Monday, May 15, 2017

होना दीवार पर एक 'खिड़की' का

वह एक प्रोफेशनल राइटर है। फटेहाल है। घर में चीनी-और चायपत्ती का भी जुगाड़ नहीं है। दिन भर सिगरेट फूंकता रहता है जबकि इसे अफोर्ड कर सकने लायक उसकी हैसियत नहीं है-कायदे से उसे बीड़ी पीनी चाहिए। जाहिर है कि लेखक प्रोफेशनल होते हुए भी दरिद्र है तो हिंदी का ही होगा! हिंदी में लेखन और गरीबी के बीच चोली-दामन का रिश्ता नहीं होता तो 'उपन्यास सम्राट' के जूते फ़टे हुए क्यों होते?

बहरहाल, जाहिर है कि ऐसा तंगहाल लेखक किराए के मकान में ही अपने सेकण्डहैण्ड टाइप टाइपराइटर में बैठकर खिटिर-पिटिर कर सकता है- इस चिंता के साथ कि इस महीने का मकान किराया कहाँ से आएगा? मकान में और उसके जीवन में कोई चीज तरतीब से नहीं है। सब स्याह है। सफेद बस इतना है कि मकान है तो दीवारें हैं और -विनोद कुमार शुक्ल की मेहरबानी से- दीवार पर एक खिड़की रहती थी और खिड़की के पार एक लड़की भी रहती थी। गरीब हिंदी लेखक को और क्या चाहिए? वह तो कल्पनाओं की खुराक पर जीता है और दीवार पर रहने वाली खिड़की में लड़की रहने लगे तो कल्पनाओ की गति, मात्रा और घनत्व-आदि विद्वान पाठकों बताने की जरूरत नहीं रह जाती।

मुफलिसी लेखक का अँधेरा है, दीवार पर रहने वाली खिड़की और खिड़की पर रहने वाली लड़की उसके संक्षिप्त जीवनांश का उजाला है। यही लेखक की कहानी का प्लॉट है। नाटक की कहानी भी यही है। कहानी बुनते-बुनते लेखक खुद अपनी ही कल्पनाओं और कहानी की नायिका से टकराता है। कल्पना और वास्तविकता के बीच कुछ विचित्र संयोग होते हैं, जिसे लेखक मार्खेज के 'जादुई यथार्थ' से रिलेट कर 'जस्टिफाई' करने का प्रयास करता है। कल्पनाओं का बार-बार 'वास्तविकता' निकल आना नाटक का 'सरप्राइजिंग एलिमेंट' है और अभिनय के अलावा यही चीज दर्शकों को बाँधकर रखती है। परिस्थिजन्य स्वस्थ हास्य भी है। चरित्र-निरूपण ठीक-ठीक है। लेखक फटेहाल है तो थोड़ा दब्बू और डरपोक है। लड़की का चरित्र 'बोल्ड एन्ड ब्यूटीफुल' वाला है जो गरीब हिंदी लेखक से न केवल दो-टूक लहजे में बात करती है बल्कि आवश्यकतानुसार उसका मजाक भी उड़ाती है। वह सिगरेट की तीखी बू के पीछे चीकट कपड़ों की गन्ध चिह्नित कर उसे दर्शकों तक साम्प्रेषित कर देती है।

नाटक में सन्देश ढूँढने वाले आलोचक, समीक्षक, दर्शकों के लिए यह सन्देश है कि हिंदुस्तान में प्रोफेशनल राइटरों का प्रोफेशन बड़ा खतरनाक है, क्योंकि उनके घर चीनी और चायपत्ती नहीं होती।

प्रिज़्म थिएटर सोसायटी, दिल्ली द्वारा यह नाटक शहीद स्मारक जबलपुर में 13 मई 2017 को खेला गया। 'अतिथि नाट्य प्रतुति योजना' के तहत आयोजन विवेचना का था। लेखन-निर्देशन विकास बाहरी का था और मुख्य भूमिकाओं में जतिन व प्रियंका थीं। इस कड़ी की अगली प्रस्तुति आगामी माह दूसरे शनिवार को जयंत देशमुख के नाटक 'नट सम्राट' के रूप में होगी।

- दिनेश चौधरी

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