. सारिका श्रीवास्तव
इंदौर (मध्य प्रदेश) के प्रगतिशील विचारधारा के साथियों ने 13 अगस्त 2016 को लैटिन अमेरिका के समाजवादी देश क्यूबा के राष्ट्रपति रहे काॅमरेड फिदेल काॅस्त्रो के 90वें जन्मदिन पर उनके जीवन, क्यूबाई क्रान्ति और समाजवाद पर अनेक बातें साझा कीं साथ ही क्यूबा का क्रान्तिकारी संगीत भी सुना।
काॅ. विनीत तिवारी की क्यूबा पर आधारित कविता ‘ज़रूरत’ से कार्यक्रम की शुरुआत हुई। भूमिका रखते हुए डाॅ. जया मेहता ने भारतीय जन नाट्य संघ के युवा और किशोर साथियों को क्यूबा और फिदेल कास्त्रो के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि क्यूबा, अमेरिका से लगा हुआ एक छोटा सा देश है जिस पर पहले अमेरिका के पिट्ठू तानाशाह बटिस्टा का शासन था। वहां केवल गन्ने की खेती होती थी जो स्थानीय लोगों की ज़रूरत पूरा करने के बजाय अमेरिका निर्यात कर दी जाती थी। तब फिदेल कास्त्रो, उनके साथी अर्जेंटीना के चे ग्वेरा और उनके तमाम अन्य क्रांतिकारी साथियों ने बटिस्टा के शासन के विरुद्ध लोकतंत्र के लिए सिएरा मैस्ट्रा की पहाड़ियों पर गोरिल्ला युद्ध करके क्यूबा को आज़ाद करवाया। आज लैटिन अमेरिका के अन्य देश, जिनकी व्यायसायिक और प्राकृतिक संपदा का शोषण भी अमेरिका करता रहा है, एक-एक कर अमेरिका के खिलाफ लामबंद हो रहे हैं और समाजवाद की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
क्यूबा की क्रान्ति को याद करते हुए उन्होंने कहा कि क्यूबा ने जिस तरह पूंजीवाद के खिलाफ संघर्ष कर अपनी आजादी हासिल की और सही मायनों में आज़ादी को आगेू बढ़ाया, वोे तीसरी दुनिया के मुल्कों के लिए एक मिसाल है।
हमने चे ग्वेरा को भी याद किया की उन्होंने किस तरह समाजवादी क्यूबा में एक नए तरह के समाज को बनाकर स्थापना करने में अपना योगदान दिया। फिदेल केवल क्यूबा की जनता के लिए ही क्रान्तिकारी चमत्कारिक नेतृत्वकारी ही नहीं हैं बल्कि वे एक चमकते हुए प्रकाशपुंज की तरह समूची तीसरी दुनिया चाहे वह मोजाम्बिक और अंगोला हो या भारत और नेपाल हो या निकारागुआ या एल सल्वाडोर या बोलिविया या एक्वाडोर या फिर वेनेजुएला वे सबके लिए प्रेरणादायक हैं।
जब सोवियत यूनियन और पूर्वी योरप के देशों में समाजवादी व्यवस्थाएँ ढह रही थीं और सीएमईए जैसी वैश्विक वैकल्पिक अर्थव्यवस्था का प्रभाव क्षीण हो रहा था, वो दौर क्यूबा के लिए बहुत ही कठिन था। लेकिन तब फिदेल ने अपने देश की जनता को संदेश दिया कि ‘‘इतिहास ने हमें ये ज़िम्मेदारी सौंपी है कि हम समाजवादी क्रान्ति को आगे बढ़ाएँ।’’ क्यूबा ने अनेक सख्त उपाय किये, ख़ुद फिदेल कास्त्रो ने 60 वर्ष से ज़्यादा की उम्र में साइकल चलाना सीखा क्योंकि सोवियत संघ से आने वाला तेल बंद हो गया था, अनेक सुविधाओं में कटौती की लेकिन अपने देश के नागरिकों की भोजन, शिक्षा, स्वास्थ्य और सम्मानजनक रोज़गार की मूलभूत सुविधाओं को बरकरार रखा। क्यूबा सारी विपरीत परिस्तिथियों का सामना करते हुए संकट से निकला और इस पूरे दौर में सुदृढ़ नेतृत्व किया फ़िदेल कास्त्रो ने। इसीलिए समाजवाद की इच्छा रखने वाले दुनिया के करोड़ों-अरबों लोगों के दिलों में क्यूबा और फ़िदेल का स्थान बहुत ही विशिष्ट है।
