विवेचना थियेटर ग्रुप जबलपुर के द्वारा डा शंकर शेष के नाटक ’पोस्टर’ का प्रभावी मंचन विमला ग्रेस ऑडीटोरियम जॉय सीनियर सेकेण्डरी स्कूल विजय नगर में किया गया। यह नाटक हिन्दी का प्रसिद्ध नाटक है और एक श्रेष्ठ नाट्य कृति है। इसके मंचन विगत 35 वर्षों से किए जा रहे हैं और बहुत सराहे गए हैं। जबलपुर में विवेचना ने पूर्व में इस नाटक के मंचन किए हैं। विवेचना द्वारा ग्रीष्मकालीन शिविर में शामिल नवोदित कलाकारों के साथ मिलकर ’पोस्टर’ की यह नई प्रस्तुति तैयार हुई है।
पोस्टर नाटक की कथा बहुत रोचक है। नाटक एक प्रवचन से शुरू होता है। एक युवक खड़ा होकर कहता है कि यह गांव अब कथा प्रवचन के लायक नहीं बचा है क्योंकि इस गांव में एक लड़की के साथ बलात्कार हुआ है और कोई कुछ नहीं बोला। यहां तक कि बलात्कारी और लड़की का बाप दोनों बैठे प्रवचन सुन रहे हैं। तब कीर्तनकार एक गांव की कथा सुनाते हैं। एक आदिवासी गांव में मजदूर पटैल के कारखाने में काम करते हैं। पटैल वनोपज और लकड़ी आदि का धंधा करता है। एक महिला मजदूर चैती अपने मायके से एक कागज ले आती है जिसे देखते ही पटैल आगबबूला हो उठता है और मजदूरी बढ़ा देता है। मजदूरों को समझ में नहीं आता कि इस कागज को देखकर पटैल गुस्सा क्यों हुआ और फिर मजदूरी क्यों बढ़ा दी। वो गांव के मास्टरजी से यह कागज पढ़वाते हैं तब पता चलता है कि दूसरे गांव में काम कर रहे मजदूरों की मांगों का पोस्टर है। उस गांव में राघोबा नाम का एक मजदूर नेता है जो मजदूरों को शोषण के विरूद्ध लड़ने के लिए संगठित कर रहा है। उसने मजदूरों की शराब भी छुड़वा दी है। इसी प्रेरणा से इन मजदूरों में भी हलचल होती है और नाटक एक के बाद एक नया मोड़ लेता है। नाटक में फारेस्ट आफीसर, पटेल और कीर्तनकार के बहाने समाज में शोषक और शोषितों का संघर्ष बहुत प्रभावशाली तरीके से दिखाया गया है।
नाटक में कल्लू बने अक्षय सिंह ठाकुर और चैती बनी शालिनी अहिरवार ने दर्शकों को प्रभावित किया। कीर्तनकार व अखंडानंद के रूप में अशोक चांदवानी, कीर्तनकार के साथी के रूप में जतिन राठौर, पटैल बने चिन्टू स्वामी, सुखलाल के रोल में आशीष तिवारी बहुत सराहे गये। गुरू जी के रूप में निमिष माहेश्वरी, फारेस्ट आफीसर - ब्रजेन्द्र सिंह, वृद्ध- सागर सोनी व मजदूर बने तरूण ठाकुर, अक्षय टेम्ले, सौरभ विश्वकर्मा, शुभम जैन, स्वाति भट्ट, श्रेया श्रीवास्तव, मनीषा तिवारी ने अपने पात्रों के अनुकूल प्रभावशाली अभिनय किया। इससे समूह दृश्य बहुत बेहतर बने।
पोस्टर नाटक की कथा बहुत रोचक है। नाटक एक प्रवचन से शुरू होता है। एक युवक खड़ा होकर कहता है कि यह गांव अब कथा प्रवचन के लायक नहीं बचा है क्योंकि इस गांव में एक लड़की के साथ बलात्कार हुआ है और कोई कुछ नहीं बोला। यहां तक कि बलात्कारी और लड़की का बाप दोनों बैठे प्रवचन सुन रहे हैं। तब कीर्तनकार एक गांव की कथा सुनाते हैं। एक आदिवासी गांव में मजदूर पटैल के कारखाने में काम करते हैं। पटैल वनोपज और लकड़ी आदि का धंधा करता है। एक महिला मजदूर चैती अपने मायके से एक कागज ले आती है जिसे देखते ही पटैल आगबबूला हो उठता है और मजदूरी