- डा० फीरोज़ अशरफ खान
"हिम्मत नहीं हारना, करते जाओ, बढ़ते जाओ. अभी बहुत कुछ बाकी है. हमने तो कुछ भी नहीं किया. जैसे हमने अपने आप को संभाला था, आने वाली पीढ़ी अपने-आप को संभालेगी. किसी के हाथ रखने की ज़रूरत नहीं. हाँ, वह देखेंगे कि पहले क्या-क्या हो चुका है, उससे प्रेरणा लेंगे; लेकिन वे नयी चीज भी करेंगे. सब पुरानी चीजों से गुजारा नहीं होता. नयी चीजें चाहिए और नए लड़के नयी चीजें लाते हैं"
ए के हंगल मरहूम के ये शब्द उनकी स्मृति सभा में गूँज रहे थे और सैकड़ों लोगों से भरा बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ का सभा कक्ष चुप्पी साधे ग़म गीन और भाव-विभोर था. आयोजन था बिहार इप्टा, प्रगतिशील लेखक संघ, बिहार और बिहार कलाकार मंच, पटना का; जहां पटना के कलाकार, साहित्यकार, रंगसमीक्षा, फिल्मकार, फिल्मासमीक्षक, संस्कृतिकर्मी, प्राध्यापक, समाजसेवी सहित बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थें.
ए के हंगल के साथ बिहार इप्टा की स्मृतियों को याद करते हुए बिहार इप्टा के महासचिव तनवीर अख्तर ने कहा कि हंगल साहब पहली बार बिहार संस्कृतिकर्मियों के सम्प्रदायवाद-अलगाववाद के खिलाफ राष्ट्रीय कन्वेंशन में कैफ़ी आज़मी और दीना पाठक के साथ पटना आये. वे बिहार में कलाकारों की एकजुटता से काफी प्रभावित हुए और कहा कि आज इप्टा के साथ कई आर इप्टा जैसे संगठन हैं, जिन्हें जनवादी संस्कृतिकर्म का काम करना है. प्रेमचंद रंगशाला मुक्ति अभियान में भी उन्होंने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर बिहार के संस्कृतिकर्मियों का पक्ष लेने का अनुरोध किया.
ए के हंगल को अपनी श्रद्धांजलि देते हुए सिने सोसाइटी के अध्यक्ष आर एन दास में कहा कि हंगल विचारों की प्रतिबद्धता वाले कलाकार थें और सिनेमा को जनवादी दृष्टिकोण देने के प्रति इप्टा की राष्ट्रीय पहल के अग्रणी सिपाही थें. एक वैचारिक कलाकार के रूप इन्होने सिनेमा आन्दोलन को मजबूत किया. जनवादी लेखक संघ के राज्य सचिव अशोक कुमार ने ए के हंगल को संस्कृति और संस्क्रितिकर्मा का वैचारिक सिपाही कहते हुए उन्केविचारों को आगे बढ़ने पर बल दिया.
शिक्षाविद व् बिहार इप्टा के संरक्षक प्रो. विनय कुमार कंठ ने कहा कि हंगल साहब को नयी पीढ़ी पर भरोसा था. वे सामजिक दायित्वों को युवाओं के माध्यम से पूरा करने में विश्वास करते थें. वे प्रेरणा स्त्रोत थें और उनके जाने से नयी पीढ़ी पर विश्वास रखने वाले एक अध्याय आंत हुआ है, पटना दूरदर्शन के केंद्र निदेशक कृष्ण कल्पित ने कहा कि हंगल साहब का पूरा जीवन कला के प्रति समर्पित था. वे एक मिलनसार व्यक्तित्व के मालिक थें. जयपुर में इप्टा के राष्ट्रीय सम्मलेन में हंगल साहब से मेरी भेंट हुई थी. वे इप्टा के सिनेमा आन्दोलन के सिपाही थे और इप्टा के सिनेमा आन्दोलन की पहली फ़िल्म "वीटा नगर" जिसे चेतन आनंद ने निर्देशित किया था के गवाह थे. यह फिल्म आज भी हिन्दुस्तानी सिनेमा गोल्डन पन्ना है.
वरिष्ठ अभिनेता व् रंगकर्मी डा. जावेद अख्तर खान ने आपनी श्रद्धांजली देते हुए कहा कि इप्टा में कई अवसरों पर हंगल साहब से साक्षात्कार का मौक़ा मुझे मिला. हंगल साहब के बारे में सोचते हुए मेरे सामने एक 'कश्मीरी पंडित", "लाहौर का नौजवान", "आज़ादी के आन्दोलन का सिपाही", "प्रतिबद्ध अभिनेता", आदि कई विम्ब उभर कर सामने आ जाते हैं. हंगल साहब उस विभाजन की पीड़ा के प्रतिक थे और भीषम साहनी, बलराज सहनी, फैज़, आदि के साथ खड़े दिखाते हैं जो सम्प्रदायवाद के किलाफ़ मजबूती के साथ खडा होता है. हंगल साहब जीवनपर्यंत भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी के सदस्य, कार्ड होल्डर रहे. यही उनकी प्रतिबद्धता का प्रतीक है कि ९८ साल के नौजवान की शवयात्रा लाल झंडे से लिपटी निकली. उनका सादगी पूर्ण जीवन और अभियान आज भी बलराज सहनी की तरह ही हिंदी सिनेमा में अभिनय का आदर्श है.
स्मृति सभा का संचालन बिहार इप्टा सचिव मंडल के साथी डा० फीरोज़ अशरफ खान ने किया तथा अध्यक्षता बिहार इप्टा अध्यक्ष मंडल के साथी समी अहमद, रंगकर्मी सुमन और भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी के सचिव का० शत्रुघ्न प्रसाद सिंह ने की.
सभा को वरिष्ट आलोचक खगेन्द्र ठाकुर, प्रेरणा के सचिव हसन इमाम, विनोद कुमार, सहित चिन्तक विचारकों संबोधित करते हुए हंगल साहब को श्रद्धांजलि दी.
धन्यवाद ज्ञापन बिहार कलाकार मंच के संयोजक रविकांत ने किया.
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