जया मेहता ने बताया कि सोवियत संघ के विघटन के बाद क्युूबा गए भारतीय पत्रकार सईद नकवी ने फिदेल कास्त्रो से एक इंटरव्यू में पूछा कि जब दुनिया के सारे मुल्कों ने समाजवाद को नकार दिया है तो ऐसे में केवल क्यूबा में समाजवाद पर डटे रहना क्या आपको गलत नहीं लगता। जवाब में फ़िदेल ने कहा कि सही और कामयाब होने में अंतर होता है। भले ही दुनिया में वर्तमान में समाजवाद नाकाम होता लग रहा हो लेकिन उससे वह ग़लत साबित नहीं हो जाता। यहीं फ़िदेल के उस ऐतिहासिक व विश्वप्रसिद्ध भाषण की भी याद की गई जिसमें उन्होंने अदालत में कहा था कि ‘आपका कानून भले ही मुझे गलत और गुनहगार ठहराये, इतिहास मुझे सही साबित करेगा।’
संदर्भ केन्द्र की पहल पर हुए इस कार्यक्रम में भारतीय महिला फेडरेशन, प्रगतिशील लेखक संघ, इप्टा, रूपांकन, बैंक ट्रेड यूनियनों व अन्य संगठनों के साथियों ने शिरकत की। धेनु मार्केट स्थित म. प्र. बैंक आॅफिसर्स एसोसिएशन के दफ्तर ओ.सी.सी. होम में आयोजित कॅामरेड वसंत शिंत्रे, शैला शिंत्रे, अरविंद पोरवाल, विजय दलाल, दशरथ पवार, चुन्नीलाल वाधवानी, ब्रजेश कानूनगो, सीमा राजोरिया (अशोकनगर), सारिका श्रीवास्तव, नेहा दुबे, प्रकाश जैन, अनुराधा तिवारी, राज लोगरे, तौफीक गौरी, पूजा सेरोके, साक्षी सोलंकी इत्यादि साथी शरीक हुए। आमिर खान व नितिन बेदरकर ने फ़िदेल कास्त्रो के जीवन और क्यूबा के संगीत से परिचित करवाने वाले वीडियो प्रोजेक्टर के माध्यम से दिखाए।
इंदौर (मध्य प्रदेश) के प्रगतिशील विचारधारा के साथियों ने 13 अगस्त 2016 को लैटिन अमेरिका के समाजवादी देश क्यूबा के राष्ट्रपति रहे काॅमरेड फिदेल काॅस्त्रो के 90वें जन्मदिन पर उनके जीवन, क्यूबाई क्रान्ति और समाजवाद पर अनेक बातें साझा कीं साथ ही क्यूबा का क्रान्तिकारी संगीत भी सुना।
काॅ. विनीत तिवारी की क्यूबा पर आधारित कविता ‘ज़रूरत’ से कार्यक्रम की शुरुआत हुई। भूमिका रखते हुए डाॅ. जया मेहता ने भारतीय जन नाट्य संघ के युवा और किशोर साथियों को क्यूबा और फिदेल कास्त्रो के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि क्यूबा, अमेरिका से लगा हुआ एक छोटा सा देश है जिस पर पहले अमेरिका के पिट्ठू तानाशाह बटिस्टा का शासन था। वहां केवल गन्ने की खेती होती थी जो स्थानीय लोगों की ज़रूरत पूरा करने के बजाय अमेरिका निर्यात कर दी जाती थी। तब फिदेल कास्त्रो, उनके साथी अर्जेंटीना के चे ग्वेरा और उनके तमाम अन्य क्रांतिकारी साथियों ने बटिस्टा के शासन के विरुद्ध लोकतंत्र के लिए सिएरा मैस्ट्रा की पहाड़ियों पर गोरिल्ला युद्ध करके क्यूबा को आज़ाद करवाया। आज लैटिन अमेरिका के अन्य देश, जिनकी व्यायसायिक और प्राकृतिक संपदा का शोषण भी अमेरिका करता रहा है, एक-एक कर अमेरिका के खिलाफ लामबंद हो रहे हैं और समाजवाद की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
