25 मई 2015 को इप्टा के स्थापना दिवस पर होटल आशीर्वाद में नाटकों के मंचन एवं संगोष्ठी का आयोजन किया गया था। सर्वप्रथम इप्टा रायगढ़ के अध्यक्ष विनोद बोहिदार ने 25 मई 1943 को इप्टा की स्थापना के पूर्व बंगाल के अकाल के दौरान अकालग्रस्तों की सहायता के लिए स्थापित किये गये सेन्ट्रल कल्चरल स्क्वाड की भूमिका पर प्रकाश डाला एवं इप्टा के संस्थापकों की जानकारी प्रदान की।
तत्पश्चात् इप्टा रायगढ़ के बाल एवं युवा कलाकारों द्वारा दो नाटकों का मंचन किया गया। पहला नाटक था ‘‘पानी की कहानी नारद की जुबानी’’। अपर्णा के निर्देशन में मंचित इस नाटक में इंद्र और नारद द्वारा पृथ्वीतल के लोगों के हालचाल जानने की जिज्ञासा के दौरान भारत में पेयजल की कमी, प्रदूषण और असमय वर्षा से उत्पन्न होने वाली किसानों की समस्या पर प्रकाश डाला गया। बच्चों के सहज अभिनय औरआत्मविश्वास से लबरेज संवाद अदायगी ने दर्शकों का मन मोह लिया।
दूसरा नाटक था ‘‘टुम्पा’। कहानी का रंगमंच की शैली में प्रस्तुत हीरा मानिकपुरी के निर्देशन में तैयार इस नाटक में एक छोटी सी रोचक कथा के माध्यम से अमेरिकी गॉडफादर की भूमिका का रूपक रचा गया है। एक छात्रा अपने प्राध्यापक से प्रेम विवाह करना चाहती है। वह अपने इकतरफा प्रेम को विवाह की परिणति तक पहुँचाने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति की मदद लेती है, जिसके लिए उसके प्राध्यापक ने यूँ ही सुझा दिया था। अमेरिकी हस्तक्षेप से उनका विवाह होता है और बाद में उनके मतभेदों को सुलझाकर शांति बनाए रखने के लिए उन्हें दो रिवॉल्वर अमेरिका द्वारा प्रदान किये जाते हैं। नुपूर अग्रवाल और अजेश शुक्ला द्वारा प्रस्तुत बीस मिनट के नाटक में स्थानीय से वैश्विक प्रभाव का नजारा प्रस्तुत किया गया, जिसे दर्शकों की भरपूर सराहना मिली। नुपूर और अजेश ने टुम्पा और प्रोफेसर के किरदारों के अलावा अन्य किरदारों को भी अपने सशक्त
अभिनय से साकार किया।
‘‘सामाजिक बदलाव में रंगमंच की भूमिका’’ विषय पर संगोष्ठी आरम्भ हुई। विषय प्रवर्तन करते हुए इप्टा के संरक्षक मुमताज भारती ने सिनेमा की अपेक्षा नाटक में सामाजिक बदलाव की अधिक सम्भावना पर बल दिया। वरिष्ठ रंगकर्मी शाहबाज रिजवी ने नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से गुणवत्ता बनाए रखकर किसतरह सामाजिक बदलाव हो सकता है, इसकी चर्चा की। युवराज सिंह ने कलाकारों एवं दर्शकों - दोनों के स्तर पर समझ विकसित होने की बात कही। डॉ. बेठियार सिंह साहू ने दर्शक के मन पर गहरे तक पड़ने वाले
नाट्य मंचन के तुरंत बाद उपस्थित दर्शकों के बीच नाटक के प्रभाव को रेखांकित करते हुए प्रभावशाली सार्थक कार्य करने की आवश्यकता पर जोर दिया। अजय आठले ने लोकनाटकों को दुधारी तलवार बताते हुए उनके द्वारा सामाजिक बदलाव को रोकने के खतरे से आगाह किया। दिल्ली से आए युवा सिनेकर्मी अंकुर वर्मा ने इसतरह की सामूहिक चर्चा को ही बहुत सार्थक बताया। रानावि दिल्ली के स्नातक निर्देशक एवं अभिनेता
हीरा मानिकपुरी ने बदलते समय के परिप्रेक्ष्य में रंगमंच की समस्याओं का समाधान नए नजरिये से करने की अपील की। इप्टा की स्थायी दर्शक एवं बाल कलाकार आद्या की माँ सरिता गुप्ता ने नाटक के माध्यम से बच्चों में जागरूकता आने की बात कही। इन वक्ताओं के अलावा रंगकर्मी विवेक तिवारी, प्रतापसिंह खोडियार, डॉ. सुशील गुप्ता, फिल्म एण्ड टेलिविजन संस्थान पुणे के स्नातक करमा, हीर गंजवाला, अभिषेक, अनादि आठले एवं इप्टा के सभी कलाकारों एवं दर्शकों की भागीदारी महत्वपूर्ण रही।
