बनारस में 04 मई, 2014 को होने वाले कन्वेंशन के लिए
‘साम्प्रदायिकता फासीवाद विरोधी मंच’ की तरफ से अपील एवं आमंत्रण
साथियों!
2014 का लोक सभा चुनाव ऐसे समय में होने जा रहा है जब पूँजीपति, मीडिया एवं फासीवादी शक्तियों का ऐसा गठजोड़ तैयार हो गया है जो तथाकथित विकास के नाम पर वोट माँग रहा है। विगत दो दशकों में किसानों, आदिवासियों, दलितों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं एवं श्रमिक वर्ग की मुसीबतें बढ़ी हैं। धनिकों एवं वंचितों के बीच खाई चौड़ी हुई है।
आज भारत की बहुलतावादी संस्कृति खतरे में है। देश के अन्दर जाति, धर्म एवं नस्ल के फासीवादी उभार ने सत्ता पर वर्चस्व स्थापित करने के लिए हमारे सांस्कृतिक ताने-बाने को तार-तार कर दिया है। हालांकि जनता ने इन साम्प्रदायिक शक्तियों को लगातार खारिज किया है। उन्हें मुकम्मल तौर पर सत्ता पर कभी काबिज नहीं होने दिया। नतीजतन साम्प्रदायिक राजनीति के सहारे सत्ता पर वर्चस्व स्थापित करने में नाकाम रहने वाली भाजपा और नरेन्द्र मोदी अब विकास का ढोल पीट रहे हैं। इनके विकास की ढोल में जो पोल है उसे जाहिर करने की जरूरत है।
आखिर मोदी के विकास का मॉडल क्या है? इस सम्बन्ध में प्राप्त अधिकृत तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि गुजरात के विकास का नवउदारवादी मॉडल कारपोरेट जगत की हिफाजत करता है और किसानों की जमीन औने-पौने दाम पर उन्हें मुहैया कराता है। आर्थिक विकास दर के हिसाब से प्रति व्यक्ति आय के मामले में गुजरात का स्थान 2011 में छठा था और प्रति व्यक्ति कर्ज के मामले में उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों से गुजरात आगे है और ऊपर से सीना 56 इंच का है। सामाजिक कार्यकर्ता रोहिणी हेंसमेन की रिपोर्ट के मुताबिक इस आर्थिक प्रगति की भारी कीमत गुजरात के आम लोगों ने चुकायी है। भारत के अन्य राज्यों की तुलना में गरीबी का स्तर सबसे अधिक है। निजी कंपनियों को बड़े पैमाने पर जमीनें आवंटित की गई, जिससे लाखों किसान, मछुवारे, चरवाहे, खेतिहर, मजदूर, दलित व आदिवासी अपने घरों से बेघर हो गए। मोदी राज में 2011 तक आर्थिक बदहाली से परेशान होकर 16,000 श्रमिकों, किसानों और खेतिहर मजदूरों ने आत्महत्या कर ली। गुजरात का मानव विकास सूचकांक, उसके समान प्रति व्यक्ति आय वाले अन्य राज्यों की तुलना में सबसे कम है। बड़े राज्यों में नरेगा को लागू करने के मामले में गुजरात का रिकार्ड सबसे खराब है। गरीबी, भूख, शिक्षा और सुरक्षा के मामलों में मुसलमानों की हालत बहुत बुरी है। मोदी ने यह दावा किया है कि गुजरात में कुपोषण का स्तर इसलिए अधिक है क्योंकि वहाँ के अधिकांश लोग शाकाहारी हैं और दुबले-पतले व फिट बने रहना चाहते हैं। इसका खण्डन करते हुए एक जाने-माने अध्येता ने कहा है कि इसका असली कारण है मजदूरी की कम दर, कुपोषण घटाने के उद्देश्य से शुरू की गयी योजनाओं को ठीक से लागू न किया जाना, पीने योग्य पानी की कमी और साफ-सफाई का अभाव। रिपोर्ट बताती है कि शौचालयों के इस्तेमाल के मामले में गुजरात 10वें नम्बर पर है। यहाँ की आबादी का 65 प्रतिशत हिस्सा खुले में शौच करने को मजबूर है, जिसके कारण पीलिया, डायरिया, मलेरिया व अन्य रोगों के मरीजों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। अनियंत्रित प्रदूषण के कारण किसानों और मछुवारों ने अपना रोजगार खो दिया है और भारी संख्या में लोग दमे, टीबी व कैंसर से ग्रस्त होकर मर रहे हैं।