क्यूबा की क्रान्ति को याद करते हुए उन्होंने कहा कि क्यूबा ने जिस तरह पूंजीवाद के खिलाफ संघर्ष कर अपनी आजादी हासिल की और सही मायनों में आज़ादी को आगेू बढ़ाया, वोे तीसरी दुनिया के मुल्कों के लिए एक मिसाल है।
हमने चे ग्वेरा को भी याद किया की उन्होंने किस तरह समाजवादी क्यूबा में एक नए तरह के समाज को बनाकर स्थापना करने में अपना योगदान दिया। फिदेल केवल क्यूबा की जनता के लिए ही क्रान्तिकारी चमत्कारिक नेतृत्वकारी ही नहीं हैं बल्कि वे एक चमकते हुए प्रकाशपुंज की तरह समूची तीसरी दुनिया चाहे वह मोजाम्बिक और अंगोला हो या भारत और नेपाल हो या निकारागुआ या एल सल्वाडोर या बोलिविया या एक्वाडोर या फिर वेनेजुएला वे सबके लिए प्रेरणादायक हैं।
जब सोवियत यूनियन और पूर्वी योरप के देशों में समाजवादी व्यवस्थाएँ ढह रही थीं और सीएमईए जैसी वैश्विक वैकल्पिक अर्थव्यवस्था का प्रभाव क्षीण हो रहा था, वो दौर क्यूबा के लिए बहुत ही कठिन था। लेकिन तब फिदेल ने अपने देश की जनता को संदेश दिया कि ‘‘इतिहास ने हमें ये ज़िम्मेदारी सौंपी है कि हम समाजवादी क्रान्ति को आगे बढ़ाएँ।’’ क्यूबा ने अनेक सख्त उपाय किये, ख़ुद फिदेल कास्त्रो ने 60 वर्ष से ज़्यादा की उम्र में साइकल चलाना सीखा क्योंकि सोवियत संघ से आने वाला तेल बंद हो गया था, अनेक सुविधाओं में कटौती की लेकिन अपने देश के नागरिकों की भोजन, शिक्षा, स्वास्थ्य और सम्मानजनक रोज़गार की मूलभूत सुविधाओं को बरकरार रखा। क्यूबा सारी विपरीत परिस्तिथियों का सामना करते हुए संकट से निकला और इस पूरे दौर में सुदृढ़ नेतृत्व किया फ़िदेल कास्त्रो ने। इसीलिए समाजवाद की इच्छा रखने वाले दुनिया के करोड़ों-अरबों लोगों के दिलों में क्यूबा और फ़िदेल का स्थान बहुत ही विशिष्ट है।
जया मेहता ने बताया कि सोवियत संघ के विघटन के बाद क्युूबा गए भारतीय पत्रकार सईद नकवी ने फिदेल कास्त्रो से एक इंटरव्यू में पूछा कि जब दुनिया के सारे मुल्कों ने समाजवाद को नकार दिया है तो ऐसे में केवल क्यूबा में समाजवाद पर डटे रहना क्या आपको गलत नहीं लगता। जवाब में फ़िदेल ने कहा कि सही और कामयाब होने में अंतर होता है। भले ही दुनिया में वर्तमान में समाजवाद नाकाम होता लग रहा हो लेकिन उससे वह ग़लत साबित नहीं हो जाता। यहीं फ़िदेल के उस ऐतिहासिक व विश्वप्रसिद्ध भाषण की भी याद की गई जिसमें उन्होंने अदालत में कहा था कि ‘आपका कानून भले ही मुझे गलत और गुनहगार ठहराये, इतिहास मुझे सही साबित करेगा।’
