इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रणबीर सिंह ने जनसंस्कृति दिवस की पूर्व संध्या पर 24 मई, 2015 को बिहार इप्टा कार्यालय, कैफी आज़मी इप्टा सांस्कृतिक केन्द्र, #701-बी, आशियाना चैम्बर्स, एक्जीबिशन रोड, पटना से जनसंस्कृति दिवस संदेश जारी किया।
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जनसंस्कृति दिवस: 25 मई 2015
संदेश
25 मई, 1943 हिन्दुस्तान के थियेटर में एक बहुत अहम तारीख है। उस दिन ‘इप्टा’ की स्थापना हुई। हिन्दुस्तान को एक ताकतवर थियेटर मूवमेंट मिला। इप्टा की शुरूआत के पीछे खास मकसद था। एक खास विचार था। मकसद था काॅलोनियल हुकुमत से आज़ादी पाना। गंगा-जमुनी कल्चर की विचारधारा को जनमानस तक पहुँचाना। एकता का संदेश देना। नाटको और गीतों के जरिये सामाजिक चेतना का प्रचार करना। यह काम इप्टा ने बखुबी किया। आज के दिन हम अपने बुजुगों को उनकी हिम्मत, उनके जोश, उनकी बुलंद आवाज को सलाम करते हैं।
15 अगस्त, 1947 को लाल किला की दीवार पर आजाद हिन्द का झण्डा फहराया गया। उसी दिन हमारे
कंधों पर एक बड़ी जिम्मेदारी आन पड़ी। वह थी कि किसी हालत में इस झण्डे को झुकने ना दिया जाये। आजादी हासिल होने के बाद उसे कायम रख पाना, आजादी पाने से भी ज्यादा मुश्किल होता है। गंगा-जमुनी कल्चर में दरार न आने पाये। दिल में जोश, दिमाग में विचार, आँख से आँख मिलाने की ताकत, सिर ऊँचा करके चलने की हिम्मत बरकार रहे। किसी हद तक हमने अपनी जिम्मेदारी निभाई। मगर जमाने का दस्तुर है बदलना। इप्टा के रहनुमाओं ने हमको यह सिखाया था कि कमजोर हैं वो जो गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं। आज यह जरूरी हो गया है कि हम इप्टा के कलाकार इस बात पर विचार करें कि क्या हम अपनी जिम्मेदारियों को सही तौर पर निभा रहें हैं? क्या हमारी दशा और दिशा सही है? क्यों और ताकतें उभर कर आ रही हैं? क्या हमारे हथियार नाटक और गीत उनके मुकाबले के लिए सही और धारदार हैं?
इसलिए मेरी सोच है कि हम 25 मई को जनसंस्कृति दिवस के तौर पर मनायें। यह जरूरी है कि हम अपने नाटकों और गीतों का जनता के सामने प्रदर्शन करें। मगर यही जरूरी है कि आपस विचार करें कि किस तरह से आज के माहौल को देखते हुए अपने ख्यालों को किस तरह से आवाम के सामने पेश करें। थियेटर एक समाज को बदलने का ताकतवर हथियार है। उसे किस तरह से काम में लायें इस पर विचार करना बहुत जरूरी है। यह जानना जरूरी है कि किस तरह से काॅरपोरेट जगत हावी होता जा रहा है। कैपिटलिज्म के स्वागत में बिगुल बज चुका हैं। किसानों की जो हालत हो गई है, उनकी जमीन छीनी जा रही हैं, हमें उनके हालत को समझना होगा, आवाम की रोजमर्रा की जिन्दगी क्योंकर खुशनुमा नहीं है इसको जानना होगा। ये सवालात हैं जिनके जवाब में हमें ‘क्यों’ में चाहिए। ऐसा क्यों हो रहा है? हम आईना तो हाथ में लिये ही हुए हैं मगर यह जानना बेहद जरूरी है कि तस्वीर किसकी और कैसे पेश करें। जब तक हम आवाम की मुश्किलों, उसकी परेशानियों को ना जानें यह करना मुमकिन नहीं। हम सब को आपस में चिंतन करना होगा। आज कल्चर/संस्कृति पर हमला हो रहा है। इतिहास को बदला जा रहा है, भला हम कैसे चुप रह सकते हैं? हमें अपनी आवाज उठानी होगी। कल्चर पाॅलिसी की बात करनी होगी। यह काम जरूरी है और इप्टा ही ऐसी संस्था है जो इस काम को कर सकती है। हमें अपनी जिम्मेदारी को समझना होगा।