हेंसमेन की रिपोर्ट को माने तो गुजरात में भ्रष्टाचार आसमान छू रहा है। जिन लोगों ने इस भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाया, उनकी दुर्गति हुई। गुजरात में भारत की कुल आबादी का 5 प्रतिशत हिस्सा रहता है परन्तु हाल के वर्षों में सूचना के अधिकार कार्यकर्ताओं पर देश भर में हुए हमलों में से 20 प्रतिशत गुजरात में हुए। जिन आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्याएं हुई, उनमें से 22 प्रतिशत गुजरात के थे। 2003 से लेकर 10 साल तक लोकायुक्त का पद खाली पड़ा रहा। जब 2011 में राज्य के राज्यपाल और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने न्यायमूर्ति आर.ए. मेहता को इस पद के लिए चुना तो मोदी ने इस नियुक्ति के खिलाफ उच्चतम न्यायालय तक कानूनी लड़ाई लड़ी। बताया जाता है कि इस पर 45 करोड़ रूपए खर्च किए गए। उच्चतम न्यायालय द्वारा इस निर्णय को उचित ठहराए जाने के बाद भी राज्य सरकार ने मेहता के साथ सहयोग नहीं किया और नतीजतन उन्हेांने यह पद स्वीकार करने से इंकार कर दिया। हेंसमेन की रिपोर्ट बताती है कि गुजरात के आम लोगों ने आर्थिक प्रगति की भारी कीमत चुकाई है।
साथियों, इन फासीवादी ताकतों के मंसूबे नाकाम होने चाहिए। इस खतरनाक दौर में जनता को सावधान करने की जरूरत है। इस बार के चुनाव में देश के सामने अब तक का सबसे खूंखार फासीवादी चेहरा नरेन्द्र मोदी के रूप में हमारे सामने है। सत्ता में आने के बाद फासीवादी ताकतों का तांडव कैसा होगा, इसकी बानगी अभी से ही बनारस में मोदी के चुनाव प्रचार के दौरान मिलने लगी है। मोदी समर्थक अपने प्रतिद्वंदियों और विरोधियों के साथ जगह- जगह मार-पीट और गाली-गलौज कर रहे हैं, झुंड बाँध-बाँध कर सार्वजनिक स्थलों पर मोदी के आलोचकों को अपमानित कर रहे हैं, किसी भी विवेकशील अभिव्यक्ति का गला घोंट रहे हैं। उन्मादी नारों के साथ शहर के संवेदनशील इलाकों की फिजा बिगाडने की कोशिश में लगे हैं। यह सब अभी ही, ठीक चुनाव के दरमियान हमारी आँखों के सामने बनारस की धरती पर रोज-ब-रोज घट रहा है।
दरअसल साम्प्रदायिकता का सर्प फिर फुफकारता हुआ जहरीली सांस छोड़ रहा है और इससे हवायें दमघोटू होती जा रही है। हम जानते हैं कि 1948 में भारत विभाजन के बाद महात्मा गाँधी की हत्या के साथ ही गोडसे की विनाशकारी विरासत लगातार अपनी मंजिल तय करती चली आ रही है जिसकी राह में 1992का बाबरी मस्जिद ध्वंस और 2002 के गुजरात का दंगा महज मामूली पड़ाव है। लेकिन देश की मिलीजुली तहजीब में विश्वास करने वाली जनता ने इन्हें अभी तक बराबर खारिज ही किया है और हुकूमत का मौका बाकायदा कभी नहीं दिया। इस बार भी ऐसा ही होना है। बहरहाल, अब नयी चाल-ढाल के साथ यह साम्प्रदायिक फासीवाद हमारे सामने है और अबकी बार विकास के नाम पर कारपोरेट के कन्धे पर सवार है। जाहिरा तौर पर कांग्रेस के भ्रष्टाचार से आजीज आ चुकी जनता को अपने पक्ष में करने के लिए विकास का झांसा नरेन्द्र मोदी और भाजपा की ओर से दिया जा रहा है।
साथियों, यह तथाकथित विकास हमारी सदियों पूर्व से मिली-जुली सांस्कृतिक, सामाजिक समरसता तथा साम्राज्य विरोधी भावना जिसके चलते हमने स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई लड़ी थी, उसे निर्मूल करने का छदम् प्रयास है। देश की मीडिया जिसकी छवि अबतक बहुत स्वच्छ एवं निष्पक्ष रही है, वह कारपोरेट घरानों और तथाकथित धर्म गुरुओं के साथ मिलकर नकली विकास का अनर्गल प्रलाप कर रही है।
साथियों, नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में इन्हीं फासीवादी शक्तियों ने अयोध्या एवं गुजरात के बाद वाराणसी को अपना अगला पड़ाव बनाया है। यदि यहाँ इन खतरनाक ताकतों को कामयाबी मिली तो संघ परिवार का यह मॉडल देश में अराजकता और विखण्डन को ही विस्तार देगा। परिणाम स्वरूप सामाजिक समरसता तो समाप्त होगी ही, साथ ही दबे, पिछड़े एवं वंचित तबको के लिए संविधान में जो अधिकार मिला है वह भी समाप्त हो जायेगा। इस प्रकार के मॉडल में साहित्य, संस्कृति, वैज्ञानिक सोच, तर्क और संवाद, अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता, मानवाधिकार और भाईचारे के लिए कोई स्थान नहीं है।
