कार्यशाला के कलाकार |
साहित्य,सिनेमा और समाज विषय पर बोलते हुए डा.मुकुल श्रीवास्तव ने रेखांकित किया कि हर लेखक-कलाकार का अपना विधागत परिप्रेक्ष्य होता है,जिसमें वह समाज को देखने की कोशिश करता है.अतीत और वर्तमान के साथ यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम भविष्य के किस समाज की कल्पना कर रहे हैं.समांतर सिनेमा एक नयी कला-दृष्टि लेकर आया.डा.जितेन्द्र रघुवंशी ने हाल में दिवंगत समर्थ साहित्यकार राजेन्द्र यादव के साहित्यिक और वैचारिक अवदान का स्मरण किया.साथ ही उनके अपनी जन्मभूमि आगरा से आत्मीय रिश्तों का उल्लेख किया.डा.विजय शर्मा ने उनके उपन्यास पर आगरा में बनी फिल्म "सारा आकाश" की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डाला.
प्रो. राजेन्द्र कुमार |
आयोजन का विशेष आकर्षण थी 1969 की यह फिल्म और उस पर चर्चा .बासु चटर्जी निर्देशित इस फिल्म के छायाकार के.के.महाजन व संगीतकार सलिल चौधरी थे .विभिन्न भूमिकाएं राकेश पांडे,तरला मेहता,दीना पाठक,ए.के. हंगल,मधु चक्रवर्ती ,नंदिता ठाकुर,जलाल आगा,मणि कॉल एवं स्थानीय कलाकारों ने अभिनीत कीं .चर्चा का समापन करते हुए वरिष्ठ आलोचक प्रो.राजेन्द्र कुमार ने कहा कि फिल्म यह आव्हान करती है कि हम रूढ़िवादी संस्कारों के प्रेत से स्त्री के जीवन को मुक्त कराएँ.इसमें चित्रित यथार्थ आज पांच दशक बाद बदला हुआ है लेकिन मानसिकता नहीं बदली.डा.प्रियम अंकित,डा.रणवीर ,डा.नीलम यादव,डा.प्रदीप वर्मा अदि की उपस्थिति उल्लेखनीय थी.
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