क्यूबा की जनता ने वेनेजुएला, बोलिविया, इक्वेडोर और लैटिन अमेरिका के अन्य देशों के लिए लोकतांत्रिक भागीदारी और पूँजीवाद से अलग एक नये किस्म के बराबरी पर आधारित मानव समाज का परिदृश्य सामने रखा। इससे प्रभावित होकर अनेक देशों में पूँजीवाद और अमेरिकी साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ आंदोलन उठे और मजबूत हुए। क्यूबा ने न केवल अपने देश को सँवारा बल्कि सारी दुनिया में मानवता की मिसालें कायम कीं। क्यूबा के चिकित्सक दुनिया के हर कोने में किसी भी आपदा से निपटने के लिए हरपल तैयार रहते हैं।
कॅामरेड विनीत ने बताया कि जब पूरा देश ग़ुलामी के नारकीय जीवन को झेल रहा था तब फिदेल ने होसे मार्ती जैसे क्रांतिकारी कवि को समूचे लैटिन अमेरिका के सर्वाधिक सम्मानित कवि की प्रतिष्ठा दी। ‘ग्वांतानामेरा’ जैसा प्रेमगीत अँधेरे में उम्मीद की रोशनी बिखेरने वाले गीत की तरह दुनियाभर में प्रसिद्ध हुआ। महान गायक पीट सीजर ने इसकी धुन बनाई और गाया। आज यह दुनिया के अमर गीतों में एक है। उपस्थित लोगों ने इस गीत को गाते पीट सीजर के वीडियो को भी देखा। नोबल पुरस्कार प्राप्त कोलंबिया के साहित्यकार गेब्रियल गार्सिया माक्र्वेज़ पर एक वीडियो दिखाते हुए विनीत ने बताया कि फिदेल और मार्क्वेज़ बहुत अच्छे दोस्त भी थे। मार्क्वेज़ अपनी लिखी किताबों की पहली पांडुलिपि सबसे पहले फिदेल को ही पढ़वाते थे।
कॅामरेड विनीत ने बताया कि जब पूरा देश ग़ुलामी के नारकीय जीवन को झेल रहा था तब फिदेल ने होसे मार्ती जैसे क्रांतिकारी कवि को समूचे लैटिन अमेरिका के सर्वाधिक सम्मानित कवि की प्रतिष्ठा दी। ‘ग्वांतानामेरा’ जैसा प्रेमगीत अँधेरे में उम्मीद की रोशनी बिखेरने वाले गीत की तरह दुनियाभर में प्रसिद्ध हुआ। महान गायक पीट सीजर ने इसकी धुन बनाई और गाया। आज यह दुनिया के अमर गीतों में एक है। उपस्थित लोगों ने इस गीत को गाते पीट सीजर के वीडियो को भी देखा। नोबल पुरस्कार प्राप्त कोलंबिया के साहित्यकार गेब्रियल गार्सिया माक्र्वेज़ पर एक वीडियो दिखाते हुए विनीत ने बताया कि फिदेल और मार्क्वेज़ बहुत अच्छे दोस्त भी थे। मार्क्वेज़ अपनी लिखी किताबों की पहली पांडुलिपि सबसे पहले फिदेल को ही पढ़वाते थे।
संदर्भ केन्द्र की पहल पर हुए इस कार्यक्रम में भारतीय महिला फेडरेशन, प्रगतिशील लेखक संघ, इप्टा, रूपांकन, बैंक ट्रेड यूनियनों व अन्य संगठनों के साथियों ने शिरकत की। धेनु मार्केट स्थित म. प्र. बैंक आॅफिसर्स एसोसिएशन के दफ्तर ओ.सी.सी. होम में आयोजित कॅामरेड वसंत शिंत्रे, शैला शिंत्रे, अरविंद पोरवाल, विजय दलाल, दशरथ पवार, चुन्नीलाल वाधवानी, ब्रजेश कानूनगो, सीमा राजोरिया (अशोकनगर), सारिका श्रीवास्तव, नेहा दुबे, प्रकाश जैन, अनुराधा तिवारी, राज लोगरे, तौफीक गौरी, पूजा सेरोके, साक्षी सोलंकी इत्यादि साथी शरीक हुए। आमिर खान व नितिन बेदरकर ने फ़िदेल कास्त्रो के जीवन और क्यूबा के संगीत से परिचित करवाने वाले वीडियो प्रोजेक्टर के माध्यम से दिखाए।
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