-महेंद्र नेह
मित्रो , आज विश्व रंगमंच दिवस पर आपको रंगमंच के शिखर पुरुष प्रथ्वीराज कपूर के साथ तीन दिन तक निरंतर रहने , सीखने और उनके अनुभवों की साझेदारी का जो अवसर मिला , उसके कुछ संक्षिप्त अंश सुनाना चाहूँगा .
हुआ यूं कि मेरे नाट्य गुरू डॉ. बृज वल्लभ मिश्र की नियुक्ति कोटा में 1968 में निर्मित रिवॉल्विंग थियेटर - श्रीराम रंगमंच पर निर्देशक के पद पर होगयी . उनसे अपनी पसंद के कुछ कलाकार लाने को कहा गया तो वे मथुरा से मुझे तथा आगरा से सुरेन्द्र मोहन भाटिया को ले गए .
मिश्राजी के बड़े भाई गोपाल मुनि धार्मिक फिल्मों के साथ पृथ्वी थियेटर के भी प्रमुख कलाकार थे . बृज वल्लभ जी भी फिल्मों में काम करते थे , बाकी समय पापा जी के पास रंगमंच पर .......
कोटा में नियुक्ति होने पर मिश्राजी ने पापा जी से मंच देखने का आग्रह किया. उन्होंने इन शर्तों पर अपनी स्वीकृति दी कि वे कोई पब्लिक शो नहीं देंगे और केवल मंच के कलाकारों के साथ रहेंगे , मंच के अन्दर किसी अन्य को आने की अनुमति भी नहीं होगी . ऐसा ही हुआ .
प्रथ्वीराज जी अक्स़र मंच पर पालथी मार कर बैठ जाते और कहते मैं बूढा बैल हूँ , लेकिन वह बैल नहीं ,जिसने प्रथ्वी को अपने सींगों पर उठा रखा है . खूब हंसाते . नित्य एक घंटा सितार बजाते , एक दिन कहा - आओ , आज मैं आपलोगों को सितार सुनाता हूँ . उन्होंने सितार बजाने में पूरी ऊर्जा लगा दी , पसीने पसीने होगये ....हमसे पूछा कैसा लगा ? हमने कहा बहुत अच्छा , खूब तालियाँ भी बजाईं , वे बोले -क्या खाक अच्छा ? मै सितार बजा रहा था और अन्दर अन्दर रो रहा था ...अब कितना जियूँगा ? हद से हद ८-१० वर्ष , लेकिन फिर भी इस जीवन में रवि शंकर तो नहीं बन पाऊंगा .
उन्होंने एक और दुर्लभ सस्मरण सुनाया -पृथ्वी थियेटर के कलाकारों का ग्रुप किसान व् पठान नाटक लेकर लम्बी यात्राओं पर निकला हुआ था . एक दिन उनकी आवाज़ अचानक बंद होगई . हर संभव इलाज करा ने पर भी कोई लाभ न हुआ. आयोजकों ने कहा आज के शो के टिकिट बाँटें या नहीं ? उन्होंने इशारे से हाँ कर दी , मुख्य भूमिका पापा जी की ही थी . परदा उठने का समय हो गया , सभी ने कहा कि शो के केंसिल होने की घोषणा कर दें , पापाजी ने कहा रुको , मैं मेरे आराध्य शिव से आज्ञा लेलूँ ...उसके बाद उन्होंने परदा खोलने का इशारा कर दिया , मंच पर पहुंचते ही आवाज़ लौट आई , शानदार शो हुआ और परदा गिरते ही आवाज़ फिरसे बंद ! बोले - अगले दिन मुझे राज कपूर ने बंबई बुलाकर गले का ऑपरेशन कराया और फिर मेरे गले से वह भर्राई हुई आवाज़ निकली , जिसे आप लोगों ने' मुग़ले आज़म ' में सुना है , मेरी ओरिजनल आवाज़ फिर कभी वापस न आ सकी .......
