-योग मिश्रा
नाचा ने कला जगत को विश्वस्तरीय कलाकार भी दिए हैं । उनकी अभिनय क्षमता किसी भी सर्वश्रेष्ठ कलाकार से जरा भी कम नही आँकी जा सकती, लेकिन नाचा के न जाने कितने कलाकार उच्चकोटि की कला क्षमता रखते हुए भी व्यापक रूप में नही जाने जाते और गुमनाम रह जाते हैं या अपने क्षेत्र तक ही जाने जाते हैं । लोकप्रियता और कीर्ति के नागर प्रतिमानों से वे परखे नही जा सकते । उनकी गुमनाम रचनाशीलता इतिहास के अँधेरे में गुम जाने के लिए अभिशप्त है । सदियों से ऐसे अनगिनत कलाकार हमारे समाज में जन्म लेते रहे हैं पर हम उन्हें नही जानते जिन्होंने अपना सर्वस्व कला और संस्कृति की सेवा में होम कर दिया । हमारे संस्कृति बोध को जिन्होंने परिष्कृत किया है, हमें परम्पराएँ दी । सच कहा जाए तो हमारी परम्परा हमारे पुरखों का दान है और हमारी लोक कलाएँ और लोक परम्पराएँ ऐसे ही अज्ञात पुरखों की देन है । नाचा के अनगढ़ स्वरूप को रूप देने वाले और छत्तीसगढ़ी नाचा के खड़े-साज परम्परा के जनक स्व. मंदराजी दाऊजी की आज जयंती है । इस अवसर पर उनके गृहग्राम रवेली में उनके साथी कलाकार हर साल जुटते हैं और अपने कार्यक्रम प्रस्तुत कर दाऊजी का पुण्य स्मरण करते है ।
दाऊजी अपने नाचा कार्यक्रम में तत्कालीन समाजिक बुराइयों को गम्मत के माध्यम से मनोरंजक तरीके से समाज के सामने उजागर करते थे । उनके गम्मत में प्रमुख हैं -"मेहतरीन" जो छूआछूत पर था जिसे बाद में हबीब साहब ने "पोंगा पंडित" के नाम से किया, जिस पर काफी विवाद भी मचा था । "बुढ़वा विवाह" नकल में में वृद्ध और बालिका विवाह रोकने का संदेश था । बाद में हबीब साहब ने "बुढ़वा बिहाव" और "देवारिन" नकल को मिलाकर "मोर नाम दमाद गांव के नाम ससुराल" नाटक बनाया । "ईरानी" गम्मत में हिन्दू-मुस्लिम एकता का संदेश होता था । "मरारिन" गम्मत में देवर-भाभी के पवित्र रिश्ते को समाज के सामने माँ-बेटे के रूप में रखा ।
दाऊजी ने १९४२ के स्वतंत्रता आन्दोलन के समर्थन में भी कुछ राष्ट्र भक्ति के गीतों को अपने कार्यक्रमों में शामिल किया था । उनकी नाचा पार्टी में तत्कालीन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के आंदोलन का प्रभाव भी था । इसलिए कई स्थानों पर इनके नाचा प्रदर्शन पर प्रतिबंध भी लगाया गया था । मँदराजी दाऊ ने खड़े-साज की नाचा परम्परा को बैठक-साज में तब्दील कर, हारमोनियम और चिकारा को नाचा में शामिल कर नाचा के संगीत पक्ष को सबल किया और नाचा को समय-समय पर परिष्कृत कर एक नई ऊंचाई पर ला खड़ा किया । नाचा में उनके प्रयोगों को व्यापक लोक-प्रसिध्दि मिली ।
उनके साथी बताते थे कि उनकी पार्टी का नाचा देखने आस पास के गांव के गांव उमड़ पड़ते थे ऐसे में चोरों की बन आती थी । एक बार दाऊजी को भी चोरों से सांठगांठ के संदेह में पकड़ा गया फिर असलियत सामने आने पर छोड़ भी दिया गया । दाऊजी के नाचा पार्टी के कार्यक्रमों की पूर्व सूचना पुलिस को देनी पड़ती थी और गांवों में पुलिस गस्त लगाई जाती थी ताकि सूने गांव का फायदा चोर न उठा सकें । नाचा के विकास पुरूष मंदराजी दाऊ ने अपनी सारी धन-संपत्ति नाचा के जुनून के भेंट कर दी । अपना सबकुछ खोकर उन्हें लोक कला कि यह सिध्दि मिली । धन ने साथ छोड़ा तो साथी संगी भी साथ छोड़ गए । उनकी रवेली पार्टी इतिहास के गर्त में खो गई । वे मान सम्मान से वंचित होते चले गए । फिर भी अपने अंतिम दिनों तक वे असंगठित नाचा पार्टियों में संगत शिरकत करते ही रहे । आज उनके बाद अब गाँव में उनका परिवार बड़ी तंगहाली में गुजर कर रहा है ।
यहाँ कोई संस्कृति विभाग, सचमुच में कहीं बना भी है क्या ? भला किसके लिए है यह संस्कृति विभाग ? कला के लिए ? कलाकार के लिए ? या कला के कोचियों के लिए ?
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