Saturday, November 24, 2012

इप्टा रायगढ़ का 19 वां राष्ट्रीय नाट्य समारोह 26 नवंबर से


रायगढ़। इप्टा रायगढ़ के 19 वें राष्ट्रीय नाट्य समारोह का शुभारंभ दिनांक 26 नवंबर 2012 से होने जा रहा है। इस बार के आयोजन में प्रसिद्ध रंगकर्मी, अभिनेता व इप्टा की राष्ट्रीय कार्य-समिति के सदस्य श्री जुगलकिशोर को चतुर्थ शरदचन्द्र वैरागकर स्मृति रंगकर्मी सम्मान से सम्मानित किया जायेगा। साथ ही इप्टा रायगढ़ द्वारा प्रकाशित रंग-विमर्श की पत्रिका ‘रंगकर्म’ का विमोचन भी किया जायेगा। ‘रंगकर्म’ का यह अंक रंगकर्मियों के व्यक्तित्व व इस क्षेत्र में उनके योगदान पर केंद्रित किया गया है।

आयोजन के प्रथम दिन 26 नवंबर को लखनऊ इप्टा के नाटक ‘ब्रह्म का स्वांग’ का मंचन किया जायेगा जो जुगलकिशोर द्वारा ही निर्देशित है। दूसरे दिन 27 नवंबर को ‘ओजस’ पुणे द्वारा नाटक ‘ले मशाले’ का मंचन किया जायेगा। इसी तरह दिनांक 28 नवंबर को फ्लेम स्कूल, पुणे द्वारा नाटक ‘लड़ी नज़रिया’, 29 नवंबर को हम थियेटर ग्रुप, भोपाल द्वारा ‘लला हरदौल’ व 30 नवंबर को निर्माण कला मंच पटना द्वारा नाटक ‘कंपनी उस्ताद’ का मंचन किया जायेगा। सभी नाटक स्थानीय नटवर स्कूल प्रांगण में शाम सात बजे से खेले जायेंगे व नाटक से पूर्व लघु फिल्मों का प्रदर्शन किया जायेगा।


चतुर्थ शरदचन्द्र वैरागकर स्मृति रंगकर्मी सम्मान से सम्मानित होने वाले जुगलकिशोर: एक परिच

इप्टा रायगढ़ द्वारा आयोजित उन्नीसवें राष्ट्रीय नाट्य समारोह के अवसर पर दि. 26 नवम्बर 2012 को सुबह दस बजे होटल साँईश्रद्धा के सभागार में लखनऊ के प्रसिद्ध रंगकर्मी एवं फिल्म अभिनेता, इप्टा की राष्ट्रीय समिति के सदस्य, पीपुल्स थियेटर अकादमी, आजमगढ़ के सदस्य तथा भारतेन्दु नाट्य अकादमी, लखनऊ के पूर्व निदेशक श्री जुगल किशोर को चतुर्थ शरदचन्द्र वैरागकर स्मृति रंगकर्मी सम्मान प्रदान किया जाने वाला है। श्री जुगल किशोर का जन्म  21 जनवरी 1954 को हुआ। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक तथा भारतेन्दु नाट्य अकादमी से नाट्यकला में डिप्लोमा प्राप्त किया। लगभग तीस वर्षों से आप रंगमंच के क्षेत्र में अभिनय, निर्देशन, लेखन एवं अध्यापन कर रहे हैं। जुगल किशोर ने विलुप्तप्राय लोकनाट्यों - भांड तथा बुंदेलखंड के तालबद्ध मार्शल आर्ट ‘पई दंडा’ को प्रेक्षागृही रंगमंच पर पहचान प्रदान की। उन्होंने निर्देशक के रूप में नौटंकी शैली में प्रयोग किये तथा समसामयिक दृष्टि से अनेक राजनैतिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक विषयवस्तुओं पर केन्द्रित लगभग 30 नाटकों का निर्देशन किया। जिनमें प्रमुख हैं - एक आतंकवादी की मौत, ताशों का देश, कालिगुला, अंधेर नगरी, खोजा नसीरूद्दीन, मटिया बुर्ज, तिकड़मबाज, अलीबाबा, आला अफसर, माखन चोर, होली, रात तथा अंधारयात्रा। भारतेन्दु नाट्य अकादमी के रंगमंडल के कलाकारों और पारम्परिक नौटंकी कलाकारों के साथ ‘सत्यवक्ता हरिश्चन्द्र’ का प्रयोगशील मंचन कर उन्होंने एक मिसाल पेश की तथा भारतेन्दु नाट्य अकादमी के रंगमंडल प्रमुख के रूप में हिंदी कहानीकार अमरकांत की प्रसिद्ध कहानी ‘हल होना एक कठिन समस्या का’ पर आधारित नाटक ‘दाखला डॉट कॉम’ का निर्देशन भी किया। प्रेमचंद की कहानी पर आधारित प्रसिद्ध नाटक ‘ब्रम्ह का स्वांग’ के पूरे देश भर में 500 से अधिक मंचन किया, जिसकी प्रस्तुति उनको सम्मान प्रदान करने के साथ 26 नवम्बर की शाम सात बजे उन्नीसवे राष्ट्रीय नाट्य समारोह के उद्घाटन अवसर पर की जाएगी। जुगलकिशोर ने लगभग 30 नाटकों में उल्लेखनीय अभिनय किया है, जिन्हें समीक्षकों द्वारा बार-बार सराहना प्राप्त हुई है, इनमें प्रमुख हैं - अंधेर नगरी, अंधा युग, उरूभंगम, जूलियस सीज़र, गुफावासी, आधे अधूरे, गार्बो, राज़, ट्रोजन वूमन, वासांसि जीर्णानि, एंटीगनी तथा बाल्कन्स वूमेन आदि। हिंदी, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषा पर समान अधिकार प्राप्त जुगल किशोर ने दूरदर्शन की लगभग एक दर्ज़न प्रस्तुतियों में अभिनय किया है।

