4 मई को वाराणसी में देश भर से जुटे लेखकों ,संस्कृतिकर्मियों और बुद्धिजीवियों की जुटान की रपट
(राष्ट्रीय सहारा के वाराणसी संस्करण की रिपोर्ट )
वाराणसी (एसएनबी)। वामपंथी विचारधारा से जुड़ाव रखने वाले साहित्यकार, रंगकर्मी व बुद्धिजीवियों ने कन्वेंशन ‘विरासत कबीर’ के बहाने फासीवादी ताक तों का जमकर विरोध किया। प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष व वरिष्ठ उपन्यासकार डा. काशीनाथ सिंह ने कहा कि काशी में इसबार जो चुनाव हो रहा है उसे हल्के में लेने की जरूरत नहीं है, इसबार ऐसी शक्ति सिर उठाये खड़ी है, जिससे काशी की संस्कृति ही नहीं देश को खतरा है। कहा कि अभी समय है चेत जाइये क्योंकि चुनाव में नरेंद्र मोदी का जीतना काशी की हार होगी। कहा कि मोदी को हराना होना अन्यथा फासीवादी ताकतें जैसे ही चुनाव में फतह हासिल करेंगी उसी दिन से संस्कृति नष्ट होनी शुरू हो जाएगी। कबीर मठ में रविवार को सांप्रदायिक फासीवाद विरोधी मंच के कन्वेंशन में डा. सिंह ने कहा कि काशी की भूमि पर हिंदुओं के मठ-मंदिरों की भरमार है, लेकिन आज तक यहां मोदी या तोगड़िया जैसे सांप्रदायिक व्यक्ति पैदा नहीं हुए। यह तप की भूमि भी है हिन्दु- मुस्लिम एकता की प्रतीक भी। इसे नष्ट करने का प्रयास हो रहा है, जिसका हमें विरोध करना होगा। उन्होंने कहा कि कबीर की भूमि पर यह ऐतिहासिक कन्वेशन है, जिसमें देशभर के एक्टिविस्ट जुटे हैं सभी चाहते हैं काशी की संस्कृति पर चोट न हो। इसलिए सभी को सोचना होगा आगे कैसे काम हो कि फिरकापरस्त शक्तियां सिर न उठा पायें।महात्मा गांधी हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा के पूर्व कुलपति व वरिष्ठ उपन्यासकार विभूति नारायण राय ने कहा कि काशी के लिए यह बहुत भयावह समय है। अगर यहां से नरेन्द्र मोदी चुनाव में विजय प्राप्त करते हैं तो निश्चित रूप से विखंडन की शुरुआत होगी, जिसके लिए हम भी जिम्मेदार होंगे। वरिष्ठ अर्थशास्त्री प्रो. दीपक मलिक ने कहाकि 650 साल पहले कबीर ने यहीं से न हिन्दू, न मुसलमान के विचार की धारा बहायी, जिसपर करोड़ों लोग विश्वास कर रहे हैं। हम भी इस कन्वेंशन के जरिये एक विचारधारा की शुरुआत करना चाहते हैं जो लंबे समय से बंद है। विचारों की हत्या 30 साल पहले शुरू हुई जो जारी है। हम चाहते हैं विचारों की जीत हो, फासीवादी ताकतें परास्त हों। वरिष्ठ आलोचक वीरेंद्र यादव ने मीडिया को कटघरे में खड़ा किया, उन्होंने कहा कि वे एक माहौल बनाकर ऐसी शक्तियों को मजबूत कर रही हैं जो समाज में विखराव के लिए जिम्मेदार हैं। सभी को चेतना होगा, खासतौर पर समाज के जिम्मेदार लोगों को सांप्रदायिक शक्तियों के खिलाफ एक होना होगा। कहा कि आज देशभर की ऐसी शक्तियां एक मंच पर साथ हुई हैं जिनके विचार सुनने के लिए लोग बेताब रहते हैं। आज हम विचारों की गंगा बहाकर ऐसी लहर को रोकने का प्रयास करेंगे जो एक संस्कृति को नष्ट करना चाहती है। समाजसेवी तीस्ता सीलतवाड़ ने कहा कि जो गुजरात विकास का मॉडल पेश किया गया वो झूठ का पुलिंदा है। विकास ऐसे लोगों का हुआ तो पहले से ही समृद्ध थे। गरीबों का हाल कोई जानने वाला नहीं है। वहां तानाशाही चल रही है जो लोगों को दिख नहीं रही है। अगर फासीवादी ताकतें अपने मकसद में सफल रहीं तो पूरे देश में तानाशाही दिखेगी। एक व्यक्ति राज करेगा बाकी लोग उसका आदेश मानेंगे। पाकिस्तान केअखबार डान के जावेद नकवी ने हिंदू- मुसलमान सामंजस्य के लिए फासीवादी ताकतों को खतरनाक बताया। द ट्रुथ आफ गुजरात के लेखक हेमंत शाह ने गुजरात के विकास के मॉडल को पूंजीपतियों का मॉडल बताया। ज्या द्रेज, खगेंद्र ठाकुर, राजेंद्र कुमार, राकेश, शकील सिद्दीकी, प्रो. रूपरेखा वर्मा, शबनम हाशमी, अनुषा रिजवी आदि ने अपने विचार व्यक्त किये। इससे पूर्व कन्वेशन का शुभारंभ इप्टा पटना के कार्यकर्ताओं के जनगीत और कबीर वाणी से हुआ। संचालन व्योमेश शुक्ल व धन्यवाद कार्यक्रम संयोजक व पर्लेस के सचिव संजय श्रीवास्तव ने दिया। कबीर मठ में आयोजित कबीर विरासत कन्वेंशन को संबोधित करते डा. काशीनाथ सिंह व मौजूद विशिष्टजन।
