'पाशविक' संस्कार
हम द्विपक्षीय सिमिट्री वाले रीढ़ वाले चौपाये हैं. अपने बच्चों को दूध पिलाने वाले रोंयेदार स्तनपायी हैं.और तो और बिना दुम के वानर भी हैं पर अक्ल वाले. इसलिए हमारी प्रजाति है 'होमो सैपिएंस' उर्फ 'आदम अक्लवाला.' लेकिन जानवर वाली बात से नाराज़ होने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि हमारे 'पाशविक संस्कारों में बहुत कुछ तो गर्व के क़ाबिल है और कुछ बातें छोड़ देने लायक.
हम द्विपक्षीय सिमिट्री वाले रीढ़ वाले चौपाये हैं. अपने बच्चों को दूध पिलाने वाले रोंयेदार स्तनपायी हैं.और तो और बिना दुम के वानर भी हैं पर अक्ल वाले. इसलिए हमारी प्रजाति है 'होमो सैपिएंस' उर्फ 'आदम अक्लवाला.' लेकिन जानवर वाली बात से नाराज़ होने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि हमारे 'पाशविक संस्कारों में बहुत कुछ तो गर्व के क़ाबिल है और कुछ बातें छोड़ देने लायक.
स्तनपायी जीव
कुछ बातों के लिए हमारे बारे में कहा जाता रहा है कि ये खालिस 'मानवीय गुण' हैं. मसलन प्रेम, सान्निध्य, सुख, सहानुभूति और अजनबियों की निस्वार्थ सहायता आदि खूबियां दरअसल लगभग सभी स्तनपायी जीवों में मिलती हैं. यह हमारी वही 'पाशविक परंपरा' है जिसे हमें न सिर्फ़ संरक्षित करना है बल्कि और व्यापक बनाना है.
कुछ बातों के लिए हमारे बारे में कहा जाता रहा है कि ये खालिस 'मानवीय गुण' हैं. मसलन प्रेम, सान्निध्य, सुख, सहानुभूति और अजनबियों की निस्वार्थ सहायता आदि खूबियां दरअसल लगभग सभी स्तनपायी जीवों में मिलती हैं. यह हमारी वही 'पाशविक परंपरा' है जिसे हमें न सिर्फ़ संरक्षित करना है बल्कि और व्यापक बनाना है.
आत्मघाती प्रवृत्ति
पर साथ ही कुछ आत्मघाती प्रवृत्तियां भी हमें पशुओं से थाती में मिली हैं- आक्रामकता, क्षेत्रीय दादागिरी, नेताओं की अंधभक्ति, भय और दिमाग़ी 'मायोपिया.'इनमें से कई चीज़ें हमारे जीनों द्वारा उत्पन्न हार्मोन्स से संचालित क़ुदरती स्वभाव का परिणाम हैं और कई संस्कारों-कुसंस्कारों की 'मीम्स' हम ओढ़ लेते हैं.जीव विकास विज्ञान के मशहूर व्याख्याता रिचर्ड डॉकिंस 'मीम्स' को जींस या गुणसूत्रों का बौद्धिक पर्याय कहते हैं.
पर साथ ही कुछ आत्मघाती प्रवृत्तियां भी हमें पशुओं से थाती में मिली हैं- आक्रामकता, क्षेत्रीय दादागिरी, नेताओं की अंधभक्ति, भय और दिमाग़ी 'मायोपिया.'इनमें से कई चीज़ें हमारे जीनों द्वारा उत्पन्न हार्मोन्स से संचालित क़ुदरती स्वभाव का परिणाम हैं और कई संस्कारों-कुसंस्कारों की 'मीम्स' हम ओढ़ लेते हैं.जीव विकास विज्ञान के मशहूर व्याख्याता रिचर्ड डॉकिंस 'मीम्स' को जींस या गुणसूत्रों का बौद्धिक पर्याय कहते हैं.
धर्म, वर्ण, गोत्र
हमारी जैविक पूँछ आज से 80 लाख साल पहले तब लुप्त हुई थी जब चिम्पांज़ियों और गोरिल्लाओं की शाखा हमसे अलग हुई थी लेकिन बौद्धिक दुम बात-बात पर मौके-बेमौके निकली रहती है.हिंदुस्तान के मामले में तो और भी गड़बड़ है. यहां धर्म, वर्ण, गोत्र और खाप की दुम हमने इतनी कसकर लगा रखी है कि गांव-देहात की तो छोड़िए, दिल्ली-बनारस को पेरिस और क्योटो बनाने का सपना देखने वाले लोग भी अपनी अपनी दुम चिपटाए बैठे हैं. इस बीमारी से तथाकिथत वाम और उदारवादी लोग भी अछूते नहीं. जन्म शादी ब्याह और मय्यत के वक़्त या मरघट पर यह असाध्य सा लगने वाला रोग फूट पड़ता है.
