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Saturday, May 27, 2023
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Tuesday, April 26, 2022
'ढाई आखर प्रेम' की सांस्कृतिक यात्रा; देश के घायल होते मिजाज पर मरहम
- कुश कुमार
वर्तमान में हम आजादी की 75 वी वर्षगांठ मना रहे हैं और इसी उपलक्ष में भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) द्वारा 'ढाई आखर प्रेम' सांस्कृतिक यात्रा आयोजित की गई है। इस यात्रा में जनवादी , प्रगतिशील विचारधारा वाले अन्य संगठनों का भी सहयोग है। यह यात्रा 9 अप्रैल को रायपुर से शुरू हो चुकी है तथा 22 मई को इंदौर में इसका समापन होगा । यह यात्रा बस के माध्यम से छत्तीसगढ़ , झारखंड , बिहार ,उत्तर प्रदेश तथा मध्यप्रदेश से होकर गुजरेगी ।
आज आजादी के 75 साल होने पर तरह-तरह के कार्यक्रम किए जा रहे हैं इन सबके बीच इप्टा की यह यात्रा अलग ही तरह की एक सांस्कृतिक पहल है , क्योंकि यह आजादी के जश्न से ज्यादा आजादी और आजादी के मूल्य - प्रेम, भाईचारे की हिफाज़त को महत्व देती है जो इस वक्त तेजी से धुंधले पड़ते जा रहे हैं। इप्टा अपने स्थापना काल (1943) से आज तक इन्हीं मूल्यों के लिए काम करती रही है। आजादी के आंदोलन में इप्टा की विशेष सांस्कृतिक और आंदोलनकारी भूमिका रही तथा बंगाल के अकाल जैसी समस्याओं से निपटने में भी इप्टा का रचनात्मक सहयोग रहा। इप्टा के कलाकार नाटकों, जनगीतों तथा चित्रों आदि के माध्यम से हमेशा जनवादी मूल्यों और मानवता के लिए काम करते आए हैं।
आज हम एक तरफ आज़ादी का 75 वाँ साल मना रहे हैं तो दूसरी तरफ जिन व्याधियों से आजादी के लिए हमने संघर्ष किया था वे इस देश को आज भी अपने शिकंजे में जकड़े हुए हैं। आज भी देश में गरीबी, सांप्रदायिकता, नफरत , ऊंच-नीच, भेदभाव , अत्याचार जैसी समस्याएं ना सिर्फ बनी हुई हैं बल्कि तेजी से बढ़ती जा रही हैं। आजादी के लिए लड़ने वाले हमारे पूर्वजों का सपना ऐसा समाज बनाने का था जहाँ सब को सम्मान तथा समान हक के साथ जीने का अधिकार हो , जहाँ नफरत , द्वेष ना हो तथा पंक्ति में खड़ा आखरी व्यक्ति भी अपनी मूलभूत जरूरतें पूरी कर सके । जबकि वर्तमान में मूलभूत मुद्दों से जनता का ध्यान हटाने के लिए नफरत, सांप्रदायिकता की आग में देश को झोंका जा रहा है। ऐसे में जरूरत है इस आग से देश को बचाने की और यह कबीर, गुरु नानक, अंबेडकर, भगत सिंह, गांधी,सावित्रीबाई जैसों के पद चिन्हों पर चलकर ही संभव है। ढाई आखर प्रेम यात्रा इन ही महान व्यक्तित्व के पद चिन्हों पर चल रही है। आज जब नफरत, हिंसा को हमारी संस्कृति बता कर उस पर गर्व करने को कहा जा रहा है, ऐसे में यह यात्रा हमें हमारी उदार सहिष्णु और अहिंसक असली संस्कृति का स्मरण कराती है । उदारता, सहिष्णुता के गुणों के कारण ही हमारी सभ्यता और संस्कृति हमेशा मजबूती से खड़ी रहीं हैं और यह यात्रा इन्हीं गुणों को समर्पित है।