निर्देशन एवं अभिनय के अलावा जुगलकिशोर ने अनेक पत्र-पत्रिकाओं और आकाशवाणी के लिए भारतीय और लोक रंगमंच पर लेखन भी किया है। साथ ही भारतेन्दु नाट्य अकादमी, महिला समाख्या और रामानन्द सरस्वती पुस्तकालय के लिए अनेक कार्यशालाओं का संचालन भी किया है। वे सन् 1986 से 2012 तक भारतेन्दु नाट्य अकादमी, संस्कृति विभाग, उत्तर प्रदेश शासन में अभिनय का अध्यापन कर रहे थे। रंगमंच के अलावा पर्दे पर भी आपने एक पहचान कायम की है। उन्होंने एक दर्जन से ज़्यादा हिंदी और भोजपुरी फीचर फिल्मों व टेलिफिल्मों में अभिनय किया है, जिनमें पीपली लाइव, बब्बर, कॉफी हाउस, माई, मेरी पत्नी और वो, कफन, हमका अइसन वइसन ना समझा आदि उल्लेखनीय हैं। अभी-अभी उनकी दो बहुचर्चित फिल्में आ रही हैं - दबंग दो और अता पता लापता। 1993 में उन्होंने सर्वोच्च राष्ट्रीय पुरस्कार गोल्डन लोटस से सम्मानित जी.वी.अय्यर की संस्कृत फिल्म ‘श्रीमद् भगवद् गीता’ के हिंदी संस्करण में भी सहयोग किया है।

इप्टा रायगढ़ द्वारा प्रदत्त इस सम्मान के लिए रंगकर्मी-चयन के लिए एक पाँच सदस्यीय समिति तीन साल के लिए मनोनीत की गई थी, जिसके सदस्य थे - श्री हृषिकेश सुलभ, पटना, श्री सत्यदेव त्रिपाठी, मुम्बई, श्री राकेश, लखनऊ, श्री अजय आठले एवं श्री विनोद बोहिदार, रायगढ़। इस चयन समिति के द्वारा श्री जुगल किशोर का चयन चतुर्थ शरदचन्द्र वैरागकर स्मृति रंगकर्मी सम्मान के लिए किया गया है।

