वाराणसी। प्रगतिशील लेखक संघ, इप्टा, जलेस और जसम के लेखकों और सांस्कृतिक संगठनों की सयुंक्त अभियान समिति द्वारा सांप्रदायिक फासीवाद के खतरे के खिलाफ वाराणसी में 9 अप्रैल 2014 को पारित प्रस्ताव
2014 में संसदीय चुनाव ऐसी स्थिति में हो रहा है जब कार्पोरेट, मीडिया और फासीवादी ताकतों ने तथाकथित विकास के मुद्दे पर गठजोड़ बना लिया है. इस विकास ने पिछले दो दशकों से अधिक के समय में किसानों, आदिवासियों दलितों, और अल्पसंख्यकों की तकलीफें बढाई हैं , तथा अमीर और वंचित वर्गों के बीच की खाई चौड़ी की है .
जनता के सामने पेश किया जा रहा यह मॉडल सदियों पुरानी मिली –जुली संस्कृति , अनेकता में एकता,सद्भाव और हमारे स्वतंत्रता संग्राम की साम्राज्यवाद विरोधी,धर्मनिरपेक्ष विरासत का असम्मान है. तथाकथित स्वतंत्र मीडिया अभूतपूर्व ढंग से इतने बड़े पैमाने पर इस मॉडल के प्रति सहमति गढ़ने के लिए खुलेआम आ गया है और जो अलग-अलग तरीकों से कुछ सांप्रदायिक स्वामियों और धार्मिक गुरुओं द्वारा समर्थित है
अयोध्या और गुजरात के बाद इस मॉडल के अगले केंद्र के रूप में वाराणसी को चुना गया है ताकि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में उनके नरम फासीवादी हिंदुत्ववादी एजेंडे को आगे ले जाया जा सके. अगर इसे सफल होने दिया गया तो “संघ परिवार” का यह मॉडल न सिर्फ अराजकता ,विघटन ,सामाजिक वैनमस्यता की ओर ले जायेगा बल्कि समाज के वंचित वर्गों द्वारा हमारे संविधान के तहत अर्जित मूल लोकतांत्रिक अधिकारों और सुविधाओं में कटौती करेगा. इस मॉडल में गंभीर साहित्य, संस्कृति, वैज्ञानिक प्रवृति, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, अंतर्राष्ट्रीय भाईचारे, शांति, निरस्त्रीकरण और पर्यावरण से संबंधित मुद्दों के लिए कोई स्थान नहीं है.
हम लेखकों, कलाकारों, सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं की दृढ़ राय है कि घृणा, हिंसा और बहुत से गुप्त एजेंडों वाला यह मॉडल जनविरोधी है. हम जानते हैं कि युगों से हमारे सांस्कृतिक मूल्यों एवं मुक्त बौद्धिक विमर्श का स्थान वाराणसी इस मॉडल के मुख्य प्रचारक को सफल नहीं होने देगा .हम वाराणसी और पूरे देश के मतदाताओं से अपील करते हैं कि विभाजनकारी और सांप्रदायिक ताकतों के इस मॉडल को हरायें तथा जनपक्षधर विकल्प का चुनाव करें.
- प्रगतिशील लेखक संघ (प्रलेस), भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा), जनवादी लेखक संघ (जलेस), जन संस्कृति मंच (जसम)
दिनांक: 2014/09/04, वाराणसी
2014 में संसदीय चुनाव ऐसी स्थिति में हो रहा है जब कार्पोरेट, मीडिया और फासीवादी ताकतों ने तथाकथित विकास के मुद्दे पर गठजोड़ बना लिया है. इस विकास ने पिछले दो दशकों से अधिक के समय में किसानों, आदिवासियों दलितों, और अल्पसंख्यकों की तकलीफें बढाई हैं , तथा अमीर और वंचित वर्गों के बीच की खाई चौड़ी की है .
जनता के सामने पेश किया जा रहा यह मॉडल सदियों पुरानी मिली –जुली संस्कृति , अनेकता में एकता,सद्भाव और हमारे स्वतंत्रता संग्राम की साम्राज्यवाद विरोधी,धर्मनिरपेक्ष विरासत का असम्मान है. तथाकथित स्वतंत्र मीडिया अभूतपूर्व ढंग से इतने बड़े पैमाने पर इस मॉडल के प्रति सहमति गढ़ने के लिए खुलेआम आ गया है और जो अलग-अलग तरीकों से कुछ सांप्रदायिक स्वामियों और धार्मिक गुरुओं द्वारा समर्थित है
अयोध्या और गुजरात के बाद इस मॉडल के अगले केंद्र के रूप में वाराणसी को चुना गया है ताकि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में उनके नरम फासीवादी हिंदुत्ववादी एजेंडे को आगे ले जाया जा सके. अगर इसे सफल होने दिया गया तो “संघ परिवार” का यह मॉडल न सिर्फ अराजकता ,विघटन ,सामाजिक वैनमस्यता की ओर ले जायेगा बल्कि समाज के वंचित वर्गों द्वारा हमारे संविधान के तहत अर्जित मूल लोकतांत्रिक अधिकारों और सुविधाओं में कटौती करेगा. इस मॉडल में गंभीर साहित्य, संस्कृति, वैज्ञानिक प्रवृति, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, अंतर्राष्ट्रीय भाईचारे, शांति, निरस्त्रीकरण और पर्यावरण से संबंधित मुद्दों के लिए कोई स्थान नहीं है.
हम लेखकों, कलाकारों, सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं की दृढ़ राय है कि घृणा, हिंसा और बहुत से गुप्त एजेंडों वाला यह मॉडल जनविरोधी है. हम जानते हैं कि युगों से हमारे सांस्कृतिक मूल्यों एवं मुक्त बौद्धिक विमर्श का स्थान वाराणसी इस मॉडल के मुख्य प्रचारक को सफल नहीं होने देगा .हम वाराणसी और पूरे देश के मतदाताओं से अपील करते हैं कि विभाजनकारी और सांप्रदायिक ताकतों के इस मॉडल को हरायें तथा जनपक्षधर विकल्प का चुनाव करें.
- प्रगतिशील लेखक संघ (प्रलेस), भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा), जनवादी लेखक संघ (जलेस), जन संस्कृति मंच (जसम)
दिनांक: 2014/09/04, वाराणसी
Rise and spare no effort to unite all the patriots with a view of defeating 'Hitlerwadi' Modi.
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