जबलपुर। प्रेमरत क्रोंच युगल के वध को देखकर कवि बाल्मीकि ने बहेलिये को श्राप दिया था कि मैं अपनी सामर्थ्य भर तुमको कभी भी प्रतिष्ठित नही होने दूंगा। उन्होने अपनी रामायण रूपी कविता में अमानवीय नृशंसता पर जबरदस्त प्रहार किया। परिणाम स्वरूप हिंसा और जीवनविरोधी प्रवर्तियों को भारतीय समाज मे सामाजिक प्रतिष्ठा कभी प्राप्त नहीं हुई। यह साहित्य और समाज का रिश्ता है। साहित्य हमेशा ही मानवीय मूल्यों यथा सत्य, प्रेम, त्याग, समानता और श्रम की प्रतिष्ठा और गरिमा के प्रसार का काम करता रहा है।
उपरोक्त उद्गार मध्यप्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष और वसुधा के संपादक श्री राजेन्द्र शर्मा ने प्रलेस जबलपुर द्वारा आयोजित सातवें परसाई व्याख्यान के अवसर पर व्यक्त किये।
प्रख्यात व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई के जन्मदिवस के मौके पर प्रगतिशील लेखक संघ द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित की जाने वाली व्याख्यानमाला की सातवीं कड़ी के रूप से आयोजित इस कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रख्यात कवि डॉ मलय ने की।
इकाई के सचिव सत्यम सत्येन्द्र पाण्डेय ने विषय प्रवर्तन करते हुए अतिथि वक्ता का परिचय प्रदान किया। अतिथियों एवं उपस्थित श्रोताओं द्वारा परसाई जी के चित्र पर माल्यार्पण किया गया।
राजेन्द्र जी ने अपने वक्तव्य में वंचित मानवता के प्रति परसाई जी की प्रतिबद्धता को याद करते हुए कहा कि परसाई जी का लेखन अपने समय के सवालों के साथ मुठभेड़ करता है और आतताइयों पर शब्दों के माध्यम से प्रहार भी करता है। परसाई जी हमेशा समाज के मेहनतकश के साथ खड़े रहे और इसके लिए उन्होंने नुकसान भी उठाए। आज जबकि राजनैतिक सत्ता का लाभ उठा कर दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं के खिलाफ माहौल तैयार किया जा रहा है। गौरक्षा के नाम पर आदमी को मार दिया जा रहा है तब साहित्य को अपनी जिम्मेवारी पर पहले की तुलना में अधिक जिम्मेवारी के साथ खड़े होना चाहिए।
कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ मलय ने प्रगति शील जीवन मूल्य और मानवता के प्रति समर्पित परसाई को याद करते हुए कहा कि उनकी लेखनी में आज के समय का पूर्वाभास नजर आता है। आज हमें भी उनकी ही तरह वंचित मानवता के हक़ में ताकत के साथ खड़े होना होगा। प्रगतिशील लेखक इस वैचारिक संघर्ष हेतु तैयार हैं। सभा का संचालन सत्यम ने और आभार प्रदर्शन वरिष्ठ कथाकार कुंदन सिंह परिहार ने किया।
उपरोक्त उद्गार मध्यप्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष और वसुधा के संपादक श्री राजेन्द्र शर्मा ने प्रलेस जबलपुर द्वारा आयोजित सातवें परसाई व्याख्यान के अवसर पर व्यक्त किये।
प्रख्यात व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई के जन्मदिवस के मौके पर प्रगतिशील लेखक संघ द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित की जाने वाली व्याख्यानमाला की सातवीं कड़ी के रूप से आयोजित इस कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रख्यात कवि डॉ मलय ने की।
इकाई के सचिव सत्यम सत्येन्द्र पाण्डेय ने विषय प्रवर्तन करते हुए अतिथि वक्ता का परिचय प्रदान किया। अतिथियों एवं उपस्थित श्रोताओं द्वारा परसाई जी के चित्र पर माल्यार्पण किया गया।
राजेन्द्र जी ने अपने वक्तव्य में वंचित मानवता के प्रति परसाई जी की प्रतिबद्धता को याद करते हुए कहा कि परसाई जी का लेखन अपने समय के सवालों के साथ मुठभेड़ करता है और आतताइयों पर शब्दों के माध्यम से प्रहार भी करता है। परसाई जी हमेशा समाज के मेहनतकश के साथ खड़े रहे और इसके लिए उन्होंने नुकसान भी उठाए। आज जबकि राजनैतिक सत्ता का लाभ उठा कर दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं के खिलाफ माहौल तैयार किया जा रहा है। गौरक्षा के नाम पर आदमी को मार दिया जा रहा है तब साहित्य को अपनी जिम्मेवारी पर पहले की तुलना में अधिक जिम्मेवारी के साथ खड़े होना चाहिए।
कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ मलय ने प्रगति शील जीवन मूल्य और मानवता के प्रति समर्पित परसाई को याद करते हुए कहा कि उनकी लेखनी में आज के समय का पूर्वाभास नजर आता है। आज हमें भी उनकी ही तरह वंचित मानवता के हक़ में ताकत के साथ खड़े होना होगा। प्रगतिशील लेखक इस वैचारिक संघर्ष हेतु तैयार हैं। सभा का संचालन सत्यम ने और आभार प्रदर्शन वरिष्ठ कथाकार कुंदन सिंह परिहार ने किया।
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