वरिष्ठ आलोचक नंदकिशोर नवल ने अपने जीवन के 75 वर्ष पूरे के. इस अवसर पर आलोचना पर संगोष्ठी नाम से एक कार्यक्रम का आयोजन पुनश्च, इप्टा पटना, कोशिश, नटमण्डप, राजा फाउन्डेशान के संयुक्त तत्वावधान में 1 और 2 सितम्बर 2012 को किया गया।
कार्यक्रम के पहले दिन पहले सत्र में 'आलोचना की भूमिका' पर नामवर सिंह और पुरुषोत्तम अग्रवाल ने अपने विचार रखे और वर्त्तमान सन्दर्भ में आलोचना कर्म को साहसिक रचनाकर्म की संज्ञा देते हुए इसे एक राजनीतिक कार्रवाही कहा। श्री अग्रवाल ने एक आलोचक के रचना संकट चर्चा करते हुए कहा कि आज ना तो सत्ता अपनी आलोचना सुनना चाहती हैं और नाही विपक्ष . आलोचना आज का एक राजनीतिक एक्शन है; जिसे करना चाहिए। सत्र का संचालन करते हुए प्रो0 तरुण कुमार ने आयोजन की प्रासंगिकता पर जोर देते लेखन और सांस्कृतिक रचनाकर्म को विमर्श के दायरे में लेने की बात कही। दूसरे सत्र में आलोचना की भाषा पर अशोक वाजपेयी और संजीव कुमार ने अपने विचार रखे। सत्र का संचालन प्रो जावेद अख्तर खान ने किया।
रविवार 2 सितम्बर 2012 को तीसरे सत्र में 'कविता की आलोचना' पर केदारनाथ सिंह और आशुतोष कुमार ने विचार रखे और सत्र का संचालन योगेश प्रताप शेखर ने किया। चौथे और अंतिम सत्र में अपूर्वानंद के साथ नंदकिशोर नवल से सीधी बातचीत हुई।
- फीरोज़ अशरफ खान
No comments:
Post a Comment