स्व. शरदचन्द्र वैरागकर इप्टा रायगढ़ के प्रशंसक रहे हैं। आपका जन्म 1 अगस्त 1928 को महाराष्ट्र के बुलढाणा में हुआ था। वे एसबीआर महाविद्यालय, बिलासपुर में गणित के प्राध्यापक रहे हैं। उनकी मराठी रंगमंच के प्रति गहरी रूचि थी। उन्होंने बिलासपुर में अनेक मराठी नाटकों का निर्देशन किया था, जिनमें प्रमुख हैं - रायगडाला जेव्हा जाग येते, घरात फुलला पारिजात, अश्रुंची झाली फुले,  प्रेमा तुझा रंग कसा, दोन ध्रुवांवर दोघे आपण, मंतरलेली चैत्रवेल आदि। आपकी स्मृति में इप्टा रायगढ़ ने प्रतिवर्ष किसी भी समर्पित रंगकर्मी को रू. 21000 तथा सम्मान पत्र से सम्मानित करने का निर्णय लिया है। पिछले वर्षों में यह सम्मान श्री राजकमल नायक, रायपुर, श्री संजय उपाध्याय, पटना तथा श्री अरूण पाण्डे, जबलपुर को प्रदान किया जा चुका है।

इप्टा रायगढ़ के राष्ट्रीय नाट्योत्सव की अनवरत उन्नीस कड़ियाँ
इप्टा रायगढ़ अपनी रंगमंचीय गतिविधियों में विगत उन्नीस वर्षों से पाँच दिवसीय राष्ट्रीय नाट्य समारोहों का आयोजन कर रही है। सन् 1994 में आरम्भ हुआ यह सिलसिला आज तक बिना किसी व्यतिक्रम के निरंतर जारी है। इप्टा अपने स्तर पर तो विभिन्न भाषाओं, शैलियों के नाटक करती ही है, परंतु देश के विभिन्न भागों में किये जाने वाले रंगकर्म से अपने कलाकारों और रायगढ़ के दर्शकों को भी परिचित कराने के लिए प्रत्येक वर्ष कम से कम पाँच नाट्य दलों को देश के अलग-अलग प्रदेशों से आमंत्रित करती है। अब तक काठमांडू नेपाल, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, पटना, गया, बेगुसराय, औरंगाबाद, भोपाल, जबलपुर, उज्जैन, रायपुर, बिलासपुर, भिलाई, कोरबा, डोंगरगढ़, खैरागढ़ आदि स्थानों के अनेक नाट्य दल अपने नाटकों का प्रदर्शन कर चुके हैं।

1994 का वर्ष इप्टा का स्वर्णजयंती वर्ष था। इस वर्ष के प्रथम नाट्योत्सव में रंग अभिनय शाला, रायगढ़ का ‘उसकी जात’, प्रयास इप्टा बाल्कों का ‘रामलीला’, स्टेट बैंक नाट्य मंच रायपुर का ‘मारीच संवाद’, इप्टा रायपुर का ‘बंदिनी’ तथा अवंतिका रायपुर का ‘कोर्टमार्शल’ नाटक खेले गए। यह नाट्योत्सव पॉलिटेक्निक सभागृह में आयोजित हुआ था। 1995 में पाँच नाटक मंचित हुए थे। तृतीय नाट्योत्सव के साथ मध्यप्रदेश इप्टा का पाँचवाँ राज्य सम्मेलन भी सम्पन्न हुआ था, जिसमें इप्टा रायगढ़, बिलासपुर, इप्टा भिलाई, प्रयास इप्टा बाल्को तथा विवेचना जबलपुर के नाटकों का मंचन हुआ। चौथे नाट्योत्सव में भी पाँच नाटक मंचित हुए। पाँचवें नाट्योत्सव तक दर्शकों की संख्या के बढ़ जाने के कारण नाट्य प्रदर्शन का स्थान बदलकर टाउन हॉल प्रांगण करना पड़ा। इस प्रांगण में कनातों की सहायता से बंद प्रेक्षागृह बनाकर नाटक मंचित होने लगे, जो आज तक जारी है। बस, इस वर्ष टाउन हॉल प्रांगण भी छोटा हो जाने के कारण इसे नटवर स्कूल प्रांगण में स्थानांतरित किया गया है।

