Friday, May 3, 2013

‘तुम भी मरो और हम भी मरते हैं’।


टना। प्रगतिशील लेखक संघ की पटना इकाई के तत्वावधान में स्थानीय केदार भवन के कविवर कन्हैया कक्ष में चर्चित लेखिका एवं समाजिक कार्यकर्ता नूर जहीर के ‘माई गौड इज़ ए वूमन’ का हिन्दी अनुवाद ‘अपना खुदा एक औरत’ पर विचार -गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता बिहार प्रलेस के महासचिव राजेन्द्र राजन ने की तथा संचालन शहंशाह आलम ने किया। इस अवसर पर युवा कवि राजकिशोर राजन ने कहा कि प्रस्तुत पुस्तक एक मुसलमान औरत के खु़द की तकदीर चूनने की कथा ही नहीं है अपितु हर उस औरत की कथा है जो ख़ुदमोख्तार होना चाहती है।
मधेपुरा से पधारे अरविन्द श्रीवास्तव ने नूर ज़हीर से अपनी मुलाकात का हवाला देते हुए कहा कि नूर ज़हीर जब अपनी इस पुस्तक के उर्दू संस्करण प्रकाशित करने संबन्ध में वे लाहौर गई थीं तब वहाँ के साहित्यकार साथियों ने कहा था कि इस पुस्तक का उर्दू संस्करण छपवा देते हैं और फिर ‘तुम भी मरो और हम भी मरते हैं’। चर्चित शायर विभूति कुमार ने अपने विचारों को व्यक्त करते हुए कहा कि नूर ज़हीर की यह कृति कट्टरपंथी सोच के प्रति गहरे आक्रोश से पैदा हुई है। यह पुस्तक सभी से यह सवाल करती है कि क्या औरत वह खुदा नहीं बन सकती है जो उसे हमेशा से बनना था।
वहीं युवा कवि शहंशाह आलम ने नूर ज़हीर की इस गाथा पर बोलते हुए कहा कि नूर ज़हीर की प्रस्तुत कहीं से अनुदित नहीं लगती बल्कि लगता है कि हम मूल कृति पढ़ रहे हैं। यह कृति सिर्फ मुस्लिम महिलाओं के बारे में नहीं कहती बल्कि इसी बहाने पूरे दक्षिण पूर्व एशिया में महिलाओं की व्यथा कथा भी कहती है। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में राजेन्द्र राजन ने नूर ज़हीर के संबन्ध में अपनी मुलाकात के कई संस्मरण को साझा किया। उन्होंने कहा कि नूर ज़हीर की इस किताब पर चर्चा करने का अर्थ पूरे स्त्री समाज पर चर्चा करना है। इस अवसर पर राकेश प्रियदर्शी, परमानंद राम, मुकेश तिवारी, चन्द्रमोहन मिश्र तथा मनोज कुमार मिश्र ने भी अपने-अपने विचारों को रखा। धन्यवाद ज्ञापन राजकिशोर राजन ने किया।




















भड़ास4मीडिया से साभार

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