मैं इस यात्रा में रायपुर से भागलपुर तक13 दिन रहा। यात्रा की शुरुआत ही छत्तीसगढ़ के लोक नृत्य 'नाचा गम्मत' तथा कबीर के भजनों से हुई । यात्रा में हम 'ढाई आखर प्रेम के पढ़ने और पढ़ाने आए हैं , हम भारत से नफरत का हर दाग मिटाने आए हैं ...' जैसे गीत गाते चल रहे हैं।यह यात्रा 20-25 कलाकारों की टोली है जो राज्यवार बदलते रहते हैं तथा कुछ पूरी यात्रा में भी शामिल हैं । हर राज्य की इकाई अपने-अपने अंदाज में गीतों की प्रस्तुति दे रही है और आम लोगों तक बखूबी यात्रा का संदेश पहुंचा रही है । इप्टा की हर इकाई कुछ नए गीत, कविता, नाटक लेकर आ रही है जो यात्रा को और विविध और उत्साहपूर्ण बना देते हैं । इस यात्रा में रमाशंकर यादव 'विद्रोही' की कविता 'मैं किसान हूं आसमान में धान वो रहा हूँ ' की प्रस्तुति दी जा रही है। इस यात्रा में पाखंड और कथित संस्कृति के नाम पर दबा दी गई स्त्री की मुक्ति के लिए महादेवी वर्मा द्वारा लिखित कविता 'मैं हैरान हूं यह सोचकर' की प्रस्तुति दी जा रही है। इस यात्रा में नेहरू के वक्तव्य 'भारत माता कौन?' की प्रस्तुति दी जा रही है , जिससे लोगों को बताया जा सके कि भारत माता वह नहीं जिसकी आजकल डरा धमका कर जय बुलबाई जा रही है, भारत माता सिर्फ देश की जमीन भी नहीं है।असली भारत माता तो यहां के लोग,मजदूर,किसान, संसाधन हैं और इन्हीं की सेवा करना तथा इनकी रक्षा करना भारत माता की जय बोलना है। यात्रा में हर इकाई द्वारा इसी तरह जागरूक करने वाली तथा प्रेम को बढ़ावा देने वाली प्रस्तुतियां दी जा रही हैं । यात्रा शहीदों, कलाकारों , लेखकों तथा समाज को दिशा देने वाले व्यक्तियों से संबंधित स्थानों पर जरूर जा रही है और उन्हें याद करते हुए इन स्थलों की मिट्टी एक कलश में जमा की जा रही है । यह कलश हमारी साझी सहादत साझी विरासत का ही प्रतीक है । यह यात्रा आदिवासियों से मुलाकात कर रही है, किसान मजदूरों से मुलाकात कर रही है , यह विस्थापितों से मुलाकात कर रही है , यह यात्रा बच्चों एवं महिलाओं के साथ महिला मुक्ति के कार्यक्रम कर रही है तथा यह दलित बस्तियों की तंग गलियों में जा रही है और सांस्कृतिक कार्यक्रम कर रही है। इस यात्रा के दौरान हर इकाई अलग-अलग प्रयोग कर रही है। कहीं खुले मंच पर कार्यक्रम किया जा रहा है ताकि आम लोग ज्यादा से ज्यादा जुड़ पाएं तो कहीं स्कूलों में कार्यक्रम तय किया जा रहा है और बच्चों को इस यात्रा से परिचित कराया जा रहा है , तो कहीं रोचक भाषणों के माध्यम से लोगों को संदेश दिया जा रहा है तो कहीं सिर्फ नाटक और गीतों के माध्यम से अपनी बात रखी जा रही है । अब बस पर लाउडस्पीकर पर 'गंगा की कसम,जमुना की कसम', 'ढाई आखर प्रेम के पढ़ने और पढ़ाने आये हैं' जैसे गीत भी चल रहे हैं , जिससे और भी लोगों का ध्यान खिंचने लगा है। बिलासपुर में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के परिजनों को सम्मानित किया गया तथा अंबिकापुर में सफाई कर्मियों को सम्मानित किया गया, यह लोगों से जुड़ने का एक अच्छा तरीका है।
