13 अक्टूबर 2016 को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमले के खिलाफ़ देशव्यापी प्रतिरोध का आह्वान
इंदौर में 02 से 04 अक्टूबर तक आयोजित इप्टा के 14वें राष्ट्रीय सम्मेलन के अंतिम दिन आनंद मोहन माथुर सभागृह में समापन सत्र के दौरान दक्षिणपंथी संगठनों से संबद्ध कुछ युवाओं ने सत्र की कार्यवाही को रोकने का प्रयास किया, जिसके परिप्रेक्ष्य में भारतीय जन नाट्य संघ ने अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हो रहे हमलों के विरोध में 13 अक्टूबर का दिन प्रतिरोध दिवस के रूप में मनाने का आह्वान किया है।
इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव राकेश ने कहा कि इप्टा के सम्मेलन के दौरान हुआ यह हमला राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और उसके अनुषांगिक संगठनों द्वारा अभिव्यक्ति की आज़ादी पर लगातार किये जा रहे हमलों की कड़ी का ही एक हिस्सा है। इप्टा का जन्म 1943 में भारत के स्वतत्रंता संग्राम में 1943 में हुआ है। यह द्वित्तीय विष्वयुद्ध का समय भी था और अपनी शुरुआत से ही इप्टा न केवल युद्ध के विरोध में खड़ी हुई है बल्कि देश की संप्रभुता और एकता को बचाने के लिए भी मजबूती से खड़ी रही है और इसके लिए इप्टा के तमाम कार्यकर्ता ब्रिटिश शासन के दौरान जेल भी गए हैं। उन्होंने आगे कहा कि इप्टा युद्ध और आतंकवाद दोनों का ही कड़ा विरोध करती है क्योंकि दोनों ही नवउदारवादी संकट का परिणाम हैं। हम देखते हैं कि यह शासक वर्ग की वही जनविरोधी व्यवस्था है जिसमें जनता की शांति के लिए काम करने वालों की छवि देशविरोधी की छवि बनाकर प्रस्तुत की जाती है। यह हमारी देशभक्ति और राष्ट्र के प्रति हमारी प्रतिबद्धता ही है कि हम उस युद्ध का विरोध करते हैं जो दोनों ही देशों में इंसानी जिंदगियों को खत्म कर देगा। भारत के लोगों के पास अपने सैनिकों की जान दांव पर लगाकर भी पाने के लिए कुछ नहीं है। उन्होंने इप्टा की तमाम इकाइयों के साथ अन्य समानधर्मा लेखक, सांस्कृतिक व सामाजिक संगठनों से यह अपील की है कि सभी 13 अक्टूबर 2016 का दिन अभिव्यक्ति की आजादी पर हमलों के खिलाफ प्रतिरोध दिवस के रूप् में मनाएं और साम्प्रदायिक फासीवाद, आतंकवाद, युद्धोन्माद और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हो रहे हमलों के विरुद्ध लोगों को एकजुट करें।
राकेश वेदा
महासचिव
भारतीय जन नाट्य संघ
इंदौर में 02 से 04 अक्टूबर तक आयोजित इप्टा के 14वें राष्ट्रीय सम्मेलन के अंतिम दिन आनंद मोहन माथुर सभागृह में समापन सत्र के दौरान दक्षिणपंथी संगठनों से संबद्ध कुछ युवाओं ने सत्र की कार्यवाही को रोकने का प्रयास किया, जिसके परिप्रेक्ष्य में भारतीय जन नाट्य संघ ने अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हो रहे हमलों के विरोध में 13 अक्टूबर का दिन प्रतिरोध दिवस के रूप में मनाने का आह्वान किया है।
इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव राकेश ने कहा कि इप्टा के सम्मेलन के दौरान हुआ यह हमला राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और उसके अनुषांगिक संगठनों द्वारा अभिव्यक्ति की आज़ादी पर लगातार किये जा रहे हमलों की कड़ी का ही एक हिस्सा है। इप्टा का जन्म 1943 में भारत के स्वतत्रंता संग्राम में 1943 में हुआ है। यह द्वित्तीय विष्वयुद्ध का समय भी था और अपनी शुरुआत से ही इप्टा न केवल युद्ध के विरोध में खड़ी हुई है बल्कि देश की संप्रभुता और एकता को बचाने के लिए भी मजबूती से खड़ी रही है और इसके लिए इप्टा के तमाम कार्यकर्ता ब्रिटिश शासन के दौरान जेल भी गए हैं। उन्होंने आगे कहा कि इप्टा युद्ध और आतंकवाद दोनों का ही कड़ा विरोध करती है क्योंकि दोनों ही नवउदारवादी संकट का परिणाम हैं। हम देखते हैं कि यह शासक वर्ग की वही जनविरोधी व्यवस्था है जिसमें जनता की शांति के लिए काम करने वालों की छवि देशविरोधी की छवि बनाकर प्रस्तुत की जाती है। यह हमारी देशभक्ति और राष्ट्र के प्रति हमारी प्रतिबद्धता ही है कि हम उस युद्ध का विरोध करते हैं जो दोनों ही देशों में इंसानी जिंदगियों को खत्म कर देगा। भारत के लोगों के पास अपने सैनिकों की जान दांव पर लगाकर भी पाने के लिए कुछ नहीं है। उन्होंने इप्टा की तमाम इकाइयों के साथ अन्य समानधर्मा लेखक, सांस्कृतिक व सामाजिक संगठनों से यह अपील की है कि सभी 13 अक्टूबर 2016 का दिन अभिव्यक्ति की आजादी पर हमलों के खिलाफ प्रतिरोध दिवस के रूप् में मनाएं और साम्प्रदायिक फासीवाद, आतंकवाद, युद्धोन्माद और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हो रहे हमलों के विरुद्ध लोगों को एकजुट करें।
राकेश वेदा
महासचिव
भारतीय जन नाट्य संघ
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