Friday, June 8, 2012

‘‘आओ खेलें नाटक,’’ जारी है डोंगरगढ़ में बाल नाट्य कार्यशाला



बच्चे उतने छोटे नहीं होते जितने दिखाई पड़ते है और वे उतने नादां भी नहीं होते जितना हम उन्हें समझते हैं। जब दस बरस के ‘अभिनेता’ सुमीत को उनके बाल ‘निर्देशक’ ने कारखाने के मैनेजर की भूमिका सौंपी और पूछा कि तुम्हारा चरित्र क्या होगा तो सुमीत ने कहा कि सारे मैनेजर ‘‘खडूस’’ किस्म के इंसान होते हैं। 12 वर्षीय अमन का कहना है कि वह नाटक लिख सकता है और पढ़ाई-लिखाई से घबराने वाला अभय अब रोज सुबह अपनी ‘डायरी’ लिखते हुए नज़र आता है। ये सभी बच्चे डोंगरगढ़ इप्टा द्वारा आयोजित बाल रंग शिविर के प्रतिभागी हैं जो विगत् 1 जून से जारी है।

बच्चों को स्वराभ्यास कराते कार्यशाला संचालक मंजुल भारद्वाज


गौरतलब है कि भारतीय जन नाट्य संघ की डोंगरगढ़ इकाई विगत् लगभग तीन दशकों से रंगकर्म के क्षेत्र में सक्रिय है पर संगठन के विस्तार का कार्य अनेक कारणों से कई दिनों से संभव नहीं हो पा रहा था। इस समस्या को ध्यान में रखते हुए स्थानीय इकाई ने बच्चों की एक कार्यशाला ‘‘आओ खेलें नाटक’’ के संचालन का जिम्मा एक्सपेरिमेंटल थियेटर फाउंडेशन (थियेटर ऑफ रेलेवेंस) के मंजुल भारद्वाज को सौंपा और अब कोई छः दिन बीत जाने के बाद बच्चे नाट्य प्रदर्शन के लिये उतावले हैं। इसके साथ ही डोंगरगढ़ में ‘लिटिल इप्टा’ के गठन की तैयारियां भी पूर्ण हो चुकी हैं।

एक नाटक की रिहर्सल
इप्टा द्वारा स्थानीय खालसा विद्यालय में चलायी जा रही रही इस ग्रीष्मकालीन बाल रंग कार्यशाला में बच्चे नाटक व अभिनय के गुर सीख रहे हैं। उक्त कार्यशाला की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि कार्यशाला में सारे निर्णय स्वयं बच्चों की आपसी सहमति से लिये जाते हैं और सीखने-सिखाने का कार्य बच्चे स्वयं करते हैं। संचालक की भूमिका महज उत्प्रेरक की है। श्री मंजुल के मार्गदर्शन में कार्यशाला में तैयार किये जाने वाले नाटक की पटकथा भी स्वयं बच्चे ही तैयार कर रहे हैं और बच्चों द्वारा निर्मित इस नाटक की प्रस्तुति अभिभावकों के बीच कार्यशाला के समापन के दिन होगी।

नाटक के प्रदर्शन की तैयारी
समापन के दौरान बच्चों द्वारा तैयार की जानी वाली एक लघुपत्रिका का विमोचन भी किया जायेगा। ‘‘रंग-अंकुर’ नामक इस पत्रिका में खबरें, लेख, फीचर आदि कार्यशाला के प्रतिभागियों द्वारा ही तैयार किये जायेंगे। बच्चों में सृजनात्मक प्रतिभा के विकास के लिये अवसर प्रदान करने हेतु अनेक अभिभावकों ने कार्यशाला संचालक व आयोजक इकाई को धन्यवाद प्रेषित किया है।


1 comment:

  1. I have experienced all this and agree with you that children and much more sensitive to their environment than we can even think.If dealt with love, respect and care they blossom and bring out their brilliant self. They require our confidence and motivation. I have learnt this while working with you. Chingari kee jaroorat hai.

    ReplyDelete