हमारी जैविक पूँछ आज से 80 लाख साल पहले तब लुप्त हुई थी जब चिम्पांज़ियों और गोरिल्लाओं की शाखा हमसे अलग हुई थी लेकिन बौद्धिक दुम बात-बात पर मौके-बेमौके निकली रहती है.हिंदुस्तान के मामले में तो और भी गड़बड़ है. यहां धर्म, वर्ण, गोत्र और खाप की दुम हमने इतनी कसकर लगा रखी है कि गांव-देहात की तो छोड़िए, दिल्ली-बनारस को पेरिस और क्योटो बनाने का सपना देखने वाले लोग भी अपनी अपनी दुम चिपटाए बैठे हैं. इस बीमारी से तथाकिथत वाम और उदारवादी लोग भी अछूते नहीं. जन्म शादी ब्याह और मय्यत के वक़्त या मरघट पर यह असाध्य सा लगने वाला रोग फूट पड़ता है.
धर्म-परंपराबच्चे की कुंडली बनवाई जाती है, मुंडन, कान छिदवाए जाते हैं, खतना, बपतिस्मा बिना बच्चे की मर्ज़ी पूछे कर दिया जाता है.समाज, धर्म और परंपरा का हवाला देकर तो बिना पूँछ वाले नर वानर शिशु के पीछे एक दुम लग गई, फिर तो उम्र भर सम्भालते रहिए उसे.कुछ लोग उसे अपने पैंट, पजामे या धोती के अंदर छुपाकर रखते हैं और कई नर-नारी उसे शान से लहराते, फटकारते या चाबुक की तरह इस्तेमाल करते नज़र आते हैं.
विश्वस्तरीय शहर
आज हर वो शख्स जो अमरीका या लंदन जाकर बसने की हैसियत नहीं रखता, अपने शहर को विश्वस्तरीय शहर बनाने का ख़्वाब देख रहा है.लेकिन जिनको घर की सफ़ाई के लिए अलग और खाना बनाने के काम के लिए अलग-अलग काम वाली बाई चाहिए और रात में बिस्तर पर सोने वाली अलग चाहिए.ये जाति, गोत्र और बिस्वा आदि का मिलान करके उनके विश्वस्तरीय शहर में चौथे दर्जे के लोग कहां रहेंगे?
आज हर वो शख्स जो अमरीका या लंदन जाकर बसने की हैसियत नहीं रखता, अपने शहर को विश्वस्तरीय शहर बनाने का ख़्वाब देख रहा है.लेकिन जिनको घर की सफ़ाई के लिए अलग और खाना बनाने के काम के लिए अलग-अलग काम वाली बाई चाहिए और रात में बिस्तर पर सोने वाली अलग चाहिए.ये जाति, गोत्र और बिस्वा आदि का मिलान करके उनके विश्वस्तरीय शहर में चौथे दर्जे के लोग कहां रहेंगे?
जन्मदिन
कूड़ा मैला ढोने वाले लोग और रेहड़ी पटरी वाले लोग क्या लंदन से आएंगे?उनको भी आपके घर के दो-चार मील के पास ही विश्वस्तरीय घरों में बसाना होगा. उनको भी विश्वस्तरीय सड़कों पर चलने के लिए कार दिलवानी होगी.जनाब इस बार डार्विन के जन्मदिन 12 फ़रवरी को अपनी दुम काटकर फेंकिए या उसे चूल्हे में झोंकिए, तभी खुद को 'अक्लवाले आदमी' यानी कि 'होमो सेपिएंस' कहलाने का हक़ है आपको.
कूड़ा मैला ढोने वाले लोग और रेहड़ी पटरी वाले लोग क्या लंदन से आएंगे?उनको भी आपके घर के दो-चार मील के पास ही विश्वस्तरीय घरों में बसाना होगा. उनको भी विश्वस्तरीय सड़कों पर चलने के लिए कार दिलवानी होगी.जनाब इस बार डार्विन के जन्मदिन 12 फ़रवरी को अपनी दुम काटकर फेंकिए या उसे चूल्हे में झोंकिए, तभी खुद को 'अक्लवाले आदमी' यानी कि 'होमो सेपिएंस' कहलाने का हक़ है आपको.
बीबीसी हिंदी डॉट कॉम से साभार
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