी ज़िम्मेदारी बनती है की उसे नेस्तनाबूद करने की साज़िश के खिलाफ आवाज़ बुलंद करूं। जो साथ देना चाहते हैं उनका स्वागत है।
जब सरकार ने अपनी आँखें बंद कर रखी हों, ज़ुबान पर ताला लगा रखा हो, उसके इरादे नापाक नज़र आते हों तो खुद के डिप्टी जज के दरबार में ही रवीन्द्र मंच को बचने के फैसले की उम्मीद की जा सकती है।
रणबीर सिंह
डुण्डलाैड हाउस ,हवा सड़क ,जयपुर
मों. : 9829294707
विस्तृत खबर के लिये इस लिंक पर जायें :
http://iptanama.blogspot.in/2015/07/blog-post_31.html
यह भी शक होने लगा है कि रेनोवेशन की आड़ में रवीन्द्र मंच का काम अपने एक चहेते को ही दिया गया, क्योंकि टेंडर देने के लिए जो ड्रामा खेल गया उससे साफ़ मालूम होता है की खास आदमी को ही टेंडर देना था, क्योंकि दूसरे तीन आदमी आर्किटेक्ट ही नहीं हैं। और जो तोड़फोड़ की गयी वह किसी माफिया के हुकुम और निगरानी में हुई। सरकार के हुक्मरानों ने जानबूझ कर उसे नज़रअंदाज़ किया। अगर ऐसा नहीं होता तो ओपन एयर थिएटर महमूद ग़ज़नी की तर्ज़ पर तोडा जा सकता था क्या ? क्या अधिकारियों को मालूम नहीं था कि थिएटर तोडा जा रहा है ?
रवीन्द्र मंच सोसाइटी के चेयरमैन भी वह हैं जिन्होंने फिल्म बनाने की इजाज़त दी। क्या ओपन एयर थिएटर को तोड़ने की इजाज़त भी इन्होंने ही दी ? क्या आवास विकास लिमिटेड के इंजीनियर इतने ताक़तवर हैं कि बग़ैर सरकार की इजाज़त के थिएटर को तोड़ सकते हैं और उनके मन में जो आए तब्दीली कर सकते हैं ? अब तो डर लगने लगा है की दूसरा हमला JKK पर होगा। शुरुआत हो चुकी है। वहां के तमाम अधिकारी चुप हैं। जैसे यूनिवर्सिटी की ज़मीन होटल को दी जा रही है, ठीक वैसे ही JKK के शिल्पग्राम की ज़मीन भी दी जा सकती है। कुछ लोगों की नापाक नज़र उस पर है। जयपुर की विरासत राम प्रकाश थिएटर जो 1876 में बना था, उसको भी तोड़ सकते हैं। तोड़ने पर आमादा भी हैं। विरासत को बेचनेवालों सावधान हो जाओ !!
एक बात खुलकर आ गयी कि जो कल्चर के मुहाफ़िज़ बने फिरते हैं, वह होटलों में ही नज़रबंद हैं। रईसों से घिरे हुए। उन्हीं का सम्मान होता है, उन्हीं को सरकारी ज़मीने भी इनायत की जाती हैं। "सैयां भये कोतवाल तो डर काहे का।"
में औरों का नहीं बता सकता कि उनका रवीन्द्र मंच से क्या रिश्ता है? मगर मेरे लिए रवीन्द्र मंच एक मंदिर, मस्जिद, चर्च, गरुद्वारा और विहार है। एक पेशेवर रंगकर्मी होने के नाते मेरी ज़िम्मेदारी बनती है की उसे नेस्तनाबूद करने की साज़िश के खिलाफ आवाज़ बुलंद करूं। जो साथ देना चाहते हैं उनका स्वागत है।
जब सरकार ने अपनी आँखें बंद कर रखी हों, ज़ुबान पर ताला लगा रखा हो, उसके इरादे नापाक नज़र आते हों तो खुद के डिप्टी जज के दरबार में ही रवीन्द्र मंच को बचने के फैसले की उम्मीद की जा सकती है।
रणबीर सिंह
डुण्डलाैड हाउस ,हवा सड़क ,जयपुर
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Yes its so bad. We all artist must strongly oppose this anti artist action taken by Government.... Vijay Swami
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