नाटक - टार्च बेचय्या
कहानी - हरिशंकर परसाई
नाटय रूपांतर - जीवन यदु राही
निर्देशक - निसार अली
अभाव के रंगमंच से गुज़र कर ही अनेकाे रंगकर्मी नाटय विधा काे सम्पन्नता की दहलीज पर पहुचाने मे प्रयासरत है, जिसे अभाव का रंगमंच कहा जाता है, दरअसल यह अभाव उसकी पीड़ा नही बल्कि उसका सौंदर्य है | रंगमंच की समृद्धि उसकी संस्कृति मे निहित है, जाे नाटकाे काे उसकी भव्यता से आंकते है ताे उनके आंकने की परिभाषा ञुटिपूर्ण है, उसमे सुधार की आवश्यकता है | जाे नाटक आंखाे के लिये हाेते है उनका सौंदर्य दृश्याे मे, रंगाे मे, वेशभूषा मे, रूप सज्जा मे, प्रकाश व्यवस्था मे हाेता है, लेकिन जाे नाटक मस्तिष्क के लिये हाेते है उनका सौंदर्य उसकी कथा वस्तु मे हाेता है |
नाटक नाटक मे अंतर हाेता है | जैसे सब्जी सब्जी के स्वाद मे अंतर हाेता है जबकि दाेनाे से भूख मिटती है, पेट भरता है | यह कतई संभव नही है कि भव्य रंगमंच ही कला के इतिहास मे दर्ज हाेगा, यकीनन वह वैचारिक रंगमंच के पीछे खड़ा हाेगा |
टार्च बेचय्या, प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई की व्यंग्य रचना का नाटय रूपांतरण है, रूपांतरण किया है जीवन यदु राही साहब ने | जीवन यदु राही छत्तीसगढ़ के साहित्य, विशेषकर जनवादी गीताे के रचनाकार के रूप मे एक प्रतिष्ठित नाम है | नाटक के निर्देशक थे निसार अली | छत्तीसगढ़ की लोकप्रिय लाेक शैली गम्मत मे इसे ढ़ाल कर निसार अली ने इसे अतिरिक्त निखार प्रदान कर संवार दिया है | जीवन यदु राही की स्कृप्ट बीज थी जिसे निसार ने फूल बना दिया | नाटक मे बारिश के बाद महकने वाली मिट्टी की सुगंध थी |
निसार के पास इप्टा का प्रतिष्ठित बैनर है, दक्ष अभिनेता (शेखर नाग) है, आैर स्वयं उनके पास बेहतर रंग दृष्टि है, लिहाज़ा हमे उनसे आैर बेहतर नाटकाे की उम्मीद है |
-अखतर अली
रायपुर (छ. ग.)
माे. 9826126781
कहानी - हरिशंकर परसाई
नाटय रूपांतर - जीवन यदु राही
निर्देशक - निसार अली
अभाव के रंगमंच से गुज़र कर ही अनेकाे रंगकर्मी नाटय विधा काे सम्पन्नता की दहलीज पर पहुचाने मे प्रयासरत है, जिसे अभाव का रंगमंच कहा जाता है, दरअसल यह अभाव उसकी पीड़ा नही बल्कि उसका सौंदर्य है | रंगमंच की समृद्धि उसकी संस्कृति मे निहित है, जाे नाटकाे काे उसकी भव्यता से आंकते है ताे उनके आंकने की परिभाषा ञुटिपूर्ण है, उसमे सुधार की आवश्यकता है | जाे नाटक आंखाे के लिये हाेते है उनका सौंदर्य दृश्याे मे, रंगाे मे, वेशभूषा मे, रूप सज्जा मे, प्रकाश व्यवस्था मे हाेता है, लेकिन जाे नाटक मस्तिष्क के लिये हाेते है उनका सौंदर्य उसकी कथा वस्तु मे हाेता है |
नाटक नाटक मे अंतर हाेता है | जैसे सब्जी सब्जी के स्वाद मे अंतर हाेता है जबकि दाेनाे से भूख मिटती है, पेट भरता है | यह कतई संभव नही है कि भव्य रंगमंच ही कला के इतिहास मे दर्ज हाेगा, यकीनन वह वैचारिक रंगमंच के पीछे खड़ा हाेगा |
टार्च बेचय्या, प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई की व्यंग्य रचना का नाटय रूपांतरण है, रूपांतरण किया है जीवन यदु राही साहब ने | जीवन यदु राही छत्तीसगढ़ के साहित्य, विशेषकर जनवादी गीताे के रचनाकार के रूप मे एक प्रतिष्ठित नाम है | नाटक के निर्देशक थे निसार अली | छत्तीसगढ़ की लोकप्रिय लाेक शैली गम्मत मे इसे ढ़ाल कर निसार अली ने इसे अतिरिक्त निखार प्रदान कर संवार दिया है | जीवन यदु राही की स्कृप्ट बीज थी जिसे निसार ने फूल बना दिया | नाटक मे बारिश के बाद महकने वाली मिट्टी की सुगंध थी |
निसार के पास इप्टा का प्रतिष्ठित बैनर है, दक्ष अभिनेता (शेखर नाग) है, आैर स्वयं उनके पास बेहतर रंग दृष्टि है, लिहाज़ा हमे उनसे आैर बेहतर नाटकाे की उम्मीद है |
-अखतर अली
रायपुर (छ. ग.)
माे. 9826126781
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