Saturday, October 27, 2012

हर गाम नया तूर नई बक-ए-तजल्ली

 

इंडियन पीपुल्स थियेटर एसोसिएशन, जिसका मुख्तसर नाम इप्टा है, की पचास साला ज़िंदगी में आज का दिन  बहुत मुबारक़ दिन है, कि इसका पचास साला ज़िंदगी की सरगर्मियों के एतराफ में हमारी कुम्युनिकेशन मिनिस्ट्री इसका यादगारी टिकट जारी कर रही है। किसी भी थियेटर के लिए सबसे अहम दिन वह होता है जिस दिन वह बामक़सद और खूबसूरत नाटक खेलने में कामयाबी हासिल करे। यह यादगारी टिकट का इजारा भी मकसदी थियेटर के आन्दोलन को तकवियत पहुँचायेगा, इसलिए मैं आज के दिन को भी एक यादगार दिन तसव्वुर करता हूँ।
 
सोचने की बात यह है कि आज ही हमारी सरकार को यादगारी टिकट जारी करने, इप्टा के कारकूनों को इप्टा की सरगर्मियों को तेज़ करने का ख्याल क्यों आया? क्या सिर्फ इसलिए कि यह इसकी गोल्डन जुबली का साल है? यह एक वजह हो सकती है लेकिन असली वजह यही नहीं।
 
इप्टा का जन्म ठीक उस ज़माने में हुआ, जब हमारी कौम अपनी स्थायी आज़ादी के हुसूल लिए, ज़बरदस्त जद-ओ-जहद कर रही थी। बैरूनी हुकूमत ने  हमसे सिर्फ हमारी आज़ादी नहीं छीनी थी, सिर्फ सनअत-ओ-हिर्फ़त को ही बर्बाद नहीं किया था, हमारे फ़नून-ए-लतीफ़ा को भी कुचल दिया था। आज़ादी की जद-ओ-जहद सिर्फ़ के हुसूल की जद-ओ-जहद नहीं थी] वह क़ौमी तहज़ीब का बाज़याबी की लड़ाई भी थी।  इप्टा ने यह लड़ाई अपने गानों, नाचों, नाटकों के हथियारों से लड़ी और मुल्क को आज़ादी की मंजिल तक पहुँचाने क़ाबिल-ए-ज़िक्र रोल अदा किया। आज जब फिरकापरस्ती का फरौग हमारी आज़ादी जमहूरियत और सेक्युलरइज्म के लिए ज़बरदस्त ख़तरा बन गया है, हम उनका मुकाबला करने की ज़िम्मेदारी सिर्फ राजनीति पर नहीं छोड़ सकते जो हर क़दम यह सोच कर उठाती है कि इसमें उसके वोट बढ़ेंगे या टूटेंगे।
 
वोटों की इस सियासत से इप्टा को बारह-ए-रास्त कोई ताल्लुक़ नहीं। इसलिए आज मुल्क जितने खतरों में घिरा हुआ है उनका मुक़ाबला करने और उन्हें शिकस्त देने के लिए इप्टा की ज्यादा मज़बूत और ज्यादा सरगर्म करना ज़रूरी है।
 
 
 
हर गाम नया तूर नई बक़-ए-तजल्ली।
अल्लाह करे मरहल-ए-शौक़ ना हो तय।
 
 
 
 
 
 
 
 
 (मुंबई में इप्टा पर डाक टिकट जारी होने के समय प्रकाशित स्मारिका में इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कैफ़ी आज़मी का वक्तव्य)

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