प्रस्तुति- शशिभूषण
12 मार्च 2017 को इंदौर स्थित देवी अहिल्या केंद्रीय पुस्तकालय के अध्ययन कक्ष में प्रगतिशील लेखक संघ, इंदौर इकाई द्वारा एक बैठक आयोजित की गई।
इस बैठक में प्रलेसं के प्रांतीय महासचिव, कवि एवं सामाजिक कार्यकर्ता विनीत तिवारी ने हाल ही में मध्य प्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ के 11 सदस्यीय प्रतिनिधि मंडल के साथ शहीद लेखकों डॉ नरेंद्र दाभोलकर, कॉ गोविन्द पानसरे और एम एम कलबुर्गी के गृह नगरों क्रमशः सतारा, कोल्हापुर और धारवाड़ की अपनी यात्रा के संस्मरण सुनाए। इस यात्रा का उद्देश्य लेखकों की शहादत के प्रति अपना सम्मान प्रकट करना, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता ज़ाहिर करना एवं शहीद लेखकों के परिजनों के प्रति एकजुटता जताना तथा इस संकल्प का प्रसार करना था कि तर्कशीलता और विचारों की अभिव्यक्ति की आज़ादी का संघर्ष जारी रहेगा।
लेखकों के प्रतिनिधिमंडल में मध्य प्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष और 'प्रगतिशील वसुधा' पत्रिका के संपादक श्री राजेन्द्र शर्मा (कवि) तथा महासचिव श्री विनीत तिवारी (कवि-नाटककार और डाक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता) के साथ अध्यक्ष मंडल के सदस्य सर्व श्री हरिओम राजोरिया (कवि-नाटककार), प्रान्तीय सचिव मंडल सदस्य और वरिष्ठ कवि श्री बाबूलाल दाहिया, श्री शिवशंकर मिश्र 'सरस', तरुण गुहा नियोगी, सुश्री सुसंस्कृति परिहार, वरिष्ठ लेखक और पत्रकार श्री हरनाम सिंह, कहानीकार श्री दिनेश भट्ट, नाट्य निर्देशिका और अभिनेत्री सुश्री सीमा राजोरिया, तथा 'समय के साखी' पत्रिका की संपादक और कवयित्री सुश्री आरती शामिल थे। ये लेखक प्रदेश के भोपाल, इंदौर, अशोकनगर, मंदसौर,सतना,सीधी, जबलपुर, छिंदवाड़ा और दमोह शहरों से आते हैं।
विनीत तिवारी ने अपने वक्तव्य में महाराष्ट्र, कर्नाटक और गोआ के अनुभवों को विस्तार से साझा किया। शहीद लेखकों के परिजनों से भेंट, फ़िल्म संस्थान के अनुभव एवं गोवा के संस्मरण तथा प्रेस कॉन्फ्रेंस आदि के अनुभव बांटे।
विनीत तिवारी ने बताया- आज सबसे अधिक ख़तरा और पहला हमला विचारकों, शिक्षकों एवं लेखकों पर ही है। एक समय था जब बुद्धिजीवियों का लिहाज़ होता था और बुरी से बुरी परिस्थिति में भी शिक्षकों, लेखकों पर हमला नहीं होता था। लेकिन आज हालात बिलकुल उलटे हैं। विगत वर्षों में मारे गए तीनों शहीद लेखक सत्तर और 80 वर्ष की आयु के वरिष्ठ विचारक ही थे। उनके सिरों में ही गोली मारकर यह स्पष्ट संकेत दिया गया कि हत्यारे, विचारों के ही हंता हैं। चरमपंथियों के निशाने पर प्रगतिशील विचार ही हैं।
विनीत तिवारी ने पुणे फ़िल्म संस्थान के और पुणे प्रगतिशील लेखक संघ द्वारा साधना मीडिया सेंटर में हुई पुणे के प्रखर बौद्धिक विचारवंतों के साथ हुई सभा के संस्मरण भी सुनाए। उसके अतीत एवं गौरव पूर्ण उपलब्धियों से परिचय कराया। प्रख्यात संगीतज्ञ विदुर महाजन, अपर्णा महाजन, मैत्रबन, क्रांति कानाडे, ईशा, शांता रानाडे, राधिका इंग्ले, रूचि भल्ला, लता भिसे, माओ, मिलिंद, एस. पी. शुक्ला, अमित नारकर, दीपक मस्के, लतिका जाधव, नीरज, जहाँआरा, अहमद, नाची मुत्थु, राकेश शुक्ल, आदि से मुलाक़ात के किस्से सुनाए। फ़िल्म निर्माण तकनीकि में काम आनेवाली पुरानी सामग्री के चित्र और पूरी यात्रा के दौरान के अनेक चित्र दिखाये।
