अखतर अली
मुक्तिबोध नाट्य समारोह जैसा स्तरीय मंच,नाट्य प्रेमियों की मौजूदगी ,नाट्य पंडितो द्वारा चयन ,नाट्य क्षेत्र में काम करने वालो द्वारा नाट्य क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिये सम्मानित के लिये किसी शख्सियत का चयन निःसंदेह रोमांचित करने वाला है । ये वह सम्मान है जिसे देने वाला और पाने वाला दोनों मेरी दृष्टि में भाग्यशाली है । यह स्थानीय या प्रादेशिक सम्मान नहीं बल्कि रंगक्षेत्र में किसी महिला रंगकर्मी द्वारा किये जा रहे निरंतर स्तरीय कार्यो के लिए दिए जाने वाला एक राष्ट्रीय सम्मान है ।
इस वर्ष यह सम्मान रायगढ़ की रंगकर्मी उषा आठले को दिया जाना तय किया गया है । इसके पहले यह सम्मान उषा गांगुली को भी दिया जा चुका है , उस उषा से लेकर इस उषा तक रंगमंच एक सा नहीं है । उषा गांगुली का रंगमंच में योगदान को कोई कमतर नहीं आंक सकता , निःसंदेह उन्होंने अपनी प्रस्तुतियों से रंगमंच को समृद्ध किया है , नाटको की लोकप्रियता में इज़ाफ़ा किया है , रंगमंच को व्यवसायिक बनाया है । उषा आठले के खाते में शायद उषा गांगुली जैसी उपलब्धिया न हो लेकिन उषा गांगुली के खाते में भी वो उपलब्धियां नहीं होगी जो उषा आठले के नाम है । नादिरा बब्बर और उषा गांगुली को उनकी कर्मभूमि कोलकता और मुंबई में काम करने के लिये पहले से जमा जमाया और बसा बसाया रंगमंच मिला था जबकि उषा आठले रायगढ़ जैसी जगह में जहाँ रंगमंच अपने शैशव काल में था उसे अपने कंधो पर उठाये ऊंचाई प्रदान करती रही । नादिरा बब्बर को प्रशक्षित अभिनेता मिले और उषा जी को रंगमंच से अपरिचित लोगो को प्रशिक्षित करना पड़ा । उषा गांगुली के पास सर्व सुविधा युक्त प्रेक्षागृह और अभ्यस्त दर्शक होने के कारण रंगमंच के अनुकूल वातावरण था वही उषा आठले को प्रतिकूल वातावरण में रंगकर्म करना पड़ा । जहाँ उषा गांगुली खाली जेब घर से निकलती और नाटक करके हाथ में पैसे लिये घर जाती है वही उषा आठले जेब में पैसे लेकर घर से निकलती है और नाटक करके खाली हाथ घर जाती है ।
मुंबई और कोलकाता में जो रंगमंच हो रहा है , उसमे रोज़गार है ,कलात्मकता है ,पब्लिक टेस्ट के अनुसार स्क्रिप्ट चयन होता है लेकिन रायगढ़ में जो रंगमंच होता है उसमे सामाजिक ज़िम्मेदारी का निर्वाह है , वैचारिकता है , स्क्रिप्ट चयन के अनुसार पब्लिक टेस्ट को पैदा करने की ज़िद है । रंगमंच की नादिरा मुंबई में है लेकिन बब्बर की दहाड़ रायगढ़ के रंगमंच में सुनाई देती है । आठले उषा की वह किरण है जिससे हिंदी रंगमंच जगमगा रहा है । ये मेरा सौभाग्य है कि रंगमंच में उत्कृष्ट कार्य करने वाली महिला के रूप में जब इप्टा रायपुर के प्रतिष्ठित मंच से श्रीमती उषा आठले का सम्मान किया जायेगा उस क्षण का प्रतयक्ष दर्शी मै भी रहूगा ।
आयोजको को चाहिये कि सम्मान के समय उनके पति को भी मंच पर बुलाया जाये क्योकि उनका सहयोग भी सराहना का हकदार है।
संपर्क :
आमानाका
रायपुर ( छ ग )
मोबाईल - 9826126781
