"आज देश में इस तरह का माहौल बनाया जा रहा है कि जैसे हम सोच रहे हैं, जैसे हम खा रहे हैं, पी रहे हैं वैसे ही आप सोचें। ये अधिनायकवादी प्रवृति है, गुंडागर्दी है। जिस मध्य प्रदेश के इंदौर में इप्टा के राष्ट्रीय सम्मलेन पर फ़ासिस्ट हमला हुआ, उसी मध्यप्रदेश में हरिशंकर परसाई को भी पीटा गया था। यह हमारे लिए चुनौती है कि हमें वर्गसंघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए काम करना चाहिए। RSS इस देश का सबसे ख़तरनाक फ़ासीवादी गिरोह है और यह देश की सरकार को नियंत्रित करने का काम कर रहा है."
ये बातें सुप्रसिद्ध कवि अरुण कमल ने इंदौर में हुए भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) के 14वें राष्ट्रीय सम्मेलन पर हुए फासीवादी हमले के खिलाफ कालिदास रंगालय में आयोजित प्रतिरोध सभा में बोलते हुए कहा।
प्रख्यात कवि आलोक धन्वा ने अपने सम्बोधन में कहा "जब हमने दूसरे विश्वयुद्ध में फासीवादी ताकतों को लड़कर पराजित किया तो अब भी क्यों नहीं लड़ सकते। इंदौर में इप्टा के राष्ट्रीय सम्मेलन पर हमला करने वाले आर.एस.एस और उसके अनुषांगिक संगठनो की आजादी के आंदोलन में कोई भूमिका नहीं थी, इससे जुड़े लोगों ने महात्मा गांधी की उस समय हत्या की जब वे प्रार्थना करने जा रहे थे।ये बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है ऐसे लोग हमारी साझी विरासत पर हमला करने जा रहे हैं।"
चर्चित डाक्टर डा सत्यजीत ने कहा "आर.एस. इस बजरंग दल जैसे धर्म व् देश विरोधी लोग आज देशभक्ति की बात कर रहे हैं।जिनका देश की साझी सांस्कृतिक विरासत और परम्परा का न तो कोई ज्ञान है और ना ही सदियों पुरानी इस विशिष्ट पहचान पर कोई आस्था।"
कार्यक्रम की शुरुआत में इंदौर के राष्ट्रीय अधिवेशन में शामिल प्रतिनिधियों की ऒर से तनवीर अख्तर ने पूरे घटना का विस्तार से ब्यौरा देते हुए बताया कि "सबके लिए एक सुन्दर दुनिया के संकल्प के साथ भारतीय जननाट्य संघ (इप्टा) का 14वां राष्ट्रीय सम्मेलन 02 अक्टूबर, 2016 से 04 अक्टूबर, 2016 तक इंदौर में आयोजित किया गया था, जिसमें देश के 22 राज्यों से 800 से अधिक प्रतिनिधि/कलाकारों ने भाग लिया। राष्ट्रीय सम्मेलन के अंतिम दिन 04 अक्टूबर, 2016 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर. एस. एस.) समर्थित भारत स्वाभिमान संगठन के कार्यकर्ताओं ने आनंद मोहन माथुर सभागृह (ए. के. हंगल रंग परिसर) में चल रहे संगठन-सत्र पर हमला कर सम्मेलन को बाधित करने का प्रयास किया। सभागृह में उपस्थित इप्टाकर्मियों के सशक्त प्रतिरोध की वजह से फ़ासिस्ट ताक़तों को वहां से भागना पड़ा।"
इस अवसर पर पूरे घटना की वीडियो क्लिपिंग भी दिखाई गयी।
वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी अनिल अंशुमन ने अपने संबोधन में कहा " आज पुरे देश में लिखने पढ़ने वालों पर हमला काफी बढ़ गया है।हमे इसके विरुद्ध एकजुटता की आवश्यकता है।"
चर्चित साहित्यकार तैय्यब हुसैन पीड़ित ने कहा "आज देश में साम्प्रदायिक ताकतें हिटलर और मुसोलिनी की विचारधारा से प्रेरणा ले रहे हैं. इसलिए ज़रूरी हो गया है कि नाटक करने, गीत गाने , सांस्कृतिक कार्यो के अलावा हम प्रतिरोध को संगठित करें।"
लोक नर्तक विश्वबंधु जी ने इंदौर की घटना की घोर निंदा करते हुए कहा "मैं 1954 से ही इप्टा के जुड़ा हुआ हूँ; लेकिन इंदौर जैसी घटना जिसमे नाटक करने वालो को दबाया जाए ना कभी ऐसा देखा और ना सुना।"
वरिष्ठ रंगकर्मी जावेद अख्तर ने इंदौर के समाचार पत्र "प्रभात किरण" में प्रकाशित ख़बर "इस इप्टा से कैसे निपटा जाए" का पाठ किया और प्रतिरोध सभा में एकजुटता सम्बंधी प्रस्ताव पेश करते हुए कहा "हमें फासिस्स्ट ख़तरे के ख़िलाफ़ एकजुट होकर बड़ी गोलबंदी करनी होगी"।
वरीय नाटककार व निर्देशक हसन इमाम ने कहा कि यह हमला देश के प्रजातान्त्रिक मूल्यों पर हमला है। यह हमला दलितों, अल्पसंख्यकों, आदिवासियों, किसानों, मजदूरों पर हो रहे हमलों से अलग नहीं है. इसीलिये लेखकों , रंगकर्मियों को दलितों, अल्पसंख्यकों, आदिवासियों, किसानों, मजदूरों के साथ कंधा से कंधा मिला कर फासिस्ट हमलों की मुख़ालफत करनी चाहिए।
सभा को वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी कुमार अनुपम, सामजिक कार्यकर्ता रूपेश, युवा रंगकर्मी अजीत कुमार, युवा अभिनेता सुमन कुमार, सामजिक कार्यकर्ता रवींद्र नाथ राय आदि ने सम्बोधित किया।
प्रतिरोध सभा में बड़ी संख्या में रंगकर्मी, कलाकार, सामाजिक कार्यकर्ता शामिल थे। प्रमुख लोगों में अनीश अंकुर, राजन कुमार सिंह, फ़ीरोज़ अशरफ खां, मोना झा, विनोद कुमार, कुमुद कुंदन, विशाल तिवारी, रंजीत, गठन गुलाल, सरफ़राज़, उषा वर्मा, दीपक कुमार, कथाकार शेखर, विनय, दीपक, गुलशन, विक्रांत, अभिषेक शर्मा शामिल थें. सभा की अध्यक्षता विश्वबंधु, समी अहमद, आलोक धन्वा और अरुण कमल की अध्यक्ष मंडली ने की.