अब वह वक्त हमारे सामने है, साहित्यकारों, संस्कृतिकर्मियों और बुद्धिजीवियों को अपनी कमर कसनी होगी। दरअसल यह हमारी जिम्मेदारी है। हम प्रगतिशील, जनवादी, धर्मनिरपेक्षतावादी तथा मानवाधिकार के लिए संघर्षरत संगठनों ने मिलकर एक साझी रणनीति तय करते हुए- ‘साम्प्रदायिकता फासीवाद विरोधी मंच’ के बैनर तले 04 मई, 2014 को बनारस में ‘मोदी हराओ’ का जनता से आह्वान किया है। इस अभियान को आगे ले जाना और जनता में उसे असरदार तरीके से पहुँचाना हमारे लिए चुनौतीपूर्ण कार्य है। इतिहास के इस बेहद खतरनाक समय में हमारी भूमिका और जिम्मेदारियों की यह अग्नि परीक्षा भी है।
साथियों, हम जानते हैं कि संघ परिवार और भाजपा ने अपने एजेण्डे को देश पर थोपने के लिए बनारस को केन्द्र बनाया है और इसीलिए नरेन्द्र मोदी को बनारस के लोकसभा चुनाव में खड़ा किया है। बनारस जो युगों से सांस्कृतिक समरसता का संवाहक रहा है वह संघ परिवार के इस कुचक्र को अच्छी तरह समझता है और समय आने पर इसका माकूल जवाब भी इन्हें देगा। पूरी दुनिया में मशहूर बनारस अपने फक्कड़ मिजाज और मिलीजुली तहजीब के लिए जाना जाता है। यह गौतमबुद्ध, कबीरदास, तुलसीदास, रविदास, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र और प्रेमचन्द का शहर है। इतिहास के हर कालखण्ड में अपनी सकारात्मक एवं अग्रणी भूमिका के लिए इस शहर की अलग पहचान रही है।
साथियों, इस अपील के साथ हम आपको 04 मई, 2014 को बनारस में होने वाले कन्वेंशन में शिरकत करने के लिए आमंत्रित करते हैं। इस कन्वेंशन में देश के नामी-गिरामी साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी, सिनेमा से जुड़ी महत्वपूर्ण शख्सियतें, सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार, बुद्धिजीवी, छात्र एवं नौजवान बड़ी संख्या में भाग लेने के लिए आ रहे हैं। निश्चित रूप से आपकी उपस्थिति और हमारी एकजुटता से इन जनविरोधी, विभाजनकारी एवं साम्प्रदायिक ताकतों के झूठ का पर्दाफाश करना और उनकी जमीनी हकीकत बताते हुए उन्हें शिकस्त करना ज्यादा आसान होगा और तब देश की हुकूमत पर काबिज होने से हम इन्हें शायद रोकने की कारगर और असरदार लड़ाई लड़ सकें।
आप अपने आने की सूचना हमें अविलम्ब दें ताकि हम आपके आवास एवं भोजन का प्रबन्ध कर सकें। इस सम्बन्ध में आप डॉ. संजय श्रीवास्तव (9415893480), डॉ. मुनीज रफीक खान (9415301073), डॉ. गोरख नाथ (9839541426) डॉ. प्रभाकर सिंह (8004924509) से सम्पर्क कर सकते हैं।
ईमेल - sks045@rediffmail.com | munizak@hotmail.com | gnpupc@gmail.com.
क्रान्तिकारी अभिवादन के साथ हमें आपकी प्रतीक्षा है।
कार्यक्रम
• 4 मई, 2014, रविवार।
• सुबह 10:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक सभा।
• शाम 5:00 से 6:00 बजे तक, कबीरचैरा से लहुराबीर स्थित प्रेमचन्द प्रतिमा तक सांस्कृतिक मार्च।
स्थान:- कबीरमठ, पिपलानी कटरा चौराहा, कबीरचौरा, वाराणसी।
संचालन समिति: अलीजावेद, जितेन्द्र रघुवंशी, हरिश्चन्द्र पाण्डेय, प्रणय कृष्ण, विभूति नारायण राय, दीपक मलिक, मुनीजा रफीक खान, मुहम्मद आरिफ, व्योमेश शुक्ल, प्रशान्त शुक्ल, आनन्द दीपायन।
समन्वय समिति: किरन शाहीन, अमित सेन गुप्ता, सबा नकवी, अपूर्वानन्द, चौथीराम यादव, राकेश, वीरेन्द्र यादव, संतोष भदौरिया, शकील सिद्दीकी, जयप्रकाश धूमकेतु, सीमा आजाद,विश्वविजय।
आयोजन समिति: शाहीना रिजवी, बलिराज पाण्डेय, एम.पी. सिंह, गया सिंह, जवाहर लाल कौल ‘व्यग्र’, मूलचन्द सोनकर, शिवकुमार पराग, संजय कुमार, दीप्ति रंजन पटनायक, राजकुमार, श्रीप्रकाश शुक्ल, आशीष त्रिपाठी, गोरख नाथ, प्रभाकर सिंह, आनन्द तिवारी, अशोक आनन्द, दानिश जमाल सिद्दीकी, अलकबीर, निरंजन सहाय, अनुराग कुमार, नीरज खरे, वंदना चौबे, कविता आर्या, सर्वेश कुमार सिंह, चन्द्रशेखर, रविशंकर उपाध्याय।
अध्यक्ष-काशीनाथ सिंह | संयोजक - संजय श्रीवास्तव