Thursday, March 19, 2015

विश्व रंगमंच दिवस संदेश – 2015 : क्रिस्तोव वार्लिकोव्सकी

रंगमनीषी अधिकतर मंच से दूर देखे जा सकते हैं जो रंगमंच को विचारों या परिपाटियों की प्रतिकृति और सामान्योक्तियों की पुनरावृत्ति करने वाले उपकरण या मशीन के रूप नहीं देखते | वह ऐसे स्पंदनों और जीवित प्रवाहों की तलाश में रहते हैं जो प्रेक्षागृहों और ऐसे जमावड़ों को पीछे छोड़ दें जहाँ किसी न किसी लोक की नक़ल होती रहती है | हम अनुकरण में लगे रहते हैं, बजाय एक ऐसी दुनिया और माहौल रचने के जो दर्शकों के साथ गहरे और सार्थक विचार-विमर्श, विश्वास और भावनाओं की गहराई पर टिका हो | सच तो यह है कि गूढ़ मनोभावों की अभिव्यक्ति के लिए रंगमंच से बेहतर कोई माध्यम नहीं है |

अक्सर मैं मार्गदर्शन के लिए किताबें पढता हूँ | मैं दिन-रात उन लेखकों के बारे में सोचता रहता हूँ जिन्होंने लगभग सौ बरस पहले दबे स्वरों में यूरोपीय प्रभुता के पतन की भविष्यवाणी की थी – उस धुंधलके की जिसने हमारी सभ्यता को ऐसे अन्धकार में धकेल दिया जहाँ आज भी उजाले का इंतज़ार है | मैं फ्रैन्ज़ काफ्का, टॉमस मैन और जॉन मैक्सवेल कोएतज़ी को भी उन्हीं भविष्यवक्ताओं की सूची में रखना चाहूंगा |

दुनिया के अवश्यम्भावी ख़ात्मे के प्रति उनकी समान चेतना वर्तमान मानवीय मूल्यों , सामाजिक संबंधों और व्यवस्था के रूप में आज पूरे तीखेपन के साथ हमारे सामने है | हम सब जो दुनिया के अंत के बाद भी जीवित हैं नित नए ऐसे अपराधों, षड्यंत्रों, द्वंदों और संघर्षों का सामना कर रहे हैं जो सर्वव्यापी मीडिया की गति को भी पीछे छोड़ देते हैं | और ऐसी घटनाएं बहुत जल्दी ही बासी होकर स्मृतियों से लोप हो जाती हैं | हम असहाय, भयभीत और फंसा हुआ महसूस करने के साथ ऐसे केन्द्रों और स्थलों का निर्माण भी नहीं कर पा रहे हैं जो हमें सुरक्षा दें – बल्कि इसके विपरीत ये सब हमसे अपनी सुरक्षा की गुहार कर रहे हैं – इन्हें बचाने में हमारी जीवन उर्जा का एक बड़ा अंश खपता जा रहा है | अब हममें दीवारों के उस तरफ देखने की ताक़त नहीं रही | इसी साहस को फिर से एकजुट करने के लिए रंगमंच का जिंदा रहना निहायत ज़रूरी है – जहाँ पर खड़े होकर हम निषिद्ध स्थानों और वहां हो रहे षडयंत्रों को साफ़-साफ़ देख समझ सकें |

प्रोमिथियस अनुश्रुति के रूपांतरण के बारे में काफ्का ने कहा कि “ यह कथा ऐसे सन्दर्भ को स्पष्ट करती हैं जिसकी व्याख्या की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह सत्य पर टिकी है – इसका व्याख्या या वर्णन से परे रहना ही उचित है | “ मैं बहुत गहराई से महसूस करता हूँ कि रंगमंच की व्याख्या भी इन्हीं शब्दों में होनी चाहिए |
ऐसे ही रंगमंच की आवश्यकता है जिसकी जड़ें सच्चाई में निहित हों , जिसके लक्ष्य को बयान करने की ज़रुरत न पड़े – रंगकर्मी मंच पर हों, मंच परे हों या दर्शकों में – सभी के लिए मेरी यही भावना है यही कामना है|

हिंदी अनुवाद – अखिलेश दीक्षित

क्रिस्तोव वार्लिकोव्सकी – परिचय

26 मई 1962 को स्टाचिन, पोलैंड में जन्मे क्रिस्तोव वार्लिकोव्सकी पोलैंड के नोवी थियेटर के  निर्देशक हैं | विलेज वायस साप्ताहिक अखबार द्वारा ऑफ़ ब्रोडवे थियेटर में उत्कृष्ट निर्देशन के लिए प्रदान किये जाने वाले ओबी पुरस्कार - 2008 के अतिरिक्त मेयर होल्ड, गोल्डन मास्क, कोनराड स्विनार्सकी और ऐसे ही कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित | 


भारत 
में 
भारतीय जन नाट्य संघ 
द्वारा 
प्रसारित।

विस्तृत जानकारी के लिए इस लिंक पर जायें :
http://en.wikipedia.org/wiki/Krzysztof_Warlikowski

1 comment:

  1. नया लिखने के लिये पढ़ना और एक बेहतर निरीक्षक होना आवश्यक है ...विशेषकर थियेटर और सिनेमा में लेखन के लिये । सच कहूँ तो थियेटर का अच्छा लेखक और अच्छा रंगकर्मी होने के लिये थोड़ा सा आवारा होना अच्छा है ।

    ReplyDelete