बिहार की पत्रकारिता में निवेदिता का नाम गंभीर पत्रकारिता करने वाले कुछेक पत्रकारों में लिया जाता है. कैफ़ी आज़मी इप्टा सांस्कृतिक केन्द्र के उद्घाटन के अवसर पर निवेदिता भी उपस्थित थीं. इप्टानामा के लिये निवेदिता ने यह विशेष रपट तैयार की है.
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इप्टा सिर्फ रंगमंच नहीं है विचार है
एक लंबे समय के बाद आखिरकार कलाकारों के पास एक ऐसी जगह हुई जहां वे अपनी कला का विस्तार कर
सकते हैं। कैफी आज़मी इप्टा सांस्कृतिक केन्द्र का बनना संस्कृति के सामुहिक चेतना का विस्तार है। आज के काले दौर में इसकी जरुरत इसलिए भी है कि कलाकार सृजन कर सके। कैफी आजमी को इस बात का गिला हमेशा रहता था कि इप्टा के पास अपनी कोई जगह नहीं है। यह त्रासदी है कि आजादी के पहले जिस सांस्कृतिक संगठन ने जन्म लिया और देश में सांस्कृतिक आंदोलन को दिशा दी आज उस संगठन के पास अपनी कोई जगह नहीं है। पटना का ये कैफी आजमी सांस्कृतिक केन्द्र वाहिद जगह है जो इप्टा की है। जो संघर्ष, गुलामी और उससे मुक्ति का सर्जक ही नहीं बल्कि वह उस संस्कृति का वाहक है जहां वे यह कहते हैं ‘इप्टा की असली नायक जनता है’।
मशहूर अभिनेत्री शबाना आजमी का यहां आना इप्टा के सांस्कृतिक केन्द्र का उद्घाटन करना भी मायने रखता है। शबाना आजमी जब यह कहती हैं कि ऐसी जगह की अहमियत इसलिए भी है हम सामाजिक बदलाव के लिए इसका इस्तेमाल कर सकें। हम दुनिया को अपनी तारीख के बारे में बता सकें। हम बताएं की हमारी जड़ें कहां है! हम प्रकृति हैं, अतीत हैं, हम परंपरा हैं।
आवाम से रू-ब-रू शबाना आज़मी |
मशहूर अभिनेत्री शबाना आजमी का यहां आना इप्टा के सांस्कृतिक केन्द्र का उद्घाटन करना भी मायने रखता है। शबाना आजमी जब यह कहती हैं कि ऐसी जगह की अहमियत इसलिए भी है हम सामाजिक बदलाव के लिए इसका इस्तेमाल कर सकें। हम दुनिया को अपनी तारीख के बारे में बता सकें। हम बताएं की हमारी जड़ें कहां है! हम प्रकृति हैं, अतीत हैं, हम परंपरा हैं।
यह मौका था जब एक अभिनेत्री के साथ लोग रु-ब-रु थे। जहां बॉलीबुड के स्टारडम से अलग शबाना आजमी यह बता रही थीं की कोई भी कला एकांत में नहीं पनपती। एक महान कला को लोगों से जुड़ना ही होगा। अगर मैं किसी लक्ष्मी का किरेदार कर रही हूं तो मुझे जानना होगा कि लक्ष्मी किस तरह जीती है? इप्टा ने यही सिखाया। कला जीवन के लिए।
मैं छुटपन से ही इप्टा से जुड़ी थी। सिनेमा में आने के बाद भी मैंने रंगमंच को जीवन से अलग नहीं किया। इप्टा में शामिल होने के लिए काफी मेहनत की। उन दिनों एम. एस. सथ्यू इप्टा में थे। हम उनके साथ नाटक में जुड़ना चाहते थे। जब हमने कहा कि मुझे इप्टा में शामिल कर लें तो उन्होंने कहा तुम फिल्म करती हो। क्या भरोसा कि तुम्हें किसी नाटक में लें और किसी फिल्म का ऑफर मिले तो तुम भाग जाओ। उन्होंने कहा अगर तुम लगातार 6 बजे आओ तो हम 15वें दिन विचार कर सकते हैं। मैं लगातार 15 दिनों तक 6 बजे इप्टा ऑफिस जाती रही , फिर मुझे मौका मिला इप्टा सदस्य बनने का।
शबाना आजमी ने बताया इप्टा उनकी जिन्दगी में क्या मायने रखता है। उन्होंने कहा कि इप्टा सिर्फ रंगमंच नहीं है विचार है। ऐसा विचार जो कला के माघ्यम से दुनिया को बदलना चाहती है। इसलिए यह जरुरी है कि दुनिया की महान कलाओं के साथ खड़े रहने के लिए हम जानें दुनिया में क्या कुछ बदल रहा है। मैंने अब्बा से एक बात जाना- वे कहा करते थे तुम जो काम कर रही हो उसपर यकीन होना चाहिए। यह जरुरी नहीं है कि तुम्हारे जीवन में ही बदलाव दिखे। पर यह यकीन करना की जो काम कर रही हो उससे दुनिया के हालात जरुर बदलेंगे। शायद यही वजह थी कि अब्बा अपने अंतिम दिनों में अपने गांव चले गए। जबकि फालिज के असर के कारण वे चल नहीं पाते थे। शबाना कैफी को याद कर रही थीं और अतीत जैसे हमसब के सामने साबूत खड़ा था। जैसे कैफी कह रहे हों उठ मेरी जान.........
सच तो यह है जब अछूत, शोषणग्रस्त जाति कला रचती है तो उसमें सच्ची आग, क्रांति और तड़प होती है,इसकी जिंदा मिसाल इप्टा का वह दौर है जब कला अपने चरम पर थी। इप्टा संभ्रांतों के संवेदना से अलग अपनी करुणा, विद्रोह और विचार से कला को आंदोलित कर रहा था। आज फिर से कला को उस उंचाई पर ले जाने की जरुरत है । कला एक निरंतर खोज है। खोज के खतरे हैं,पर इन खतरों के साथ ही कला आगे बढ़ती है।
- निवेदिता
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