मित्रो , आज विश्व रंगमंच दिवस पर आपको रंगमंच के शिखर पुरुष प्रथ्वीराज कपूर के साथ तीन दिन तक निरंतर रहने , सीखने और उनके अनुभवों की साझेदारी का जो अवसर मिला , उसके कुछ संक्षिप्त अंश सुनाना चाहूँगा .
हुआ यूं कि मेरे नाट्य गुरू डॉ. बृज वल्लभ मिश्र की नियुक्ति कोटा में 1968 में निर्मित रिवॉल्विंग थियेटर - श्रीराम रंगमंच पर निर्देशक के पद पर होगयी . उनसे अपनी पसंद के कुछ कलाकार लाने को कहा गया तो वे मथुरा से मुझे तथा आगरा से सुरेन्द्र मोहन भाटिया को ले गए .
मिश्राजी के बड़े भाई गोपाल मुनि धार्मिक फिल्मों के साथ पृथ्वी थियेटर के भी प्रमुख कलाकार थे . बृज वल्लभ जी भी फिल्मों में काम करते थे , बाकी समय पापा जी के पास रंगमंच पर .......
कोटा में नियुक्ति होने पर मिश्राजी ने पापा जी से मंच देखने का आग्रह किया. उन्होंने इन शर्तों पर अपनी स्वीकृति दी कि वे कोई पब्लिक शो नहीं देंगे और केवल मंच के कलाकारों के साथ रहेंगे , मंच के अन्दर किसी अन्य को आने की अनुमति भी नहीं होगी . ऐसा ही हुआ .
प्रथ्वीराज जी अक्स़र मंच पर पालथी मार कर बैठ जाते और कहते मैं बूढा बैल हूँ , लेकिन वह बैल नहीं ,जिसने प्रथ्वी को अपने सींगों पर उठा रखा है . खूब हंसाते . नित्य एक घंटा सितार बजाते , एक दिन कहा - आओ , आज मैं आपलोगों को सितार सुनाता हूँ . उन्होंने सितार बजाने में पूरी ऊर्जा लगा दी , पसीने पसीने होगये ....हमसे पूछा कैसा लगा ? हमने कहा बहुत अच्छा , खूब तालियाँ भी बजाईं , वे बोले -क्या खाक अच्छा ? मै सितार बजा रहा था और अन्दर अन्दर रो रहा था ...अब कितना जियूँगा ? हद से हद ८-१० वर्ष , लेकिन फिर भी इस जीवन में रवि शंकर तो नहीं बन पाऊंगा .
उन्होंने एक और दुर्लभ सस्मरण सुनाया -पृथ्वी थियेटर के कलाकारों का ग्रुप किसान व् पठान नाटक लेकर लम्बी यात्राओं पर निकला हुआ था . एक दिन उनकी आवाज़ अचानक बंद होगई . हर संभव इलाज करा ने पर भी कोई लाभ न हुआ. आयोजकों ने कहा आज के शो के टिकिट बाँटें या नहीं ? उन्होंने इशारे से हाँ कर दी , मुख्य भूमिका पापा जी की ही थी . परदा उठने का समय हो गया , सभी ने कहा कि शो के केंसिल होने की घोषणा कर दें , पापाजी ने कहा रुको , मैं मेरे आराध्य शिव से आज्ञा लेलूँ ...उसके बाद उन्होंने परदा खोलने का इशारा कर दिया , मंच पर पहुंचते ही आवाज़ लौट आई , शानदार शो हुआ और परदा गिरते ही आवाज़ फिरसे बंद ! बोले - अगले दिन मुझे राज कपूर ने बंबई बुलाकर गले का ऑपरेशन कराया और फिर मेरे गले से वह भर्राई हुई आवाज़ निकली , जिसे आप लोगों ने' मुग़ले आज़म ' में सुना है , मेरी ओरिजनल आवाज़ फिर कभी वापस न आ सकी .......
No comments:
Post a Comment