कल रात तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही थी तो मैं जल्दी सो गया था. सुबह – सुबह तड़के आँख खुलते ही नेट ऑन करके फेसबुक, वाट्सअप आदि के मैसेज चेक करना अब हम जैसे लोगों की आदतों में शुमार है. जैसे ही नेट ऑन किया तो वेदा राकेश जी का मैसेज वाट्सअप पर पड़ा था - V sad news…Jugal passed away. मैसेज 11.24 बजे रात्रि का था. मैं अभी ठीक से जगा भी नहीं था. मैंने जवाब में केवल व्हाट लिखा. सच कहूँ तो इस खबर पर यकीन नहीं किया जा सकता है. मैंने फ़ौरन वेदा जी को फोन लगाया. राकेश जी ने फोन उठाया. हमेशा बुलंद आवाज़ में बात करनेवाले राकेश जी के स्वर में बेहद उदासी थी. उन्होंने बस इतना ही कहा कि बड़ा ही विकट समय है, एक एक करके सारे अच्छे लोग हमें छोड़कर जा रहे हैं. मेरी और राकेश जी दोनों ही के समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि इस वक्त और क्या बात की जा सकती है. सच है कि कभी – कभी शब्द बड़े ही बौने हो जाते हैं और मौन मुखर.
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय रंगमंडल में बतौर कलाकार मेरे साथ भारतेंदु नाट्य अकादमी के कुछ पूर्व विद्यार्थी भी कार्यरत थे. उनके मुंह से जुगल सर के किस्से बहुत सुने थे. हालांकि सुनी सुनाई बातों पर किसी भी व्यक्ति के बारे में कोई अवधारणा बनाना उचित नहीं लेकिन इतना तो समझ में आ ही गया था कि एक खुशमिजाज और जिंदादिल इंसान की कथा है. फिर पीपली लाइव नामक फिल्म देखी तो इनके चहरे से भी रु-ब-रु होने का अवसर प्राप्त हुआ. चेहरे पर लखनवी पानी और नमक की चमक साफ़ - साफ़ देखी जा सकती थी. साथ ही साथ यह भी अंदाज़ा हो गया कि वो निश्चित ही एक बेहतरीन अभिनेता हैं.
फरवरी 2015 को युगल सर से मुलाकात हुई इप्टा के डोंगरगढ़ (छत्तीसगढ़) इकाई द्वारा आयोजित 10 वें राष्ट्रीय नाट्य समारोह में. रामलीला नाटक के लेखक राकेश जी, निर्देशिका वेदा राकेश जी के साथ युगल सर भी इस आयोजन में मुख्य अतिथि के बतौर आमंत्रित थे. चाय पीते – पीते पता नहीं कब गप्पों का सिलसिला शुरू हो गया. अजनबी जैसा कुछ लग ही नहीं रहा था. अपने एकांतप्रिय स्वभाव के कारण मैं पहले थोड़ा असहज ज़रूर था किन्तु फ़ौरन ही यह असहजता कब और कैसे गायब हो गई, पता ही नहीं चला. फिर क्या था हम तीन दिनों तक जमके बातें करते रहे. दुनियां जहान के किस्से, मज़ाक. सकारात्मक सोच के इन तीनों इंसानों को सुनना ही मेरे मन में उर्जा का संचार कर रहा था. हम साथ – साथ नाश्ता करते, चाय पीते, खाना खाते, नाटक देखते, अतिथि की कुर्सी पर बैठते, घूमते – टहलते और खूब सारी गप्पें मारते.
एक शाम हम नाटक देखने पहुंचे. साउंड चेक करने के लिए ऑपरेटर कबीर का एक गीत “मन लागो यार फकीरी में” बजा रहा था. युगल सर और मैं दोनों सुकून भरा यह गायन सुनने लगे. युगल सर ने पूछा – किसने गाया है. मैंने कहा – सर मुझे पता नहीं. जुगल सर बोले – बड़ा सुकून से गया है. गीत खत्म हुआ तो युगल सर उठकर ऑपरेटर के पास गए और उससे दुबारा यह गीत बजाने का अनुरोध करते हुए पूछा कि यह गीत किसने गाया है. ऑपरेटर ने कहा – मुझे पता नहीं. फिर युगल सर ने कहा - उन्हें यह गीत मिल सकता है क्या? ऑपरेटर ने कहा - पेन ड्राइव या स्मार्ट फोन है तो ले लीजिए. युगल सर के पास यह दोनों नहीं था. मैंने कहा – सर मैं ले लेता हूँ फिर आपको भेज दूँगा. युगल सर ने कहा – ठीक है. बाद में मैंने उस ऑपरेटर से यह और एक और गीत लिया – “पत्ता बोला बृक्ष से.” ले लिया. मैं जब गीत अपने मोबाईल में ट्रांसफर कर रहा था तो पता चला कि यह शुजात हुसैन ने गाया है. लेकिन अफ़सोस आजतक यह गीत मेरे ही पास हैं.
तीन दिन साथ रहने के पश्चात् हम विदा हो गए. युगल सर को जब भी मौका मिलता फोन लगा देते और फिर हम गप्पें मारने में व्यस्त हो जाते. अभी पिछले दिनों वो अपना नाटक “बेयरफुट इन एथेंस” (निर्देशक – राज बिसारिया) लेकर पटना आए हुए थे. लेकिन अफ़सोस कि मुझे उसी दिन पटना से रांची के लिए गाड़ी पकड़ना था. उन्हें मंच पर अभिनय करते हुए देखने की तमन्ना अधूरी ही राह गई. बहरहाल, कितनी बातों का अफ़सोस किया जाय. हां यह शिकायत ज़रूर रहेगी कि रंगमंच और समाज में जिंदादिल लोग अब बहुत ही कम बचे हैं. जिससे भी मिलो हाय पैसा, हाय पैसा करता रहता है. ऐसे समय में युगल सर का हमसे जुदा होना कही से भी सही और तर्क संगत नहीं है. यह भी कोई उम्र थी? इस उम्र में ही तो अभिनेता का अभिनय जवान होता है. अब तो बस यही उम्मीद है कि जुगल सर की जिंदादिली और शरारत भरी मुस्कान हम जैसे को सही राह दिखाए. अलविदा सर नहीं कहूँगा क्योंकि आप हम जैसे पता नहीं कितने शिष्यों के ह्रदय में धड़कन बनके धड़क रहे हैं और धड़कते रहेंगें.
लेखक के ब्लाग से साभार ( जुगलकिशोर जी अपना नाम युगलकिशोर भी लिखते थे -संपादक)।
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