सन् 1999 के पाँचवें नाट्योत्सव से लेकर 2011 तक के अठारहवें नाट्योत्सव तक दिल्ली से एक्ट वन के ‘खुशअंजाम’, ‘आओ साथी सपना देखे’, ‘अनहद बाजा बाज्यो’ तथा ‘कश्मीर’ के मंचन हुए। जे.एन.यू.इप्टा दिल्ली के ‘मोहनदास’ और ‘बाकी इतिहास’; सिद्धा दिल्ली का नाटक ‘असि बहरी अलंग’; दानिश इकबाल नई दिल्ली का ‘डांसिंग विथ डैड’, संभव आर्ट ग्रुप दिल्ली का संक्रमण’ नाटक हुए। मुम्बई से अंक का ‘मैं बिहार से चुनाव लड़ रहा हूँ’, एनएसडी एलुमनीज़ मुम्बई का ‘एक अराजक का मौत’; कोलकाता से रंगकर्मी का ‘कोर्टमार्शल’, इफ्टा का ‘होरी खेला’ तथा ऑल्टरनेटिव लिविंग थियेटर का ‘विषादकाल’ मंचित हुए। सन् 2003 में इप्टा रायगढ़ का ऐतिहासिक नाट्य समारोह सम्पन्न हुआ जिसमें हबीब तनवीर के पाँच नाटक ‘चरनदास चोर’, ‘मोर नांव दमांद गांव के गांव ससुरार’, ‘वेणीसंहार’, ‘ज़हरीली हवा’ तथा ‘जिन लाहौर नहीं वेख्या’ देखने का सौभाग्य रायगढ़ के कलाकारों एवं दर्शकों को मिला। पटना से निर्माण कला मंच के ‘अंधों का हाथी’, ‘एक था चिड़ा’, ‘बिदेसिया’, ‘कहाँ गए मेरे उगना’, ‘हरसिंगार’; द फैक्ट बेगुसराय का ‘समझौता’, द रेनासाँ गया का  तथा इप्टा पटना का ‘मुझे कहाँ ले आए कोलम्बस’ का मंचन हुआ। इसीतरह लखनऊ इप्टा का ‘रात’ और ‘माखनचोर’ मंचित हुए थे। मराठवाड़ा लोकोत्सव औरंगाबाद का ‘पटकथा’ कविता के रंगमंच के रूप में पहली बार देखने को मिला था।

रंगविदूषक भोपाल के प्रसिद्ध निर्देशक बंसी कौल के ‘कहन कबीर’, ‘तुक्के पे तुक्का’, ‘बेढब थानेदार’, ‘समझौता’, ‘नाक’ नाटकों का मंचन हुआ। विवेचना जबलपुर के भोले भड्या’, ‘हानूश’, ‘ईसुरी’, ‘निठल्ले की डायरी’, ‘मैं नर्क से बोल रहा हूँ’; अभिनव रंगमंडल उज्जैन के नाटक ‘मालविकाग्निमित्र’, ‘रावण’, ‘मियाँ की जूती मियाँ के सर’ तथा ‘बड़ा नटकिया कौन’ का मंचन हुआ। छत्तीसगढ़ की रायपुर इप्टा, भिलाई इप्टा, बाल्को इप्टा, डोंगरगढ़ इप्टा तथा बिलासपुर इप्टा के अनेक नाटकों का मंचन हुआ। अन्य संस्थाओं में अग्रज नाट्य दल बिलासपुर, आर्टिस्ट कम्बाइन रायपुर, अवंतिका रायपुर, इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ के नाट्य विभाग के नाटकों के भी अनेक मंचन हुए।

सन् 2010 से इन नाट्योत्सवों में लघु फिल्मों के प्रदर्शन को भी जोड़ा गया है। प्रत्येक वर्ष कम से कम चार लघु फिल्मों का प्रदर्शन किया जा रहा है। इस वर्ष भी चार लघु फिल्में दिखाई जाएंगी। इस तरह इन अठारह वर्षों में पचास से ज़्यादा नाट्य संस्थाओं ने लगभग सौ नाटकों मंचन इप्टा रायगढ़ के नाट्योत्सवों में किया।



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