इस यात्रा के कलाकारों को लोगों का भरपूर प्यार और समर्थन मिल रहा है। हम झारखंड के लातेहार जिले के निंद्रा गांव में थे । ये आदिवासियों का गांव है । इस गांव के लोगों का आजादी के आंदोलन में योगदान रहा है जिनकी बड़ी-बड़ी मूर्तियां सड़क किनारे लगी हुई हैं ।जब हम यहां कार्यक्रम करने पहुंचे तो लोग हमें घेर कर खड़े हो गए तथा बड़े ध्यान से हमारी बातें सुनीं। इसके बाद एक युवती बाल्टी भरकर पीने का पानी ले आई। वह गांव में ही एक और जगह जहां उनका सांस्कृतिक कार्यक्रम चल रहा था, चलने का बार- बार अनुरोध करती रही लेकिन समय के अभाव के कारण हम चाह कर भी वहां नहीं जा सके। यह लोग इतने प्रेम और स्नेह से पूर्ण हैं कि हम इन्हें क्या प्रेम सिखाएंगे? बल्कि हम ही इनसे सीखेंगे। वैसे भी यह यात्रा प्रेम भाईचारे को सिखाने ही नहीं सीखने भी निकली है । तभी तो इसका गीत है ढाई आखर प्रेम का पढ़नेऔर पढ़ाने आए हैं...।
हर तरह की नफरत, सांप्रदायिकता, धार्मिक कट्टरता के खिलाफ निकली इस यात्रा को कुछ लोग समझते हैं कि हम सिर्फ हिंदुओं को प्रेम भाईचारे की जिम्मेदारी दे रहे हैं और आज की बनाई गई साजिश पूर्ण तस्वीर के मुसलमानों को नहीं। वे मानते हैं कि प्रेम भाईचारे ने उनके देश , धर्म को बर्बाद कर दिया है तथा उनकी संस्कृति खतरे में है । कुछ को यह यात्रा आश्चर्य पूर्ण काम लगती है , उन्हें आश्चर्य होता है कि ऐसे समय में भी प्रेम की बातें होती हैं ! जबकि कुछ को मानो ऐसे कार्यों का ही इंतजार था । वह यात्रा का समर्थन करते हैं और इसका कारण यही है कि वह प्रेम की ताक़त को पहचानते हैं।
यह यात्रा इसी तरह प्रेम का संदेश देते हुए आगे बढ़ रही है और आज देश के घायल होते मिजाज पर मरहम की तरह है । यह अपने उद्देश्य में अवश्य सफल होगी।
(कुश भारतीय जन नाट्य संघ (IPTA) की अशोक नगर (मध्य प्रदेश) इकाई से संबद्ध युवा स्केच आर्टिस्ट हैं. इस यात्रा के कई पड़ावों को उन्होंने अपनी कला के माध्यम से चित्रों में दर्ज किया है.)
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Sunday, January 19, 2020
The Censorship
Tuesday, January 8, 2019
समकालीन कविता और कविता का रंगमंच
रंग निर्देशकों ने इन कविताओं की प्रस्तुति में प्रॉप, वेशभूषा, ध्वनि, प्रकाश और संगीत के माध्यम से अनेक प्रयोग किये और मुक्तिबोध की कविता की फैंटेसी को मंच पर साकार किया । यद्यपि मुक्तिबोध की कविता में दृश्य परिवर्तन बहुत तेज़ी से होते है और दो पंक्तियों के बीच छुपे अर्थ को साकार करना बहुत कठिन कार्य होता है लेकिन रंगकर्मियों ने सायास इसे कर दिखाया है । मुक्तिबोध की कविताओं के मंचन का यह सिलसिला अब तक चल रहा है । अस्सी के दशक के पश्चात तो देश की विभिन्न नाट्य संस्थाओं ने मुक्तिबोध की कविताओं का मंचन किया जिनमे मध्यप्रदेश की जबलपुर, रायपुर, भिलाई, राजनांदगाँव, डोंगरगढ़ सहित इप्टा की विभिन्न इकाइयां प्रमुख हैं । जबलपुर इप्टा ने अरुण पाण्डेय के निर्देशन में मुक्तिबोध की कविताओं पर 'तुम निर्भय ज्यों सूर्य गगन के ' की प्रस्तुति भोपाल में की । कुल्लू में मीनाल कल्चरल असोसिएशन द्वारा संगीत नाटक अकादमी के लिए मुक्तिबोध की कविता 'अँधेरे में' और विभिन्न कविताओं का मंचन किया गया । छत्तीसगढ़ में अग्रज नाट्य दल के सुनील चिपणे, रोहतक के जतन नाट्य मंच के अलावा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ की अनेक संस्थाओं द्वारा मुक्तिबोध का मंचन अब तक जारी है ।