प्रतिरोध सभा में बिहार आर्ट थिएटर, नटमंडप, प्रेरणा, हिरावल, किसलय, जन सांस्कृतिक मंच, सुरांगन, अभियान, विहान सांस्कृतिक मंच, अक्षरा आर्ट्स, जनविकल्प, बिहार एप्सो,अल खैर, पुनश्च, पटना सिटी इप्टा, पटना इप्टा से जुड़े संस्कृतिकर्मियों, कलाकारों ने भाग लिया। सभा का संचालन युवा रंगकर्मी जयप्रकाश ने किया।
प्रतिरोध सभा में जावेद अख़्तर खां ने पटना के संस्कृतिकर्मियों की ओर से एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया कि
"इंदौर में विगत 2 अक्टूबर को शुरू हुए इप्टा के 14वें राष्ट्रीय सम्मेलन के अंतिम दिन यानी 4 अक्टूबर 2016 को भारत स्वाभिमान मंच नाम के एक संगठन जिसका किसी ने नाम भी न सुना होगा, के 10-12 उपद्रवी तत्वों ने हमले की कोशिश की। ये मंच पर चढ़ गए और नारेबाजी करने लगे। आयोजकों द्वारा इन्हें बाहर का रास्ता दिखाए जाने के बाद इन्होंने सम्मेलन स्थल पर पत्थरबाजी की जिसमें एक इप्टा कार्यकर्ता घायल हो गया। बाद में इन्होंने स्थानीय विजय नगर थाने पर पहुँच कर उलटे इप्टा के लोगों पर फर्जी प्राथमिकी दर्ज कराने का दबाव बनाया। स्थानीय आर.एस.एस. इकाई ने भी इप्टा सम्मेलन में कथित देश-विरोधी वक्तव्य दिए जाने का फर्जी आरोप लगाते हुए विज्ञप्ति जारी की। अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि कायराना हमला करनेवाले एक नामालूम से, लगभग रातों-रात खड़े हो गए इस संगठन का संबंध किस से है?
यह घटना संघ समर्थक ताकतों द्वारा लेखकों, कलाकारों, बुद्धिजीवियों पर लगातार हो रहे हमलों की शृंखला की ताजी कड़ी है। केंद्र की मोदी सरकार और भाजपा शासित राज्य सरकारों के शासन में गाय, देश और धर्म का नाम लेकर अभिव्यक्ति की आजादी, विवेक, समता और सांप्रदायिक सौहार्द्र की संस्कृति पर तथा दलितों और अल्पसंख्यकों पर हमले करनेवाले उन्मादी तत्वों के हौसले बढ़े हुए हैं। लेकिन इन हमलों का प्रतिरोध भी हर कहीं हो रहा है। इप्टा के सम्मेलन पर हमला देश की सांस्कृतिक विरासत के प्रगतिशील पहलुओं पर बढ़ते फासिस्ट हमलों का ही एक और बदतरीन उदाहरण है।
इप्टा के आंदोलन को जिन महान कलाकारों, फिल्मकारों, चित्रकारों, लेखकों-बुद्धिजीवियों ने खून-पसीना एक कर खड़ा किया, उन्होंने देश ही नहीं दुनिया की मानवतावादी और प्रगतिशील संस्कृति को आगे बढ़ाया है। हम पटना के कलाकार, संस्कृतिकर्मी, सामाजिक कार्यकर्ता और नागरिक इप्टा के राष्ट्रीय सम्मेलन पर हुए हमले की कठोर भर्त्सना करते हुए हमलावरों और साजिशकर्ताओं की गिरफ्तारी और घटना में मध्य प्रदेश की राज्य सरकार की भूमिका की न्यायिक जाँच की मांग करतें हैं."