- मो. जाकिर हुसैन
डॉ. विमल कुमार पाठक सिर्फ एक साहित्यकार नहीं थे। उन्होंने अपनी जिंदगी में आकाशवाणी में उद्घोषक, मजदूर नेता, कॉलेज में प्रोफेसर, भिलाई स्टील प्लांट में कर्मचारी, पत्रकार और कला मर्मज्ञ सहित ढेर सारी जवाबदारी निभाई। आकाशवाणी रायपुर के शुरुआती दौर में उनकी पहचान सुगंधी भैया के रूप में थी और वह केसरी प्रसाद बाजपेई उर्फ बरसाती भैया के साथ मिलकर किसान भाइयों के लिए चौपाल कार्यक्रम दिया करते थे। इस से हटकर एक किस्सा उन्होंने बताया था -27 मई 1964 को आकाशवाणी रायपुर में वह ड्यूटी पर थे और श्रोताओं के लिए सितार वादन का प्रसारण जारी था। कान में लगे माइक्रोफोन में एक में सितार वादन सुन रहे थे तो दूसरा हिस्सा दिल्ली से कनेक्ट था। इधर सितार वादन का रिकार्ड बज ही रहा था कि अचानक माइक्रोफोन पर दिल्ली से सूचना आई कि ''हमारे देश के प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू का निधन हो गया है।'' तब उस मुश्किल हालात को उन्होंने कैसे खुद को संभाला और सितार वादन बंद कर नेहरूजी के निधन की सूचना देते हुए श्रोताओं को दिल्ली से कनेक्ट किया,यह प्रसारण जगत के लिए एक केस स्टडी हो सकती है। एक दौर में डॉ. पाठक छत्तीसगढिय़ा आंदोलन के तहत भिलाई स्टील प्लांट में स्थानीय लोगों को नौकरी में प्राथमिकता के लिए बेहद मुखर थे, तब वे पत्रकारिता भी करते थे और भिलाई स्टील प्लांट के परमानेंट मुलाजिम भी हो गए थे। दिन में नौकरी के दौरान अपने अफसरों का हुक्म मानते और नौकरी के बाद उन्हीं अफसरों के घर मजदूरों को ले जाकर धरना प्रदर्शन भी करवाते और फिर उसकी खबर भी अपने अखबार में छापते थे। इसमें भी दिलचस्प यह कि अपने अखबार के लिए विज्ञापन भी भिलाई स्टील प्लांट से ले लेते थे। आज शायद एक ही व्यक्ति इतने 'किरदार' एक साथ न निभा पाए।
भिलाई स्टील प्लांट के छत्तीसगढ़ी लोक कला महोत्सव की शुरूआत करने से लेकर उसे ऊंचाईयां देने वाली तिकड़ी के रमाशंकर तिवारी, दानेश्वर शर्मा के तीसरे सदस्य डॉ. पाठक थे। साहित्यकार के तौर पर उनकी कलम हमेशा जीवंत रही। भिलाई इस्पात संयंत्र की नौकरी के साथ उन्होंने यश भी खूब कमाया तो कई बार आलोचनाओं के घेरे में भी रहे। खास कर श्याम बेनेगल के धारावाहिक ''भारत एक खोज'' में पंडवानी सुनाती तीजन बाई के दृश्य में मंजीरा बजाते हुए बैठने पर समकालीन लोगों ने उन पर कई सवाल उछाले थे। बीते डेढ़ दशक में लगातार गिरती सेहत के बावजूद हम जैसे पत्रकारों को 'खुराक' देने हमेशा तैयार रहते थे। पूरे हिंदोस्तान की बहुत सी चर्चित हस्तियों के साथ उनके ढेरों अविस्मरणीय संस्मरण थे। हाल के कुछ दिनों में उनकी सेहत लगातार गिर रही थी। अब उनके गुजरने की खबर आई। जैसा उन्होंने खुद बताया था कि उनका अतीत आपाधापी से भरा और संघर्षमय रहा और बाद के दिनों में उन्होंने नाम-वैभव खूब कमाया। लेकिन हकीकत यह है कि इन सबपे भारी उनका बेहद तकलीफदेह बुढ़ापा रहा।
पहली तस्वीर कल्याण कॉलेज सेक्टर-7 में हिंदी के प्रोफेसर रहे डॉ. पाठक (बाएं से तीसरे) की तत्कालीन सांसद मोहनलाल बाकलीवाल व कॉलेज परिवार के साथ की है और दूसरी तस्वीर सुपेला रामनगर में उस जगह की है, जहां आज शासकीय इंदिरा गांधी उच्चतर माध्यमिक शाला है। 1967 में वहां एक निजी स्कूल चलता था और ''वक्त'' फिल्म के सुपरहिट होने के ठीक बाद बलराज साहनी अपनी जोहरा जबीं (अचला सचदेव) के साथ भिलाई स्टील प्लांट के कार्यक्रम में आए थे। निजी स्कूल के बुजुर्ग संचालक ने पत्रकार विमल पाठक के माध्यम से अनुरोध भिजवाया तो बलराज साहनी टाल न सके और अगली सुबह बच्चों के लिए मिठाईयां और तोहफे लेकर स्कूल आ पहुंचे। तस्वीर मैं बलराज साहनी के पीछे अचला सचदेव और उनके ठीक बाजू पत्रकार पाठक और उनके बाजू स्व. डीके प्रधान नजर आ रहे हैं। स्व. प्रधान देश के प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की बड़ी मौसी के बेटे थे और यहां भिलाई स्टील प्लांट में अफसर थे।
नमन
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