अनुराग शुक्ल/एसएनबी वाराणसी। देशभर के साहित्यकार,रंगकर्मी और अर्थ शास्त्रियों का जुटाव काशी में एक संदेश के तहत हुआ। उनका मकसद नरेन्द्र मोदी नहीं है, लेकिन नरेन्द्र मोदी के रूप में गुजरात के दंगे के बाद जो सांप्रदायिक चेहरा उभरा वह मोदी के रूप में ही सामने आया। आज ऐसी शक्तियां चरम पर हैं। सभी चाहते हैं कि काशी में ही नहीं देश में कहीं भी ऐसी शक्तियां सिर न उठा पाये और इस शहर की संस्कृति को दूषित न करें। इन्हीं सवालों और शंकाओं को लेकर कुछ बुद्धिजीवियों से राय साझा की गयी। फिल्म ‘पीपली लाइव’ की निर्देशक अनुषा रिजवी का मानना है कि काशी जैसी नगरी में जहां दुनियाभर के लोग सुख-शांति की कामना करने के लिए निवास करते हैं लगता है कि यह आबोहवा खराब हो रही है। ऐसी शक्तियां अगर सिर उठाने में कामयाब हुई तो स्थिति पकड़ के बाहर हो जाएगी। सभी को चेतना होगा साथ ही लोगों को जगाना होगा, जिससे हालात काबू में रहे। प्रमुख समाजसेवी प्रो.रूपरेखा वर्मा ने कहा कि साम्प्रदायिक शक्तियां गंगा के बहाने लोगों को बहलाना चाहती हैं, लेकिन उनको नहीं पता कि यहां केलोग बहकने वाले नहीं है और उनको गंगा के बहाने मोक्ष भी दिला सकते हैं। प्रमुख आलोचक वीरेन्द्र यादव ने कहा कि किसी भी कीमत पर गंगा-जमुनी तहजीब को विखंडित होने न दिया जाय। हम तो आज आये हैं लोगों को जगाना चाहते हैं कि फांसीवाद ताकतें 1992 से सिर उठाना चाहती है और हम लगातार उनके सामने खड़े। सभी जागेंगे तो बात बनेगी। मशहूर रंगकर्मी राकेश का कहना है कि सभी भ्रमित हैं कि आखिर काशी की जनता ने एक ऐसे व्यक्ति को इतना महत्व कैसे दे दिया कि लोग आज उसकी र्चचा कर रहे है। सभी को समझना होगा कि आखिर काशी की संस्कृति कैसे सुरक्षित रह सकती है। इस लिए जागकर लोगों को जगाना होगा और काशी की संस्कृति का बचाना होगा।
वाराणसी (एसएनबी)। कन्वेंशन विरासत कबीर समारोह में दिन के सत्र की समाप्ति के बाद कबीर मठ से लहुराबीर के लिए सांस्कृतिक मार्च निकाला गया। साहित्यविद् काशीनाथ सिंह, चौथीराम यादव, खगेन्द्र ठाकुर, विभूति नारायण राय, वीरेन्द्र यादव, राकेश, प्रो.रूपरेखा वर्मा, फिल्मकार अनुषा रिजवी (पीपली लाइव फेम) सहित देशभर के एक्टिविस्टों ने सांप्रदायिक विरोधी पर्चे बांटते कबीर मठ से प्रस्थान किया। जनगीत गाते चल रही लोगों की रैली को लहुराबीर चौराहे पर पुलिस ने रोक लिया, कहा कि चुनाव की समय है आप इस प्रकार नारे और पोस्टर लेकर नहीं चल सकते। एसपी सिटी से रैली का परमिशन मांगा तो उसमें साफ था कि कबीर मठ से लहुराबीर तक रैली निकाली जाएगी। फिर वह चुप हो गये और उसके दिशा निर्देश देकर रैली रोकने और लोगों की गिरफ्तारी की बात करने गले। बड़े साहित्यकारों में एक पूर्व डीजीपी भी थे उन्होंने उनको समझाया कि यहीं खत्म हो जाएगी, क्यों पंगा लेते हैं देशभर के एक्टिविस्ट जुटे हैं और अभी मीडिया का जमावड़ा हो जाएगा। उन्होंने कहा कि ठीक है जल्दी रैली को खत्म कराइये। रैली चंद्रशेखर व प्रेम चंद पार्क गयी जहां प्रतिमाओं पर माल्यार्पण कर कबीर मठ प्रस्थान कर गयी। चा ब दि क व्िको उठ स क ने अ अ इस् सं दास्तानगोई का छेड़ा राग कबीर मठ में राजस्थान के लोक साहित्यकार विजयदान देथा की कहानी पर ‘पीपली लाइव’ जैसी फिल्म का निर्देशन करने वाली अनुषा रिजवी व महमूद फारुकी की टीम ने दास्तानगोई का राग छेड़ा। उन्होंने शमसुर रहमान फारुकी की दास्तनगोई की प्रथा को बड़े ही जीवंत तरीके से पेश किया, जिसमें निश्चित रूप से 16 वीं शताब्दी में कहानी कहने की स्टाइल और प्रथा का अवलोकन दर्शकों ने किया।
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