विनीत ने बताया कि पुणे से सबसे पहले हम लोग डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की पत्नी डॉ. शैला दाभोलकर और बेटे डॉ. हमीद दाभोलकर से मिलने सतारा पहुंचे। वहां अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के काम और अभियान को जाना। आत्मीय बातचीत में डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की पत्नी का अनुभव सुनना संकल्प से भर गया। उन्होंने कहा- मुझे लगता ही नहीं कि नरेंद्र अब नहीं हैं। मैं कुछ भी करने जाऊं तो मन में उन्हीं से पूछ लेती हूँ। उन्होंने बताया कि दशकों तक संघर्ष के बाद आखिर महाराष्ट्र सरकार को ओझा, टोने-टोटके करने वालों के खिलाफ कानून बनाना ही पड़ा। डॉ. दाभोलकर की मृत्यु को 4 वर्ष होने वाले हैं। आंदोलन बढ़ रहा है लेकिन सरकारें धीमे-धीमे काम कर रही हैं। नहीं भूलना चाहिए तीनों शहीद लेखकों के हत्यारे अब तक पकड़े नहीं गए हैं।
विनीत तिवारी ने साहित्य अकादमी सम्मान लौटाने वाले लेखक और एम एम कलबुर्गी के लिए धारवाड़ में न्याय की लड़ाई लड़ रहे लेखक पद्मश्री गणेश देवी के प्रयासों और दक्षिणायन संगठन के बारे में बताया। गणेश देवी अब गुजरात से धारवाड़ आकर रहने लगे हैं और कन्नड़ के लेखकों और अकादमिक विद्वानों को कलबुर्गी के लिए न्याय की मांग के लिए निर्भय होकर लामबंद कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि कलबुर्गी विशुद्ध लेखक थे। उन्होंने 120 से ज़्यादा दर्शन और इतिहास विषयक ग्रन्थ लिखे थे। उनके साथ उनके लिए लड़ी जा रही लड़ाई में यदि लेखक शामिल न हुए तो कौन शामिल होगा? कलबुर्गी ने अकेले इतना वैचारिक लेखन किया है जितना कर्नाटक में शताब्दियों में नहीं लिखा गया है। कलबुर्गी का कमरा अब पूरी तरह उनकी तस्वीर एवं पुस्तकों के साथ एक लेखक के स्मृति कक्ष के रूप में उपस्थित है। धारवाड़ में प्रतिनिधिमंडल ने प्रो. कलबुर्गी के परिजनों, उनकी पत्नी उमादेवी, प्रो. गणेश देवी, प्रो. सुलेखा देवी, विख्यात सामाजिक आंदोलनकारी एस.आर. हीरेमठ और कर्नाटक के विभिन्न हिस्सों से आये 40 कन्नड़ लेखकों से मुलाक़ात की।
कोल्हापुर में गोविन्द पानसरे ने बड़ी संख्या में अलग-अलग संगठन बनाये। उन्होंने जब किसी की तक़लीफ़ जानी तो उस तरह की तक़लीफ़ में पड़े अन्य लोगों को भी खोजा और उन्हें संगठित किया। पानसरे ने अपने संगठन के लोगों के सामने लक्ष्य रखा कि आप लोग उन सामाजिक कार्यकर्ताओं को ढूंढकर उनकी जीवनी परक कम से कम 80 किताबें छापें जो बिना प्रसिद्ध हुए ख़ामोशी से काम करते रहते हैं। यह काम हुआ और कॉमरेड पानसरे ने स्वयं शिवाजी सहित बहुत से विषयों पर आँख खोल देनेवाली, सरकारों को असुविधा पैदा करनेवाली किताबें लिखीं।
