प्रो. मैनेजर पांडेय के 71 वर्ष के होने पर "आलोचना की चुनौतियाँ" विषयक संगोष्ठी का आयोजन
इस अवसर पर इतिहासकार और सामाजिक कार्यकर्ता लाल बहादुर वर्मा ने कहा कि आज आलोचना की चुनौती यह है कि साहित्य को साहित्य, और समाज को समाज बनाए रखने में मदद करे क्योंकि आज पूँजीवाद इसी को खत्म कर देना चाहता है। उन्होंने कहा कि आलोचना के लिए जन-सरोकार होना जरूरी है। आलोचना एक उपकरण भी है, जिसे चलाना मालूम होना चाहिए। आज आलोचना को साहित्य के लिए मशाल होना चाहिए। वह साहित्य और जन के बीच पुल है। आलोचक और कथाकार दूधनाथ सिंह ने कहा कि विचारधारा और साहित्य-रचना का जो तनाव है वह आलोचना में होना चाहिए, उसे नज़र-अंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए। सामाजिक शक्तियों के जो संघर्ष हैं, साहित्य उन्हें प्रतिबिम्बित करे। रविभूषण (राँची) ने कहा कि आलोचना जीवन और समय.समाज सापेक्ष होनी चाहिए। आज के संकट के समय में आलोचना को राजनीतिक प्रश्नों से भी जूझना होगा।
प्रो. चंद्रा सदायत (दिल्ली) ने कहा कि आज के दौर के अस्मितावादी विमर्श आलोचना का ही हिस्सा हैं। इसे और व्यापक बनाने के लिए अन्य भाषाओं के (अस्मितावादी विमर्शों के) अनुवाद को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए या फिर आलोचना को कम से कम उनका संदर्भ तो लेना ही चाहिए। प्रज्ञा पाठक (मेरठ) ने कहा कि स्त्री के जीवन और साहित्य को अलग कर के देखने से उसके साहित्य का सही मूल्यांकन नहीं हो पाएगा। तमाम लेखिकाएँ भी इसमें भ्रमित होती हैं। आलोचना में अभी भी स्त्री.रचना पर बात करने में पुरुषवादी सोच का दबाव काम करता है। स्त्रियाँ भी स्त्री-विमर्श या रचना पर बात करते समय इसी प्रभाव को ग्रहण कर लेती हैं। स्वतंत्र और व्यक्तित्ववान स्त्री आज भी आलोचना के लिए चुनौती है।
अपने जन्मदिन के मौके पर, संगोष्ठी को संबोधित करते हुए प्रो. मैनेजर पांडेय ने कहा कि विचारधारा के बिना आलोचना और साहित्य दिशाहीन होता है। आलोचना में पारिभाषिक शब्दावली का प्रयोग ईमानदारी से होना चाहिए क्योंकि पारिभाषिक शब्द विचार की लम्बी प्रक्रिया से उपजते हैं। उन्होंने कहा कि साहित्य की सामाजिकता की खोज और सार्थकता की पहचान करना ही आलोचना की सबसे बड़ी चुनौती है।
इस अवसर पर राहुल सिंह (बिहार) ए रामाज्ञा राय (बनारस) आदि वक्ताओं ने भी अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में छात्र, बुद्धिजीवी, सामाजिक कार्यकर्ता एवं संस्कृतिकर्मी उपस्थित रहे। संगोष्ठी का संचालन जन संस्कृति मंच के महासचिव प्रणय कृष्ण ने किया। इससे पहले कॉ. जिया उल हक ने प्रो. मैनेजर पांडेय को उनके जन्म दिन के उपलक्ष्य में शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया। इस मौके पर प्रो. मैनेजर पांडेय के आलोचना कर्म पर केंद्रित दो पुस्तकों का लोकार्पण भी हुआ। इनमें से पहली पुस्तक मैनेजर पांडेय का आलोचनात्मक संघर्ष युवा आलोचक तथा जसम के महासचिव प्रणय कृष्ण द्वारा लिखित तथा जसम के सांस्कृतिक संकुल द्वारा प्रकाशित है जिसका मूल्य सौ रुपए है। दूसरी पुस्तक आलोचना की चुनौतियाँ का सम्पादन दीपक त्यागी द्वारा किया गया है।
-प्रेमशंकर सिंह
http://news.apnimaati.com/2012/09/blog-post_1112.html
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