लखनऊ : 'कथाकार भीष्म साहनी अक्सर कहा करते थे कि किसी भी उपन्यासिक कृति की सफलता उसकी विश्वसनीयता तय करती है। मसलन पढ़ते समय उसका चित्रण दिमाग में आता है कि नहीं। पढ़ने वाला उसे महसूसता है कि नहीं। उसे वह सब अपने आस-पास का लगता है या नहीं...और यही सब उन्होंने अपने उपन्यासों और कहानियों में जिया।' यह बात आलोचक वीरेन्द्र यादव ने शनिवार को जयशंकर प्रसाद सभागार में भारतीय जन नाटय संघ (इप्टा) की तरफ से जय शंकर प्रसाद सभागार में आयोजित भीष्म साहनी जन्मशती समारोह के उदघाटन कार्यक्रम 'महत्व भीष्म साहनी' में कही।
कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए इप्टा के महासचिव राकेश ने भीष्म साहनी का परिचय दिया और उनसे जुड़े संस्मरण सुनाए। कार्यक्रम के दौरान भीष्म साहनी और उनकी कृतियों पर आधारित छह क्लिपिंग भी दिखाई गई जिनमें भीष्म साहनी ने अपने और बड़े भाई और आलोचक वीरेन्द्र तिवारी ने भीष्म साहनी के उपन्यास 'तमस' को विभाजन पर लिखे गए दूसरे उपन्यासों से जुदा बताया। उन्होंने कहा कि बाकी उपन्यासों में विभाजन की विभीषिका है लेकिन आजादी के 25 वर्षों बाद लिखे गए 'तमस' में विभाजन की त्रासदी को साम्प्रदायिकता के परिप्रेक्ष्य में देखा गया है।
भीष्म साहनी की कहानियों पर जनवादी लेखक संघ के नलिन रंजन सिंह ने प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भीष्म जी की कहानियों के ज्यादातर पात्र निर्धन और निर्भीक हैं और यही उनके गुण हैं। प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े शकील सिददीकी ने भीष्म साहनी और इप्टा के संबंधों और संगठनकर्ता के रूप में उनकी भूमिका के संस्मरण सुनाए। प्रलेस संस्था के सूरज कुमार थापा ने भीष्म के लिखे नाटकों की चर्चा की। फिल्म अभिनेता बलराज साहनी के छोटे भाई भीष्म साहनी के अभिनय पक्ष की चर्चा में वरिष्ठ रंगकर्मी जुगुल किशोर ने फिल्मों और नाटकों में किए गए उनके अभिनय पक्ष पर बात की। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ रंगकर्मी और दूरदर्शन लखनऊ के पूर्व महानिदेशक विलायत जाफरी ने की।
नवभारत टाइम्स से साभार
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