लखनऊ। इप्टा के 73वें स्थापना दिवस पर सोमवार को इप्टा कार्यालय में प्रगतिशील सांस्कृतिक संगठनों के समक्ष मौजूदा चुनौतियों पर चर्चा हुई। इसमें वक्ताओं ने कहा कि प्रतिशोध के स्वरों को कुचलने की साजिश की जा रही है। ऐसे में आपसी मतभेदों और स्वार्थ को छोड़ कर देश और मानवता के लिए प्रगतिशील विचारधारा के लोगों को संगठित होना पड़ेगा। इस अवसर पर नाटक गंगा लाभ का प्रदर्शन भी किया गया।
वरिष्ठ रंगकर्मी राकेश के संचालन में हुई इस संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे अध्यक्ष नदीम हसनैन ने प्रगतिशील सांस्कृतिक आन्दोलन से युवाओं को जोड़ने पर जोर दिया। वरिष्ठ आलोचक वीरेन्द्र यादव ने साम्प्रदायिकता और फांसीवादी ताकतों के चलते प्रतिरोध की आवाजों को कुचले जाने का मुद्दा जोर-शोर से उठाया। प्रो. रमेश दीक्षित ने हर पल सचेत रहने की जरूरत पर जोर दिया। साथ ही सुझाव दिया कि इप्टा की सांस्कृतिक यात्राओं को जारी रखा जाए। जलेस के सचिव नलिन रंजन सिंह ने इतिहास और परंपरा को विकृत करने वाली ताकतों का विरोध करने की बात कही। जसम के कौशल किशोर ने कृत्रिम उत्सवों का विरोध किया और श्रम उत्सव मनाने पर जोर दिया। इस मौके पर ज्ञान चन्द्र शुक्ल के निर्देशन में मंचित गंगा प्रसाद मिश्र की कहानी गंगा लाभ का मंचन किया गया। इसमें मोक्ष के लिए गंगा घाट पर कर्मकांड का प्रसंग पेश किया गया। इसमें अंतिम संस्कार जैसे संवेदी कार्य के भी व्यावसायिक रूप को पेश किया गया। नाटक में किसानों की दुर्दशा पर सरकारी उपेक्षा पर करारी चोट करता संवाद दर्शकों द्वारा खासा सराहा गया। इसमें ओपी अवस्थी, सुखेन्दु मंडल, राजीव भटनागर, राजू पांडेय, इच्छा शंकर, चन्द्रभास, पवन, उत्कर्ष, ऋषभ, निखिल, शुभम, धर्मेन्द्र ने अभिनय किया।
साभार : नवभारत टाइम्स
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