बढ़ा देता है। मजदूरों को समझ में नहीं आता कि इस कागज को देखकर पटैल गुस्सा क्यों हुआ और फिर मजदूरी क्यों बढ़ा दी। वो गांव के मास्टरजी से यह कागज पढ़वाते हैं तब पता चलता है कि दूसरे गांव में काम कर रहे मजदूरों की मांगों का पोस्टर है। उस गांव में राघोबा नाम का एक मजदूर नेता है जो मजदूरों को शोषण के विरूद्ध लड़ने के लिए संगठित कर रहा है। उसने मजदूरों की शराब भी छुड़वा दी है। इसी प्रेरणा से इन मजदूरों में भी हलचल होती है और नाटक एक के बाद एक नया मोड़ लेता है। नाटक में फारेस्ट आफीसर, पटेल और कीर्तनकार के बहाने समाज में शोषक और शोषितों का संघर्ष बहुत प्रभावशाली तरीके से दिखाया गया है।
निर्देशक वसंत काशीकर ने गांव के परिवेश को अभिव्यक्त करने और कथा के विकास के लिए संगीत , गीत और नृत्य का सुंदर प्रयोग किया गया है। अभय सोहले का संगीत निर्देशन और अमृतांश के तबले व ढोलक ने दर्शकों को अभिभूत किया। गायन मंे उषा तिवारी व जान्हवी शुक्ला प्रभावशाली थीं। मनोज चौरसिया ने नाटक के ही कलाकारों को प्रशिक्षित कर छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य तैयार करवाया जिसका संतुलित प्रयोग नाटक में किया गया। प्रकाश परिकल्पना सादी मगर प्रभावपूर्ण थी। प्रकाश में रंगों और पीले प्रकाश का संतुलित संयोजन दिखा। जिसका एक अलग प्रभाव आया। नाटक में पार्श्व संगीत का संचालन जतिन राठौर ने किया। रोहित झा ने कलाकारों को अपने कौशल से मेकअप से सज्जित किया।
नाटक में कल्लू बने अक्षय सिंह ठाकुर और चैती बनी शालिनी अहिरवार ने दर्शकों को प्रभावित किया। कीर्तनकार व अखंडानंद के रूप में अशोक चांदवानी, कीर्तनकार के साथी के रूप में जतिन राठौर, पटैल बने चिन्टू स्वामी, सुखलाल के रोल में आशीष तिवारी बहुत सराहे गये। गुरू जी के रूप में निमिष माहेश्वरी, फारेस्ट आफीसर - ब्रजेन्द्र सिंह, वृद्ध- सागर सोनी व मजदूर बने तरूण ठाकुर, अक्षय टेम्ले, सौरभ विश्वकर्मा, शुभम जैन, स्वाति भट्ट, श्रेया श्रीवास्तव, मनीषा तिवारी ने अपने पात्रों के अनुकूल प्रभावशाली अभिनय किया। इससे समूह दृश्य बहुत बेहतर बने।
नाटक के अंत में निर्देशक वसंत काशीकर ने पात्रों का परिचय कराया और नाटक के तैयार होने की प्रक्रिया पर प्रकाश डाला। प्रो ज्ञानरंजन ने निर्देशक वसंत काशीकर को गुलदस्ता भेंट कर स्वागत किया। श्रीमती शुभदा पांडेय धर्माधिकारी ने सभी कलाकारों का स्वागत किया। प्रो ज्ञानरंजन ने इस अवसर पर कहा कि ’पोस्टर’ नाटक पुराना होते हुए भी आज भी प्रासंगिक है। आज देश में आदिवासी और मेहनतकश वर्ग की जिस शोषण के कुचक्र से बावस्ता है उसमें ये नाटक और भी जरूरी हो जाता है। नाटक बहुत खूबसूरती से लिखा गया है। हिमांशु राय व बांकेबिहारी ब्यौहार ने जॉय सीनियर सेकेण्डरी स्कूल व दर्शकों का आभार व्यक्त किया।
हिमांशु राय
लेखक इप्टा की राष्ट्रीय सचिव मंडली के सदस्य हैं। उनसे 94 25 387580 पर संपर्क किया जा सकता है।
विवेचना थियेटर ग्रुप जबलपुर, नवोदित कलाकारों, पूरी टीम को नाटक ’पोस्टर’ के लिए हार्दिक बधाई ।
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