15 अगस्त, 1947 को लाल किला की दीवार पर आजाद हिन्द का झण्डा फहराया गया। उसी दिन हमारे
जनसंस्कृति दिवस सन्देश जारी करते राष्ट्रीय अध्यक्ष रणबीर सिंह |
इसलिए मेरी सोच है कि हम 25 मई को जनसंस्कृति दिवस के तौर पर मनायें। यह जरूरी है कि हम अपने नाटकों और गीतों का जनता के सामने प्रदर्शन करें। मगर यही जरूरी है कि आपस विचार करें कि किस तरह से आज के माहौल को देखते हुए अपने ख्यालों को किस तरह से आवाम के सामने पेश करें। थियेटर एक समाज को बदलने का ताकतवर हथियार है। उसे किस तरह से काम में लायें इस पर विचार करना बहुत जरूरी है। यह जानना जरूरी है कि किस तरह से काॅरपोरेट जगत हावी होता जा रहा है। कैपिटलिज्म के स्वागत में बिगुल बज चुका हैं। किसानों की जो हालत हो गई है, उनकी जमीन छीनी जा रही हैं, हमें उनके हालत को समझना होगा, आवाम की रोजमर्रा की जिन्दगी क्योंकर खुशनुमा नहीं है इसको जानना होगा। ये सवालात हैं जिनके जवाब में हमें ‘क्यों’ में चाहिए। ऐसा क्यों हो रहा है? हम आईना तो हाथ में लिये ही हुए हैं मगर यह जानना बेहद जरूरी है कि तस्वीर किसकी और कैसे पेश करें। जब तक हम आवाम की मुश्किलों, उसकी परेशानियों को ना जानें यह करना मुमकिन नहीं। हम सब को आपस में चिंतन करना होगा। आज कल्चर/संस्कृति पर हमला हो रहा है। इतिहास को बदला जा रहा है, भला हम कैसे चुप रह सकते हैं? हमें अपनी आवाज उठानी होगी। कल्चर पाॅलिसी की बात करनी होगी। यह काम जरूरी है और इप्टा ही ऐसी संस्था है जो इस काम को कर सकती है। हमें अपनी जिम्मेदारी को समझना होगा।
शुतुरमुर्ग की तरह अपनी गर्दन जमीन में छुपा कर बैठना खतरनाक है। आज फिर उसी तरह से हमारी जुबान की आजादी पर खतरा है। 1876 का कानून किसी भी शक्ल में हो, उसे लागू करने की कोशिश की जा रही है। उसका मुकाबला करने के लिए हमें तैयार होना होगा।
इप्टा जब शुरू हुई तो वह एक मूवमेंट था। उस वक्त इप्टा अकेली थी। उसका रूप-रंग अपना निराला था। हमें रूप-रंग को उस अंदाजे-बयां को फिर से अपनाना होगा। यह बात हमें अच्छी तरह से समझना होगा की कि इप्टा एक मूवमेंट है, जो हमेशा हमेशा आवाम की जिन्दगी की बेहतरी के लिए सदियों तक चलती रहेगी। हमें अपना शौक पूरा नहीं करना। हमारा समाज के साथ कमिटमेंट है उसे ईमानदारी के साथ निभाना है। इप्टा एक मूवमेंट है और उसे मूवमेंट की तरह रखना होगा।
जनसंस्कृति जिन्दाबाद! इप्टा जिन्दाबाद!!
रणबीर सिंह
राष्ट्रीय अध्यक्ष, इप्टा
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