पूरे कार्यक्रम का सफल संचालन किया विनोद बोहिदार ने।
तत्पश्चात् इप्टा रायगढ़ के बाल एवं युवा कलाकारों द्वारा दो नाटकों का मंचन किया गया। पहला नाटक था ‘‘पानी की कहानी नारद की जुबानी’’। अपर्णा के निर्देशन में मंचित इस नाटक में इंद्र और नारद द्वारा पृथ्वीतल के लोगों के हालचाल जानने की जिज्ञासा के दौरान भारत में पेयजल की कमी, प्रदूषण और असमय वर्षा से उत्पन्न होने वाली किसानों की समस्या पर प्रकाश डाला गया। बच्चों के सहज अभिनय औरआत्मविश्वास से लबरेज संवाद अदायगी ने दर्शकों का मन मोह लिया।
दूसरा नाटक था ‘‘टुम्पा’। कहानी का रंगमंच की शैली में प्रस्तुत हीरा मानिकपुरी के निर्देशन में तैयार इस नाटक में एक छोटी सी रोचक कथा के माध्यम से अमेरिकी गॉडफादर की भूमिका का रूपक रचा गया है। एक छात्रा अपने प्राध्यापक से प्रेम विवाह करना चाहती है। वह अपने इकतरफा प्रेम को विवाह की परिणति तक पहुँचाने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति की मदद लेती है, जिसके लिए उसके प्राध्यापक ने यूँ ही सुझा दिया था। अमेरिकी हस्तक्षेप से उनका विवाह होता है और बाद में उनके मतभेदों को सुलझाकर शांति बनाए रखने के लिए उन्हें दो रिवॉल्वर अमेरिका द्वारा प्रदान किये जाते हैं। नुपूर अग्रवाल और अजेश शुक्ला द्वारा प्रस्तुत बीस मिनट के नाटक में स्थानीय से वैश्विक प्रभाव का नजारा प्रस्तुत किया गया, जिसे दर्शकों की भरपूर सराहना मिली। नुपूर और अजेश ने टुम्पा और प्रोफेसर के किरदारों के अलावा अन्य किरदारों को भी अपने सशक्त
अभिनय से साकार किया।
‘‘सामाजिक बदलाव में रंगमंच की भूमिका’’ विषय पर संगोष्ठी आरम्भ हुई। विषय प्रवर्तन करते हुए इप्टा के संरक्षक मुमताज भारती ने सिनेमा की अपेक्षा नाटक में सामाजिक बदलाव की अधिक सम्भावना पर बल दिया। वरिष्ठ रंगकर्मी शाहबाज रिजवी ने नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से गुणवत्ता बनाए रखकर किसतरह सामाजिक बदलाव हो सकता है, इसकी चर्चा की। युवराज सिंह ने कलाकारों एवं दर्शकों - दोनों के स्तर पर समझ विकसित होने की बात कही। डॉ. बेठियार सिंह साहू ने दर्शक के मन पर गहरे तक पड़ने वाले
नाट्य मंचन के तुरंत बाद उपस्थित दर्शकों के बीच नाटक के प्रभाव को रेखांकित करते हुए प्रभावशाली सार्थक कार्य करने की आवश्यकता पर जोर दिया। अजय आठले ने लोकनाटकों को दुधारी तलवार बताते हुए उनके द्वारा सामाजिक बदलाव को रोकने के खतरे से आगाह किया। दिल्ली से आए युवा सिनेकर्मी अंकुर वर्मा ने इसतरह की सामूहिक चर्चा को ही बहुत सार्थक बताया। रानावि दिल्ली के स्नातक निर्देशक एवं अभिनेता
हीरा मानिकपुरी ने बदलते समय के परिप्रेक्ष्य में रंगमंच की समस्याओं का समाधान नए नजरिये से करने की अपील की। इप्टा की स्थायी दर्शक एवं बाल कलाकार आद्या की माँ सरिता गुप्ता ने नाटक के माध्यम से बच्चों में जागरूकता आने की बात कही। इन वक्ताओं के अलावा रंगकर्मी विवेक तिवारी, प्रतापसिंह खोडियार, डॉ. सुशील गुप्ता, फिल्म एण्ड टेलिविजन संस्थान पुणे के स्नातक करमा, हीर गंजवाला, अभिषेक, अनादि आठले एवं इप्टा के सभी कलाकारों एवं दर्शकों की भागीदारी महत्वपूर्ण रही।
पूरे कार्यक्रम का सफल संचालन किया विनोद बोहिदार ने।
No comments:
Post a Comment