इप्टा रायगढ़ ने इस वर्ष ग्रीष्मकालीन बाल रंग शिविर का आयोजन दि. 19 मई से 1 जून तक किया। पचीस बाल कलाकारों ने इस शिविर में नाटक एवं रंगमंच की बारीकियाँ सीखने के साथ-साथ इम्प्रोवाइजेशन, थियेटर गेम्स एवं एक्सरसाइजेस भी सीखे। जिले की सुमधुर गायिका देवकी डनसेना से सुर-ताल का प्रशिक्षण लिया तथा इप्टा के सदस्य एवं बॉलिवुड में कला निर्देशक के बतौर प्रविष्ट हितेश पित्रोडा से क्राफ्ट का प्रशिक्षण प्राप्त किया। समापन दिवस पर शिविर निर्देशक अजेश शुक्ला के निर्देशन में कजाकिस्तान की लोक कथा पर आधारित नाटक ‘‘अपना अपना भाग्य’’ का मंचन 1 जून को अंतर्राष्ट्रीय बाल दिवस के अवसर पर किया गया। समापन कार्यक्रम में सर्वप्रथम देवकी डनसेना के संगीत निर्देशन में दो गीत प्रतिभागी कलाकारों ने सामूहिक रूप से प्रस्तुत किये। साथ ही हितेश पित्रोडा के कला-निर्देशन में बेकार वस्तुओं से जो कलात्मक आकृतियाँ बनाई गई थीं, उनकी प्रदर्शनी लगाई गई।
तीस मिनट का नाटक ‘‘अपना अपना भाग्य’’ दो भाइयों कंगलू और मंगलू की कहानी पर आधारित है। अपने आलसी भाई को काम करने के लिए कहे जाने पर कंगलू अपने भाग्य के सोए होने की बात करता है। तब मंगलू भाग्य को जगाने के लिए कहता है। कंगलू भाग्य की तलाश में निकल पड़ता है। सबसे पहले उसे जगल का राजा शेर मिलता है, जो पेट दर्द से तड़प रहा है। कंगलू को देख कर वह पूछता है कि वह कहाँ जा रहा है, कंगलू बताता है कि वह भाग्य की तलाश में जा रहा है, शेर कंगलू से कहता है कि वह भाग्य से अपने पेट दर्द की समस्या का हल भी पूछ ले। कंगलू आगे बढ़ता है। उसकी मुलाकात एक किसान से होती है, जो अपनी गरीबी से परेशान है। वह भी भाग्य से अपनी समस्या का हल पूछने का आग्रह करता है। कंगलू और आगे बढ़ता है, एक राजा के सिपाही उसे पकड़कर अपने राजा के सामने ले जाते है। राजा का विवाह नहीं हो रहा है। अतः राजा उससे अपनी इस समस्या का हल प्राप्त करने के लिए कहता है। कंगलू हामी भरकर आगे बढ़ जाता है। जंगल में उसे भाग्य मिल जाता है और उसे आशीर्वाद देता है। कंगलू अपने भाग्य के जागने से बहुत खुश होता है और रास्ते में मिले लोगों की समस्याओं के हल भी प्राप्त करता है। लौटते हुए सबसे पहले वह राजा के पास पहुँचता है। वह राजा से कहता है कि चूँकि वह स्त्री है और पुरुष वेश में है इसलिए वह शादी नहीं कर पा रहा है अतः वह अपने मूल रूप में आकर किसी पुरुष से विवाह कर ले। राजा के रूप में राजकुमारी कंगलू से ही विवाह का प्रस्ताव रखती है परंतु कंगलू अपने भाग्य के जागने की बात सोचकर आगे जाने का निश्चय करता है। आगे उसे गरीब किसान मिलता है। उसकी समस्या के हल के लिए वह बताता है कि उसके खेत में सोने के हंडे गड़े हैं, जिन्हें निकालने पर उनकी गरीबी दूर हो जाएगी। किसान उससे कहता है कि वह उसकी लड़की से शादी कर उस सम्पत्ति का मालिक बन जाए। परंतु कंगलू उसका प्रस्ताव स्वीकार नहीं करता। तब वह पहुँचता है शेर के पास और उसे उसकी समस्या के हल के रूप में किसी मूर्ख इंसान का दिमाग खाने की बात बताता है। शरनी शेर को सलाह देती है कि कंगलू ही मूर्ख इंसान है, जो रानी से विवाह और किसान के सोने को छोड़कर आ गया है। शेर कंगलू पर झपटता है परंतु नीचे गिरकर मर जाता है। कंगलू अपने जीवित होने को भाग्य का चमत्कार मानकर कर्मशील होने की कसम खाता है।
इस नाटक में कंगलू था अमित दीक्षित, मंगलू और किसान थे आलोक बेरिया, मंगलू की पत्नी थी दीप्ति पटेल, किसान की पत्नी प्रियंका बेरिया ओर बेटी थी स्वप्निल नामदेव, रानी थी राजलक्ष्मी सोनी, शेर तपस गोयल और शेरनी की भूमिका में थे - हुमिष्का चावड़ा। नगर सैनिक थे - सुयश और प्रज्ञांश। डॉक्टर भालू बने थे दीपक यादव। भागय एवं सौदागर की भूमिका निभा रहे थे - पार्थ चावड़ा। बैल, बंदर एवं अन्य भूमिकाओं में थे - वासुदेव निषाद, रोहित सोनी, अजय नामदेव, चिन्मय चावड़ा, कांची तेलंग, पलक गोयल, आयुषी पोपट, आशीष सोनी, मयूर वर्मा, दीपेश राठौर, कमल शर्मा और यूषण एक्का। नाल बजा रहे थे - चन्द्रदीप, मंचसज्जा थी हितेश पित्रोड़ा की। बच्चों की इस शानदार प्रस्तुति की दर्शकों ने खूब तालियाँ बजाकर तारीफ की। अंत में सभी प्रतिभागी बच्चों को इप्टा के प्रेरक श्री रविप्रकाश मिश्रा एवं श्री प्रतापसिंह खोडियार ने प्रमाण पत्र एवं पुरस्कार देकर प्रोत्साहित किया। साथ ही इप्टा ने शिविर निर्देशक अजेश शुक्ला, देवकी डनसेना एवं हितेश पित्रोडा को भी स्मृतिचिन्ह प्रदान किये।
शिविर समापन की पूर्वसंध्या को इप्टा के इतिहास-वर्तमान एवं गतिविधियों पर केन्द्रित प्रश्नमंच का आयोजन किया गया था, जिसका संचालन अपर्णा एवं विनोद बोहिदार ने किया। सभी बच्चों ने इसमें बहुत उत्साह से भाग लिया। शिविर संचालन में अजय आठले के साथ भरत निषाद, सुरेन्द्र बरेठ, श्याम देवकर, अमित सोनी, लोकेश्वर निषाद, अपर्णा, उषा आठले, विनोद बोहिदार, कथिल साय पैंकरा का भी विशेष योगदान रहा।
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