Wednesday, August 22, 2018

परसाई की रचनाओ का रंगमंचीय दृष्टिकोण ’

- अख्तर अली
हरिशंकर परसाई को पढना स्वम को अपडेट करना है | जब हम परसाई जी को पढ़ रहे होते है दर असल उस क्षण हम अपने समय को पढ़ रहे होते है ,अपने आस पड़ाेस  को पढ़ रहे होते है , अपने संस्कार का अध्ययन कर रहे होते है ,अपनी चूक पर दण्डित हो रहे होते है ,अपने गैर जिम्मेदाराना हरकतों को स्वीकार कर कान पकड़ कर उठक बैठक लगा रहे होते है |
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 परसाई जी की कोमल शब्दों की वाणी बहुत कठोर है | वाक्यों में निहित व्यंग्य परसाई जी के तरकश का सबसे अहम् तीर है | कलम तलवार होती है इस कहावत को सही रूप में परसाई जी ने ही साबित किया है |
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परसाई जी ने हिंदी क्षेत्र में वयंग्य को स्थापित किया है , इसके पहले साहित्य में तंजो मजाह शैली/विधा में उर्दू के रचनाकार कृशन चंदर ,फ़िक्र तौस्वी ,शौकत थानवी ,इब्ने इंशा , इब्राहिम जलीस ,मुजतबा हुसैन का ही बोलबाला था ,हरिशंकर परसाई ने हिंदी में वयंग्य को स्थापित किया है |
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मै मूलतः नाटककार हूँ | जब मै लिखता हूँ तब मेरी कल्पना में रंगमंच रहता ही है लेकिन जब मै कुछ पढ़ रहा होता हु तब भी मेरे तसव्वुर में रंगमंच ही घूमता रहता है | लोग कविता में बिम्ब तलाशते है और मै उसमे भी दृश्य तलाशता हूँ | उपन्यास पढ़ते समय उसके नरेशन को दृश्य में ढालता जाता हूँ | ये मेरा स्वभाव है मै निबंध में भी उसके मंचन की संभावना तलाशने लगता हूँ | शायद इसीलिये मै अब तक हरिशंकर परसाई ,शरद जोशी , प्रेमचंद ,मंटो ,राही मासूम रज़ा , सत्यजीत रे , श्री लाल शुक्ल , प्रभाकर चौबे ,लतीफ़ घोंघी ,विनोद शंकर शुक्ल , गिरीश पंकज आदि की रचनाओ का नाट्य रूपांतर कर पाया हूँ |मै चाहता हूँ आप एक बार फिर परसाई जी को मेरे नज़रिये से पढ़िये वह आप को नया मज़ा देगे |
परसाई जी कि जो शब्द संरचना है उस पर ज़रा गौर कीजिये उनके वाक्यों में रिदम है ,लय है , स्पीड है | पढ़ते समय उनके शब्द दृश्य बनते जाते है | उनके पात्र यकायक हरकत करने लगते है | परसाई जी की कोई भी रचना वह चाहे उखड़े खम्बे हो ,एक लड़की पांच दीवाने हो ,ठिठुरता हुआ गणतंत्र हो ,भोला राम का जीव हो ,मातादीन चाँद पर हो या रानी नागफनी की कहानी हो या और कोई भी रचना हो परसाई जी ने बकायदा पात्रो को गढ़ा है , उन्हें एक शेप दिया है , तभी तो पढ़ते पढ़ते पात्र वेशभूषा में नज़र आने लगते है , उनकी चाल ढाल दिखने लगती है | पात्र अपने रूप में रचना से निकल कर हमारे टेबल पर खड़ा हो जाता है | हर रचना गुस्सैल समय की मुस्कुराती रचना है | इनके पात्र के हाथ में हथियार नहीं होता ,इनका पात्र ही इनका हथियार होता है | परसाई जी को पढो तो ये लगता है मानो हम नारे लगाते हुए किसी जुलूस का हिस्सा है | अनेक स्थानों पर कथोप कथन इतना सजीव है कि जो लिखा हुआ है वह पढ़ा हुआ नहीं बल्कि दिखा हुआ लगता है | आपने परसाई जी को जितने भी अंदाज़ में पढ़ा होगा हर बार उसमे एक नये किस्म का अहसास हुआ होगा ,आपसे निवेदन है एक बार फिर उन्ही रचनाओं को अभिनेता बनकर पढ़िये आपको नये किस्म के तेवर का अहसास होगा | आप मेरी इस बात का पुरजोर समर्थन करेगे कि परसाई जी ने लिखा नहीं है उन्होंने बोला है, और कारीगरी ये है कि बोला भी खुद नहीं बल्कि पाठको से बुलवाया है ,आप पढिये तो ,आप भी पढ़ते पढ़ते उसे बोलने लगेगे , आप खुद विसंगति के खिलाफ परसाई जी के पात्र बन भ्रष्टाचार और साम्प्रदायिकता के खिलाफ लड़ने खड़े हो जायेगे |

अखतर अली
आमानाका ,कुकुर बेडा ,
रायपुर ( छ.ग.)
मो.न. 9826126781

2 comments:

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