Monday, March 2, 2015

संस्कृति का बजट आैर बजट की संस्कृति : समाचार व टिप्पणी

ई दिल्ली, 28 फरवरी । वित्त वर्ष 2015-16 के लिए संस्कृति मंत्रालय के बजट में पिछले वर्ष की तुलना में मामूली बढ़त की गई है। वित्त मंत्री ने संस्कृति मंत्रालय का बजट आवंटन 0.46 फीसदी बढ़ाया है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने शनिवार को लोकसभा में बजट पेश करते हुए कहा कि 2015-2016 के लिए योजना व्यय आवंटन 2,169 करोड़ किया गया है, जबकि पिछले वर्ष यह 2,159 करोड़ था। 

इस बजट में हालांकि साहित्य अकादमी और नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) बुरी तरह प्रभावित हुए हैं, क्योंकि उनके बजट में क्रमश: 54 और 44 फीसदी की कटौती की गई है। साहित्या अकादमी का आवंटन 21.23 फीसदी से घटाकर 9.76 फीसदी कर दिया गया है और एनएसडी का आवंटन 43.03 फीसदी से घटाकर 13.45 फीसदी कर दिया गया है। कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय सहायता योजना के लिए आवंटित धन में बहुत बड़ी कटौती की गई है। पहले इसका बजट 59.33 फीसदी था जो कि घटाकर 3.20 फीसदी कर दिया गया है। 

भारतीय पुरात्तव सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) के लिए हालांकि 656.77 करोड़ रुपये की राशि निर्धारित की गई है, पिछले वर्ष यह राशि 607.30 करोड़ रुपये थी।अपने बजट भाषण में जेटली ने कहा कि भारत में यूनेस्को विश्व धरोहरों में सुविधाएं बढ़ाने की अत्यधिक आवश्यकता है और इसके लिए सरकार आठ स्थलों पर जीर्णोद्धार का काम शुरू करेगी।उन्होनें कहा, "सुरक्षा और शौचालय, प्रकाश व्यवस्था और धरोहर स्थल के आसपास के समुदाय के लिए लाभ की योजनाओं सहित भू-सौन्दर्यकरण, द्विभाषीय केंद्रों, पार्किं ग, निशक्तजनों और आगन्तुकों के लिए सुविधाओं जैसे कार्यो का जीर्णोद्धार किया जाएगा।"

अरुण जेटली ने हम्पी (कर्नाटक), कुम्भलगढ़ और राजस्थान के अन्य किले, रानी का वाव और पाटन (गुजरात), वाराणसी मंदिर शहर (उत्तर प्रदेश), जलियांवाला बाग (अमृतसर) और कुतुब शाही मकबरा (हैदराबाद) जैले स्थलों पर काम शुरू करने के लिए संसाधन उपलब्ध कराने का प्रस्ताव किया है।भारत में 32 वैश्विक धरोहर हैं, जिनमें से 25 सांस्कृतिक संपत्ति शामिल हैं और सात प्राकृतिक संपत्ति हैं।

(इंडो-एशियन न्यूज सर्विसद)




कला, कलाकार और संस्कृति विरोधी है यह बजट
यह बात केवल इसलिए नहीं कही जा रही है कि इस बजट में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के बजट में 44% और साहित्य अकादमी के बजट में 54% की कटौती की गई है बल्कि यह बात इसलिए कह रहा हूँ कि“अच्छे दिन" का वादा करके सत्ता में आई वर्तमान सरकार ने कला और संस्कृति को बढ़ावा देनेवाली बजट में क्रूरता पूर्ण कटौती करते हुए 59.33 करोड़ से घटाकर 3.20 करोड़ कर दिया है । मैं इस बात से भी भली-भांति परिचित हूँ कि कला और संस्कृति के नाम पर दिए जा रहे आर्थिक सहयोगों में घनघोर अराजकता है । यह अराजकता कलाकारों के नैतिक पतन की निशानी तो है लेकिन इससे ज़्यादा सरकारी महकमे की नाकामी भी है । जिसका उपाय उस अराजकता को ज़िम्मेदारी पूर्वक खत्म करके भी किया जा सकता था ।

समाज या सरकार का कोई अंग यदि बीमार हो जाता है तो उसका इलाज किया जाना चाहिए न कि उसकी निर्मम हत्या । इतिहास गवाह है कि बिना किसी आश्रय (जनता, सरकार व कारपोरेट आदि) के कला और कलाकार ज़्यादा समय तक ज़िंदा नहीं रह सकते । जो सरकार कला और संस्कृति के प्रति इतना निर्मम हो वह समाज के प्रति संवेदनशील होगी, इस बात पर मुझे संदेह है । सनद रहे, इस विषय पर कला संस्थानों और कलाकारों की यह शर्मनाक चुप्पी एक दिन कला और कलाकार दोनों के पतन का कारण बनेगीं । याद रखिए वो यह सब सोच समझकर, एक मुहीम के तहत कर रहें हैं, मासूमियत और अनजाने में नहीं।
-पुंजप्रकाश


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