Tuesday, October 29, 2013

हिन्दी साहित्य का एक स्तंभ टूट गया

टना/29 अक्टूबर 2013 I बिहार इप्टा राज्य परिषद् के कार्यकारी दल ने हिन्दी साहित्य जगत से जुड़े उपन्यासकार, कहानीकार, कविता और आलोचना सहित साहित्य की तमाम विधाओं में एक जैसी पकड़ रखने वाले राजेंद्र यादव के निधन पर शोक व्यक्त किया है और उनके निधन को हिंदी साहित्य के लिए अपूरणीय क्षति बताया। बिहार इप्टा के महासचिव तनवीर अख्तर ने अपने शोक सन्देश में कहा कि राजेंद्र यादव हिन्दी साहित्य की मासिक पत्रिका हंस के संपादक थे। जिस हंस पत्रिका का संपादन कभी प्रेमचंद ने किया था, उसी पत्रिका का सबसे लंबे वक्त तक संपादन करने का श्रेय राजेंद्र यादव को जाता है। जिस दौर में हिन्दी की साहित्यिक पत्रिकाएं अकाल मौत का शिकार हो रही थीं, उस दौर में भी हंस का लगातार प्रकाशन राजेंद्र यादव की वजह से ही संभव हो पाया। मौजूदा दौर में राजेंद्र यादव को हिन्दी साहित्य की कई प्रतिभाओं को सामने लाने का श्रेय जाता है। उनके असामयिक निधन से हिन्दी साहित्य का एक स्तम्भ टूट गया हैI
इप्टा के राष्ट्रीय संयुक्त सचिव फ़ीरोज़ अशरफ खां ने कहा कि राजेंद्र यादव हिन्दी साहित्य का एक मजबूत स्तंभ थे। 28 अगस्त 1929 को आगरा में जन्मे राजेंद्र यादव की गिनती चोटी के लेखकों में होती रही है। उन्होंने अपनी बेबाक लेखनी से ना सिर्फ हिन्दी समाज पर कटाक्ष किया बल्कि साहित्य में स्त्री और दलित विमर्श को एक आयाम दिया। उनके जाने हिंदी पत्रिका आन्दोलन गहरा आघात लगा हैI

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