मुक्तिबोध नाट्य समारोह जैसा स्तरीय मंच,नाट्य प्रेमियों की मौजूदगी ,नाट्य पंडितो द्वारा चयन ,नाट्य क्षेत्र में काम करने वालो द्वारा नाट्य क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिये सम्मानित के लिये किसी शख्सियत का चयन निःसंदेह रोमांचित करने वाला है । ये वह सम्मान है जिसे देने वाला और पाने वाला दोनों मेरी दृष्टि में भाग्यशाली है । यह स्थानीय या प्रादेशिक सम्मान नहीं बल्कि रंगक्षेत्र में किसी महिला रंगकर्मी द्वारा किये जा रहे निरंतर स्तरीय कार्यो के लिए दिए जाने वाला एक राष्ट्रीय सम्मान है ।
इस वर्ष यह सम्मान रायगढ़ की रंगकर्मी उषा आठले को दिया जाना तय किया गया है । इसके पहले यह सम्मान उषा गांगुली को भी दिया जा चुका है , उस उषा से लेकर इस उषा तक रंगमंच एक सा नहीं है । उषा गांगुली का रंगमंच में योगदान को कोई कमतर नहीं आंक सकता , निःसंदेह उन्होंने अपनी प्रस्तुतियों से रंगमंच को समृद्ध किया है , नाटको की लोकप्रियता में इज़ाफ़ा किया है , रंगमंच को व्यवसायिक बनाया है । उषा आठले के खाते में शायद उषा गांगुली जैसी उपलब्धिया न हो लेकिन उषा गांगुली के खाते में भी वो उपलब्धियां नहीं होगी जो उषा आठले के नाम है । नादिरा बब्बर और उषा गांगुली को उनकी कर्मभूमि कोलकता और मुंबई में काम करने के लिये पहले से जमा जमाया और बसा बसाया रंगमंच मिला था जबकि उषा आठले रायगढ़ जैसी जगह में जहाँ रंगमंच अपने शैशव काल में था उसे अपने कंधो पर उठाये ऊंचाई प्रदान करती रही । नादिरा बब्बर को प्रशक्षित अभिनेता मिले और उषा जी को रंगमंच से अपरिचित लोगो को प्रशिक्षित करना पड़ा । उषा गांगुली के पास सर्व सुविधा युक्त प्रेक्षागृह और अभ्यस्त दर्शक होने के कारण रंगमंच के अनुकूल वातावरण था वही उषा आठले को प्रतिकूल वातावरण में रंगकर्म करना पड़ा । जहाँ उषा गांगुली खाली जेब घर से निकलती और नाटक करके हाथ में पैसे लिये घर जाती है वही उषा आठले जेब में पैसे लेकर घर से निकलती है और नाटक करके खाली हाथ घर जाती है ।
मुंबई और कोलकाता में जो रंगमंच हो रहा है , उसमे रोज़गार है ,कलात्मकता है ,पब्लिक टेस्ट के अनुसार स्क्रिप्ट चयन होता है लेकिन रायगढ़ में जो रंगमंच होता है उसमे सामाजिक ज़िम्मेदारी का निर्वाह है , वैचारिकता है , स्क्रिप्ट चयन के अनुसार पब्लिक टेस्ट को पैदा करने की ज़िद है । रंगमंच की नादिरा मुंबई में है लेकिन बब्बर की दहाड़ रायगढ़ के रंगमंच में सुनाई देती है । आठले उषा की वह किरण है जिससे हिंदी रंगमंच जगमगा रहा है । ये मेरा सौभाग्य है कि रंगमंच में उत्कृष्ट कार्य करने वाली महिला के रूप में जब इप्टा रायपुर के प्रतिष्ठित मंच से श्रीमती उषा आठले का सम्मान किया जायेगा उस क्षण का प्रतयक्ष दर्शी मै भी रहूगा ।
आयोजको को चाहिये कि सम्मान के समय उनके पति को भी मंच पर बुलाया जाये क्योकि उनका सहयोग भी सराहना का हकदार है।
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