विनीत तिवारी ने कोल्हापुर में पानसरे की याद में प्रातः होनेवाली निर्भय यात्रा का भी हाल सुनाया कि किस तरह हम लगभग 200 लोग सुबह इस ऐलान के साथ टहलने निकले कि हम डरे हुए नहीं हैं। हमारी लड़ाई जारी है। हम बच-बचाकर नहीं, बल्कि पूरे मन से और समर्पण के साथ एकजुटता में संलग्न है और किसी भी खतरे के लिए तैयार हैं। लोग गीत गाते चले कि"गोल्या लठ्या घाला, विचार नहीं मरणार" (गोली लाठी चला लो लेकिन विचार को नहीं मार पाओगे।)। कोल्हापुर में पानसरे जी का प्रभाव हज़ारों लोगों पर है और वहां उनकी पत्नी उमा पानसरे, बहू मेघा पानसरे, पोते मल्हार और कबीर के साथ ही उनके चाहने वाले हज़ारों लोगों से बहुत ही आत्मीय अभिनन्दन हमें प्राप्त हुआ।
उन्होंने बताया कि गोवा की यात्रा कई मायने में अविस्मरणीय एवं दूरगामी प्रभाव डालनेवाली रही। गोवा में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान पत्रकारों लेखकों की उपस्थिति उनके सवालों एवं सहयोग आदि ने आश्वस्त किया।
इसी बीच सरकार द्वारा कोल्हापुर में दिए एक नोटिस का ज़िक्र भी आया जिसमें कहा गया था कि आप लोग मीटिंग में किसी का भी नाम नहीं लेंगे और किसी की निंदा नहीं करेंगे वर्ना आप लोगों को गिरफ्तार कर लिया जायेगा। तब पत्रकार निखिल वागले ने अपने वक्तव्य की शुरुआत ही यह कहकर की कि जिन्होंने हत्या की आप उन्हें पकड़ नहीं रहे उलटे आप हमें ही कह रहे हैं कि हम उनकी आलोचना न करें उनके ख़िलाफ़ आवाज़ न उठाएं। यह ठीक नहीं। हम संघर्ष नहीं छोड़ सकते। आप लोग हमें डराने की बजाय अपना काम कीजिये। इसके बाद देखा यह गया कि जो पुलिसकर्मी, अधिकारी ग़ुस्से में थे इत्मीनान से बैठ गए और ध्यान से सुनने लगे।
कुलमिलाकर विनीत ने इस बात से अपने वक्तव्य का उपसंहार किया कि आज हर स्वतंत्र सोचने विचारने वाले व्यक्ति के लिए एकजुटता, संलग्नता और संघर्ष ज़रूरी हैं। इस यात्रा के संस्मरणों के प्रकाशन को जल्द ही परिणति दी जायेगी एवं फ़ासीवाद के ख़िलाफ़ निडर लेखन करनेवाले इन तीनों लेखकों की विचार पुस्तकों को हिंदी में भी अधिकाधिक पाठकों तक पहुंचाया जाएगा। ध्यान रहे, लेखकों के लिए देशाटन आवश्यक इसीलिए बताया गया है ताकि लेखक के अनुभव का दायरा बढ़े। हमने इस यात्रा को सोद्देश्य बनाया और अन्य भाषा-भाषी समाज से सीखा-जाना, उनसे जुड़े, उन्हें जोड़ा और जहाँ ज़रूरत हो वहां खड़े होने की निडरता लेकर लौटे। इस यात्रा के दौरान प्रत्येक दिन हमारे सत्तर साला साथियों ने भी युवाओं के उत्साह और सक्रियता का परिचय दिया। हमने इस यात्रा में बहसें की, योजनाएं बनायीं, वास्तविक अमल की रुपरेखा तैयार की और सभी साथियों को यह भी काफी ऊर्जा देने वाला और एक दूसरे को समृद्ध करने वाला अनुभव लगा। हमारे समूह में तीन महिला साथी भी थीं। उनकी सक्रिय भागीदारी पूरी यात्रा में रही।
बैठक के अंत में विनीत तिवारी ने हाल ही में गिरफ़्तार किये गए पत्रकार - संपादक दीपक 'असीम' के मामले से लोगों को अवगत करवाया कि किस तरह ओशो के एक लेख के पुनर्मुद्रण पर उनके खिलाफ कार्रवाई की गयी। ये समाज में विरोधी विचार के प्रति कम होती सहनशीलता की प्रवृत्ति को दर्शाता है। इसके लिए हमें निर्भय होकर जनता से अपने विचार साझा करने होंगे और तर्कशील स्वस्थ बहस का वातावरण बनाना होगा।
बैठक में अन्य लोगों ने भी विचार व्यक्त किये। उपस्थित लोगों में ब्रजेश कानूनगो, अभय नेमा, सुलभा लागू, डॉ. कामना शर्मा, शशिभूषण, तौफ़ीक़, प्रशांत, रामासरे पाण्डे, अजय लागू, आदि प्रमुख थे।
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