नयी दिल्ली के हिंदी भवन में जन संस्कृति दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में पत्रिका का लोकार्पण विश्वनाथ त्रिपाठी, जितेन्द्र रघुवंशी, जया राय व अमिताभ पांडेय ने किया। इससे पूर्व इप्टा की संस्थापक सदस्या कामरेड सरला शर्मा का उनके घर में ही जाकर सम्मान किया गया। 93 वर्षीया कामरेड सरला शर्मा ने मुंबई में 25 मई 1943 को इप्टा के स्थापना सम्मेलन में दिल्ली की प्रतिनिधि सदस्या के रूप में भागीदारी की थी।
उधर भिलाई में जन संस्कृति दिवस के अवसर पर 20 दिवसीय बाल रंग शिविर के समापन समारोह में 'इप्टानामा' का लोकार्पण लेखक के सुधाकरन ने किया। इस अवसर पर इप्टा की राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य सुभाष मिश्र, वरिष्ठ रंगकर्मी सुदीप्तो चक्रवर्ती व विजय दलवी तथा भिलाई इप्टा के सहयोगी वी.के. मोहम्मद भी मौजूद थे। भिलाई इप्टा के बाल कलाकारों ने इस अवसर पर जनगीत, नाटक व नृत्य का मनमोहक प्रदर्शन किया।
हिंदी भवन, नयी दिल्ली |
'इप्टानामा' की मुद्रित प्रति में कुल 252 पृष्ठ हैं, जिसे 6 खण्डों में बांटा गया है। 'दस्तावेज' खण्ड में कैफी आजमी, राजेन्द्र रघुवंशी व बलराज साहनी के लेख हैं। 'समाज व संस्कृति' खण्ड में इप्टा के कार्यकारी अध्यक्ष रणबीर सिंह तथा जयप्रकाश व अजय आठले को पढ़ा जा सकता है। आमने-सामने खण्ड में वरिष्ठ कवि राजेश जोशी व इप्टा के महासचिव जितेन्द्र रघुवंशी के अत्यंत उपयोगी साक्षात्कार हैं। 'रंगकर्म व मीडिया' खण्ड में पुंजप्रकाश व संजय पराते के विचारों को पढ़ा जा सकता है। 'संगे-मील' खण्ड में ए.के. हंगल, चित्तप्रसाद, सुनील जाना, बलराज साहनी व कामतानाथ पर क्रमश: रमेश राजहंस, अशोक भौमिक, विनीत तिवारी, रश्मी दोराईस्वामी व राकेश के संस्मरणों को पढ़ा जा सकता है। इसी खण्ड में कुछ अन्य विभूतियों का -जिनकी जन्मशती मनायी जा रही है- स्मरण किया गया है। इनमें हेमांग बिस्वास, हरीन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय, सआदत हसन मंटो, विष्णु प्रभाकर, अली सरदार जाफरी, अश्क, मख्दूम आदि के नाम शामिल हैं।
सिविक सेंटर, भिलाई |
आयोजन की कठिनाइयों तथा अनुदान की विवशता व शर्तों के बहाने सांस्कृतिक राजनीति की चर्चा करते हुए उषा आठले व हनुमंत किशोर के लेख 'अनुदान और आयोजन' खण्ड में देखे जा सकते हैं। अंतिम खण्ड में विविध विषयों को समाहित करते हुए प्रगतिशील आंदोलन के 75 बरस पर शकील सिद्दीकी, रंगकर्म के प्रयोग पर प्रोबीर गुहा तथा जोहरा सहगल की आत्मथा 'करीब से' पर नासिर अहमद सिकंदर की पुस्तक चर्चा को जगह दी गयी है। आखिर में छत्तीसगढ के सुविख्यात नाट्य रचनाकार प्रेम साइमन का नाट्य आलेख 'अरण्य-गाथा' है, जो रंगकर्मियों व नाटक मंडलियों के लिये अत्यंत उपयोगी साबित हो सकता है।
kaise milega?
ReplyDeletepallavkidak@gmail.com
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Deleteहनुमंत किशोर जी की टिप्पणी :
ReplyDeleteइप्टा कल तक एक आंदोलन था ...आज साथ में एक विरासत भी है | आज इप्टा से बाहर भी जो काम हो रहा है वह इप्टा का ही काम है ...एक वृक्ष जिसकी बहुतेरी शाखायें हैं लेकिन सब अपना जीवन रस जड़ से ग्रहण करती हैं ...इप्टा वही जड़ है ....और हमें गर्व है कि हम उस शानदार जन केंद्रित रंग परम्परा के वारिस हैं ....
समय के साथ चुनौतियां और जटिल हुई हैं ..ऐसे समय में उत्सवधर्मिता के साथ सच्चा आत्म अवलोकन भी आवश्यक है .....इप्टानामा को में इसी प्रसास के रूप में पाता हूँ ....
...सहयात्री होने की आकांक्षा के साथ आपको बधाई ...शुभकामनायें